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समझना होगा इस बड़े अंतर को

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इस निमंत्रण का दिया जाना जितना सुखद है, उतना ही सुखद है, इसे स्वीकारा जाना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) की अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ. इमाम उमर अहमद इलियासी (Dr. Imam Umar Ahmed Ilyasi) से हुई भेंट देश की सामाजिक समरसता को बढ़ाने की दिशा में अहम घटनाक्रम है। इलियासी के आमंत्रण पर भागवत उनसे मिलने गए। अब राजनीतिक नजरिए (political point of view) से इसे जिसे जैसा देखना हो, देख सकता है। लेकिन दोनों के बीच बंद कमरे में करीब एक घंटे की लंबी चर्चा चली। यह तो अपने आप में बड़ी बात थी ही, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह रही कि चर्चा के बाद इमाम संगठन (Imam Organization) के प्रमुख ने मीडिया को बताया कि भागवत ने उनसे कहा है कि हिन्दू और मुस्लिमों (Hindus and Muslims) या अन्य धर्मों की उपासना पद्धति अलग हो सकती हैं, किन्तु उनका डीएनए एक ही है। इमाम इस बात से इतना प्रभावित दिखे कि उन्होंने भागवत को राष्ट्रऋषि तथा राष्ट्रपिता जैसी संज्ञा भी दे दी।

स्पष्ट है कि भागवत ने इमाम डॉ. इलियासी से बंद कमरे में भी वही कहा, जो संघ खुले रूप से हमेशा से कहता आ रहा है। भागवत की इस वैचारिक ढृढ़ता और इमाम की इस उदारमना प्रतिक्रिया, दोनों का ही स्वागत किया जाना चाहिए। जिन लोगों को इस चर्चा से हैरत है, उनके लिए बात इतने में खतम की जा सकती है कि वे संघ को ठीक से समझना उनके लिए कठिन हैं। साथ ही वे इस भयावह झूठ से भी सने हुए हैं कि संघ के लिए मुस्लिम वर्ग (Muslim community) सिरे से अछूत है। डा. भागवत और इमाम इलियासी ने ऐसी गलत अवधारणाओं की ठोस बर्फ को पिघलाने की शुरूआत तो की है।





संघ सदैव से कहता आया है कि भारत भूमि में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। फिर वह चाहे इस्लाम या किसी अन्य धर्म को मानने वाला क्यों न हो। संघ ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि हिंदू से उसका आशय किसी धर्म नहीं, बल्कि एक संस्कृति से है। फिर चाहे आप इसे तहजीब कह लें या कल्चर। सनातन धर्मियों ने ही कालांतर में खुद को हिन्दू लिखना शुरू किया। और सनातन धर्मियों को यह नाम जाहिर है मुस्लिमों का ही दिया हुआ है। बाद में कांग्रेस (Congress) की वोट की राजनीति ने जाहिर है अल्पसंख्यकवाद (minorityism) को तरजीह दी। जाहिर है कांग्रेस के इसी रवैये ने RSS, जनसंघ या फिर भाजपा (BJP) को स्वाभाविक तौर पर हिन्दुओं (हिन्दुओं) की पार्टी के तौर पर स्थापित होने का मौका दिया। इसमें कोई संशय भी नहीं है कि RSS ने अपने को हिन्दू हितेषी संगठन के तौर पर ही स्थापित किया है। कांग्रेस की प्रो अल्पसंख्यक राजनीति के नतीजे में आज बहुसंख्यक राजनीति के उभार का श्रेय निश्चित तौर पर संघ को ही जाता है। लेकिन सांप्रदायिक राजनीति को लंबे समय से हवा देने का काम संघियों से ज्यादा देश में कथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वालों ने किया है। ऐसा करने वाले इस तथ्य से आंख मूंद लेते हैं कि हिंदू शब्द तो मध्य एशिया से भारत (India) में आने वाले मुस्लिमों की ही देन है। उन्होंने ही सिंधु नदी के इस पार बसने वालों को हिंदू कहा। तो फिर किसी सभ्यता को दिया गया नाम भला कैसे किसी धर्म के रूप में चिन्हांकित किया जाना चाहिए?

स्पष्ट है कि भागवत कल इमामों के पास कोई धर्म थोपने की नीयत से नहीं गए थे। वह धर्म और पंथ से बहुत ऊपर इंसान के इंसान से साम्य की बात बताने गए थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत भूमि के मुस्लिमों की पांच सात पीढ़ियों के पहले की कहानी उनके हिन्दू होने की ही है। यदि उनके कथन से Dr. Imam Umar Ahmed Ilyasi संतुष्ट न हुए होते तो उनकी प्रतिक्रिया ‘राष्ट्रऋषि’ अथवा ‘राष्ट्रपिता’ की बजाय बेहद औपचारिक किस्म की आती। वह यह कहकर भी खानापूर्ति कर सकते थे कि ‘कई विषयों पर बातचीत हुई।’ लेकिन जो प्रतिक्रिया आयी, वह वार्ता की सार्थकता की तरफ सुखद संकेत दे रही है। हिंदू तथा मुसलमानों के बीच आपसी विश्वास कायम करने की दिशा में यह बड़ा कदम कहा जाएगा।





यह भेंट ऐसे समय हुई, जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा (Congress bharat jodo yatra) निकाल रही है। राहुल की यात्रा इस समय केरल (Kerala) में है और PFI पर NIA की कार्रवाई के बाद का हिंसक विरोध अभी केरल में ही हो रहा है। एक बात साफ है कि राहुल के पैदल चलने से भारत नहीं जुड़ेगा। ऐसा तब तक नहीं हो सकेगा, जब तक कि टूटन के मूल में जाकर उसके सुधार की कोशिश की जाए। स्वतंत्रता के पहले से लेकर करीब छह दशक में देश में नाना प्रकार की टूट के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार रही है। लेकिन, जितना राहुल की समझ और उनके सलाहकारों की सोच का सीमित दायरा है, उसके चलते यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि इस यात्रा में यह सच स्वीकारा जाएगा कि देश इस दिशा में कांग्रेस से ‘तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना’ वाली शैली में उम्मीद रखते हुए थकने लगा है। ऊबने लगा है। कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति ने देश में बिखराव के भयावह अध्याय रचे। अब RSS और अखिल भारतीय इमाम संगठन (All India Imam Organization) को समस्या के मूल में जाकर हालात को समझने की पहल करना पड़ रही है। बहरहाल, भारत जोड़ो के खोखले नारे और भारतीयों को जोड़ने के ठोस प्रयास के इस अंतर को समझा जाना चाहिए।

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