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राजनीति से हटकर देखें इन कामों को

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मंगलवार को हुए महाकाल लोक (Mahakal Lok) के लोकार्पण के आलोक में विगत, वर्तमान तथा आगत के कई उल्लेखनीय पक्ष निहित हैं। देश के सांस्कृतिक पुनरुद्धार की दिशा में ऐसा एक और चरण उस समय उठाया गया है, जब भारत की राजनीति (politics of India) में बहुसंख्यक वर्ग (majority class) की सुध लिए जाने का दौर चल रहा है। इसका आरंभ भाजपा (BJP) ने किया। बहुसंख्यक तबका तो करीब छह दशक से उपेक्षा का दंश झेल ही रहा था। BJP की कोशिश को उसने भरपूर समर्थन दिया। नतीजा यह कि किसी समय के धुर तुष्टिकरण-परस्त राजीतिक दल भी परास्त वाली मुद्रा में बहुसंख्यकों के हक तथा हित की बात करते दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) विरासत के साथ विकास की बात कर रहे हैं।

केदारनाथ (Kedarnath), वाराणसी (Varanasi) और अब उज्जैन (Ujjain)। जो ऐतिहासिक सुधार एवं नवीनता का श्रृंगार यहां किया गया है, उसे आप राजनीति का हिस्सा कह सकते हैं। लेकिन इसमें राजधर्म भी निहित है। चाणक्य का अर्थशास्त्र (Chanakya’s economics) कहता है, राजा प्रजा को अपने धर्म से च्युत न होने दे। राजा भी अपने धर्म का आचरण करे। जो राजा अपने धर्म का इस भांति आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक में सुखी रहता है।’ देश में वर्ष 2014 के बाद से यह वातावरण प्रमुखता के साथ दिख रहा है। यदि धार्मिक स्थलों के गौरव में वृद्धि की गयी है तो दूसरे धर्म की सही विवेचना के अनुरूप उसकी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा भी विगत आठ वर्षों में ही सुनिश्चित की गयी है। यह भी किसी राजधर्म वाले कर्तव्य से अलग नहीं है।

धार्मिक स्थलों के सुधार और विकास को केवल धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इन स्थानों को अब वैश्विक धार्मिक पर्यटन के नक़्शे में अद्वितीय स्थान प्रदान कर दिया गया है। स्पष्ट है कि इससे देश में धार्मिक पर्यटन बढ़ेगा। आर्थिक विकास होगा। भारत यूं भी देश-विदेश की धार्मिक आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। ऐसे में इन विकास कार्यों से घर एवं बाहर के सैलानियों की इन स्थानों पर संख्या बढ़ेगी और स्थानीय स्तर पर धर्म से जुड़े सभी छोटे-बड़े उद्योगों को आर्थिक विकास की सौगात मिलना तय है। यहां आशय धर्म को उद्योग बताने से नहीं है। बात किसी मंदिर के बाहर फूल बेचने वाले से लेकर गाइड, प्रसाद निमार्ता, विक्रेता, सेवा से जुड़े क्षेत्र और स्थानीय महत्त्व वाले उत्पादों की हो रही है। पर्यटन बढ़ने का इन सभी को सीधा लाभ होना तय है और केदारनाथ तथा काशी में यह साफ देखा भी जा सकता है।

यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पर्यटन भारत में सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (national gross domestic product) में 6.23% और देश के कुल रोजगार में 8.78% योगदान है। भारत में वार्षिक तौर पर 50 लाख विदेशी पर्यटकों का आगमन और 56. 2 करोड़ घरेलू पर्यटक पर्यटन स्थलों जाते हैं। इनमें धार्मिक महत्व वाले स्थान भी शामिल हैं। ऐसे में इन स्थानों के उद्धार और सुधार को किसी वर्ग को साधने की कोशिश के रूप में नहीं देखना चाहिए। इसमें असंख्य लोगों के जीवनयापन और देश की आर्थिक प्रगति का तत्व भी निहित है।

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