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तेरी रीढ़ का मर्ज तेरी ही गलती से गहरा हुआ होगा

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मध्यप्रदेश विधानसभा Madhya Pradesh Legislative Assembly() का चार दिन वाला सत्र दूसरे ही दिन, वो भी कार्यवाही के बीच में ही अचानक अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। विपक्ष (Opposition) यकीनन अपनी उस हुल्लड़ ब्रिगेड को इसका अघोषित श्रेय देगा, जिसने मंगलवार को हंगामा कर के कार्यवाही को चलने ही नहीं दिया। साथ ही उसका यह आरोप भी खालिस राजनीतिक चलन से प्रेरित है कि सत्तारूढ़ पक्ष (ruling party) ही सदन को चलने देना नहीं चाहता था। लेकिन सतही आंकलन भी करें तो साफ नजर आता है कि विरोधी दल केवल और केवल विरोध की नीयत से ही सदन में पहुंचा था। ये काले एप्रन पहनकर गर्भ-गृह में लगातार नारेबाजी इस बात का संकेत कही जा सकती है कि इसके पीछे ‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद है’ वाली सोच काम कर रही थी।

पहले तो कांग्रेस (Congress) को चार दिन के सत्र में कई आवश्यक चर्चाएं न हो पाने का भय सत्ता रहा था। फिर इस डर ने कुछ ऐसी शक्ल ली कि विपक्ष सत्र की व्यवस्थाओं के साथ चार कदम चलने में भी रूचि लेता नहीं दिखा। कांग्रेस को यदि ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) की वाकई इतनी फिक्र थी, तो उसके पास चार दिन का समय था कि सरकार (Government) को इस विषय पर पूरी ताकत से घेर लेती। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जाहिर है कि कमलनाथ (Kamalnath) को इस बात का डर सता रहा था कि ‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, लोग ‘बा-वजह’ ‘उदासीनता’ का सबब पूछेंगे।’ वह उदासीनता जो कमलनाथ ने सरकार में रहते हुए इस आरक्षण पर पूरे समय दिखाई। यदि सदन में इस विषय पर बात होती तो कांग्रेस को इस सब पर जवाब देना भारी पड़ जाता। वैसे ही, जैसे भारी मन से यह दल लोकसभा में OBC को लेकर संविधान संशोधन संबंधी विधेयक पर मोदी सरकार (Modi government) का समर्थन कर रहा है।

इस विषय पर सही और गलत की तराजू में कांग्रेस का पलड़ा काफी हलका दिख रहा है। शुरू से ही। कुछ विषयांतर के तौर पर एक मशहूर फिल्मी संवाद इस पार्टी के लिए ‘सांप-छछूंदर’ की स्थिति की तरह याद किया जा सकता है। भाजपा (BJP) कह सकती है कि जाओ पहले उस आदमी (पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit jawaharlal nehru)) का साइन लेकर आओ, जिसने 1952 में जातिगत आधार पर जनगणना को रोक कर ओबीसी वर्ग (OBC Category) के हित के खिलाफ काम किया था। उस आदमी (कमलनाथ) का भी साइन लेकर आओ, जिसने पंद्रह महीने की मध्यप्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) में ओबीसी आरक्षण को लेकर वो गुल खिलाये कि कोर्ट में 27 फीसदी आरक्षण का फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया। अब इन तोहमतों का बोझ लेकर कौन अपनी और भद पिटवाये, निश्चित ही इसी डर के चलते कांग्रेस ने आज हंगामा कर सत्र को समय से पहले ही खत्म करने की स्थिति बना दी। कमलनाथ ने तो लोकसभा चुनाव के पहले इस उम्मीद में ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी किया था, ताकि चुनाव में लाभ मिल जाता। अब इसका क्या हो सकता है कि प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव हार गई।

विपक्ष की नीति तो विचित्र है ही, अब तो उसकी नीयत पर भी सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है। हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। किसान सहित आम आदमी का बड़ा वर्ग तबाह हो चुका है। क्या यह कांग्रेस का कर्तव्य नहीं था कि विपक्ष में होने के नाते वह इस विषय पर सदन में चर्चा के जरिये लोगों के लिए राहत और बचाव के और अधिक पुख्ता प्रबंध करवाती? लेकिन उसने विपक्ष की शक्ति का सारा जोर आज नाहक शोर में बर्बाद कर दिया। कमलनाथ को अचानक याद आया है कि वह भी संसदीय कार्य मंत्री रह चुके हैं। इस आधार पर वह कह रहे हैं कि सत्र का यूं खत्म किया जाना गलत है। लेकिन कमलनाथ को यह तथ्य क्या समय रहते याद नहीं आया कि विधानसभा में चर्चा के माध्यम से आम जनता को यह संदेश दिया जा सकता था कि राज्य में प्रतिपक्ष नामक कोई ऐसी संस्था का अस्तित्व अब भी कायम है, जिससे सरकार से किसी नाराजगी या शिकायत की सूरत में मदद ली जा सकती है? सदन में आज जो काले एप्रन दिखे, यदि उन्हें उठाकर अंदर देख लिया जाता तो साफ दिखता कि ये आवरण कांग्रेस की नाकामियों और काहिली वाले धब्बों को छिपाने के लिए ओढ़ा गया था।

एक उस चौपाये की कहानी याद आ गयी, जिसके साथी के ऊपर उसके मालिक ने नदी के दूसरे छोर पर पहुंचाई जाने वाली नमक की बोरियां लाद दी थीं। वह साथी चौपाया चतुर था। नदी में उतरते ही उसने डुबकी लगाई और देखते ही देखते काफी सारा नमक बह गया। उसकी पीठ का बोझ कम हो गया। यह देख इस चौपाये को भी होशियारी सूझी। उसने भी वजन कम करने के लिए नदी में डुबकी लगा दी। जबकि उसकी पीठ पर रुई लदी हुई थी। रुई ने पानी सोख लिया और इस चौपाये का वजन पहले के मुकाबले काफी अधिक बढ़ गया। कांग्रेस जातिवादी राजनीति को लेकर इसी रुई वाले चौपाये जैसी चूक कर चुकी है। आजादी (freedom) के बाद करीब पचास सालों तक केंद्र और राज्यों में शासन करने के बाद भी कांग्रेस समाज के वंचित वर्गों को मुख्य धारा में लाने में नाकाम रही। उसने बस अंधाधुंध तरीके के तुष्टिकरण के महासागर में डुबकी लगाने को ही अपनी सफलता का सूत्र मान लिया। नतीजा यह कि अब वह अपनी ही गलतियों का बोझ ढोने को मजबूर हो गयी है। जाति संबंधी राजनीति की उसकी काठ की हांडी अब नहीं चढ़ सकती, इस बात को कांग्रेस आज भी समझने के लिए तैयार नहीं है।

कांग्रेस का दुर्भाग्य यह भी कि उसने यह महसूस करने की कोशिश ही नहीं की कि उसकी कास्ट पॉलिटिक्स (cast politics) की धार को भोथरा करने के लिए भाजपा एक लंबे समय से देश-भर में सामाजिक समरसता अभियान को सफलता के साथ संचालित कर रही है। भाजपा की तो ताकत ही बहुसंख्यक समाज की एकता में है। मुखौटा राजनीति के चलते जिस दिन कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में शिवभानु सिंह सोलंकी (Shivbhanu Singh Solanki) का सियासी वध किया था, उसी दिन से उसने अपनी लिए भविष्य के उस भारी संकट का सामान खरीद लिया था, जो सामान आज पूरी तरह उसके गले की हड्डी बन चुका है। यदि देश-भर में कांग्रेस की रीढ़ कमजोर होकर टूटती दिख रही है तो उसके पीछे उसकी ऐसी अनेक गलतियों का लदा बोझ ही मुख्य कारक है। लेकिन जब सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ही ‘स-परिवार’ तथा ‘स-चाटुकार’ इस सच को नहीं समझ पा रही हैं तो फिर उनके दरबारी कमलनाथ से इस मामले में समझदारी की भला क्या उम्मीद की जा सकती है? इसलिए महान रचनाकार दुष्यंत कुमार जी से क्षमा मांगते हुए कांग्रेस के लिए एक बात कही जा सकती है, ‘तेरी रीढ़ का मर्ज तेरी ही गलती से गहरा हुआ होगा। तू सच सुनने के वक्त जान के बहरा हुआ होगा।’

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