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सीधी-सी बात है, सीधी की बात है

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सीधी-सी बात है। सीधी (Sidhi) की बात है। सीधी-सादी पुलिसिया अकड़ की बात है। बात ये कि सोन नदी (Son river) के किनारे पर बसे सीधी नगर में कई पत्रकारों के कपड़े (clothes of many journalists) एक साथ उतर गए। ये काम सोन नदी में डुबकी मारने के लिए नहीं किया गया, बल्कि स्थानीय पुलिस ने डंडे (police baton) की दम पर पत्रकारों को ऐसा करने पर विवश कर दिया। फिर इन्हीं उघाड़े बदनों की तस्वीरें सोशल मीडिया (photos social media) पर वायरल कर दी गयीं। घनघोर रूप से अपमानित (grievously humiliated) करने वाली इस सजा को लेकर दो बातें कही जा रही हैं। पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने फर्जी आईडी (fake ID) बनाकर विधायक  तथा उनके बेटे (MLA and his son) के खिलाफ साजिश (conspiracy) रची। आरोपियों का कथन है कि  विधायक पिता तथा उनके पुत्र के खिलाफ समाचार छापने के चलते उनके साथ यह दुर्व्यवहार किया गया है।
सीधी के जंगलों की एक खूबी है। आप उनके पास से भी गुजरें, तो फूलों की एक खास खुशबू बरबस ही आपका ध्यान अपनी तरफ खींचती है। यह खुशबू महुए की होती है, जो यहां की प्रमुख उपज है। महुए से बनी शराब का नशा (alcohol intoxication) खासा तगड़ा बताया जाता है। इधर, देश के लगभग हरेक पुलिस थाने (police station) की भी एक खूबी है। उनके पास से गुजरने पर अक्सर एक कंपकपी आपके भीतर भर जाती है। यह सिहरन थाने के भीतर बहुधा पायी जाने वाली उस अकड़ के प्रति होती है, जो महुए की शराब की ही तरह पद और रुसूख के चलते नशे की तरह खाकीधारियों के भीतर भरी रहती है। हालांकि यह हरेक थाने और प्रत्येक  पुलिस वाले का सच नहीं है। देश के हरेक कोने में इस बल में सही मायनों में देशभक्ति तथा जनसेवा (Patriotism and Public Service) के आग्रही पुलिस वालों की आज भी कमी है। लेकिन सीधी में कोतवाली पुलिस के इस कारनामे ने इन कलयुगी दुशासनों के चलते पूरे प्रदेश शासन का माथा शर्म से नीचा कर दिया है।सीधी पुलिस के इस पराक्रम की क्रमबद्ध समीक्षा करें तो घमंड से तने माथों और जमीन पर गिरे कपड़ों के बीच कई सूत्र जुड़ जाते हैं। महाभारत (Mahabharat) में चीरहरण (chirharan) करने वाले दुशासन (Dushasan) का नाता उनसे था, जिन्होंने पुत्र मोह (son infatuation) में इतिहास के भीषणतम युद्ध (worst war in history) को अंजाम दे दिया।  यहां भी मामला पुत्र  मोह का ही है। गुरूर से भरे विधायक (MLA) यदि सत्ता पक्ष के हों तो गुरूर का पक्ष कुछ और भी अधिक गुरुत्व हासिल कर लेता है। इसके बाद विधायक के बेटे द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाती है और फिर सामूहिक चीरहरण (samuhik chiraharan) का एपिसोड बन जाता है। लेकिन ये घमंड आया कहां से? शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने निश्चित ही असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाई के लिए पुलिस के हाथ खोल रखे हैं, लेकिन इन खुले हाथों का विस्तार इस आततायी तरीके से हो जाने की छूट CM ने किसी को भी नहीं दी होगी। यह सही है कि लगातार सत्ता में बने रहने के मद में कई भाजपा नेता चूर हो चुके हैं। फिर भी इस मद का ऐसा विकृत स्वरूप शिवराज के आज तक के कार्यकाल में इससे पहले देखन को नहीं मिला था। आप यकीनन मंदसौर गोली काण्ड (Mandsaur bullet incident) का जिक्र कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने में आपको इस तथ्य की भी फिक्र करना होगी कि वहां पुलिस ने कानून-व्यवस्था (Law and order) बनाये रखने के अंतिम विकल्प के तौर पर ही फायरिंग की थी।

एक रोचक दलील सुनाई दी है। सोशल मीडिया पर सीधी पुलिस (Sidhi police on social media) को यह कहते लिखा जा रहा है कि पत्रकार (Journalist) कपड़ों को बांधकर फांसी (hanging) लगा सकते थे, इसलिए उनके कपड़े उतरवा दिए गए। यदि सोशल मीडिया का यह दावा सही है तो खुलकर कहा जा सकता है कि इतनी जलील किस्म की दलील इससे पहले विरले ही सुनाई दी गयी होगी। फेक ID बनाने का आरोप सही है तो निश्चित ही आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होना चाहिए। गलत खबर लगाने के मामले में भी कानूनी कार्रवाई के तमाम विकल्प खुले हैं, किन्तु कम से कम खाकी की इज्जत तो बख्श दो। इस तरह के कपड़ा-उतारू और ठेठ बाजारू आचरण की सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है।शिवराज सिंह चौहान ने थाना प्रभारी और SHO को लाइन हाजिर करने के आदेश दिए हैं। यह शुभ संकेत है कि सरकार इस तरह के आचरण पर सख्ती दिखा रही है। तस्वीर झूठ नहीं बोलती, इसलिए यह सच है कि कोतवाली में पत्रकारों के शरीर पर कपड़े नहीं थे। इसलिए अब यह सच भी सामने आना चाहिए कि कपड़े विधायक के कहने पर उतरवाए गए या फिर विधायक को खुश करने के लिए ही सीधी की पुलिस इस तरह अपनी पर उतर आयी थी। यह सत्य बहुत आवश्यक है, क्योंकि मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि व्यवस्था से जुड़े उन चेहरों का भी है, जो मौजूदा आरोपों के घेरे में शिवराज सरकार की इमेज के साथ कतई मेल नहीं खा रहे हैं।

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