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इस मूर्खता को सुदीर्घ न समझे

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अक्सर शब्दों की छाप से पैदा की गई ध्वनि उन्हें कोई अलग स्वरूप दे देती है। ‘गुरु’ हमेशा से पूजनीय संबोधन रहा, लेकिन बाद में उसका प्रयोग यूं किया गया कि किसी को ‘गुरु’ कह दो तो उसे अपमान महसूस होने लगता है। फिर जब बात अपमान महसूस होने से कांस्परेंसी (Consparency) खड़ी करने वाली हो जाए, तो वही होता है जो मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में अपने को ताकतवर समझने वाले एक समाचार पत्र (Newspaper) में रच दिए गए मीना बाजार (Meena Bazaar), और इनसे भी आगे बढ़कर अपनी आततायी ताकत के रूप में सत्य एवं कथ्य के साथ किये जा रहे दुराचार के रूप में सामने आ रहा है। आप तो पहले पेज पर रोज मास्टहेड (masthead) के बगल में सुविचार छापते हैं। किसी दिन महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के पत्रकारिता (journalism) पर इस विचार को भी जगह दीजिए। महात्मा गांधी ने कहा था, पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा होना चाहिए। अखबारी प्रेस एक महान शक्ति है, लेकिन जिस तरह पानी का अनियंत्रित प्रवाह पूरे देश को जलमग्न और फसलों को तबाह कर देता है, ठीक उसी तरह एक अनियंत्रित कलम भी सेवा के बजाए तबाह करने का कार्य करती है। यह अखबार पत्रकारिता के साथ यही दुराचार कर रहा है।

यह प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड मध्यप्रदेश (Professional Examination Board Madhya Pradesh) के साथ हो रहा है। पूर्ववर्ती व्यापमं तो अब दिवंगत श्रीलाल शुक्ल (Srilal Shukla) की शिक्षा पद्धति जैसा बना दिया गया है, जिसे हर कोई आता-जाता ठोकर मार देता है। यह ठोकर मीडिया को मंडी में तब्दील कर चुके लोग कर रहे हैं। उन्हें व्यवस्था के कुव्यवस्था में बदलने की कोई चिंता नहीं है। ठीक उसी तरह, जिस तरह उन्हें एक समय ये चिंता हुई कि भोपाल (Bhoapl) की एक आर्थिक रूप से उर्वरक जमीन पर क्यों कुछ गरीबों ने सर छिपाने का ठिकाना बना रखा है। उन्होंने इस चिंता को शहर की चिता के रूप में बदला, बदले में गरीब घर ढहे और तन गया एक वो व्यावसायिक ठिकाना (commercial base), जो आज मंडी के उन ठेकेदारों की जेब भरने का केंद्र बन चुका है। ये वही हैं, जिन्होंने बाघ के निर्बाध विचरण करने वाली जगह को स्कूल के रूप में अपने लिए उस कूल-कूल ठिकाने में बदल दिया, जहां आज इस प्रदेश का राजकीय पशु इन धनपशुओं के आगे कमजोर हो चुका है।

प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (PEB) का लिखा पढ़ लीजिए। उसके लिखे सत्य पर कोई संदेह की गुंजाइश ही नहीं बनती है, लेकिन जो नो निगेटिव या सबसे तेज बढ़ते के नाम पर केवल और केवल अविश्वसनीय किस्म के वृतांत परोस रहे हैं, उन पर अविश्वास कर लेना भी जैसे गुनाह घोषित कर दिया गया है। उन्होंने लिख दिया कि एडिक्यूटी कैरियर टेक्नालाजी प्रायवेट लिमिटेड (Edicuty Carrier Technology Pvt Ltd) जिससे पीईबी ने परीक्षा आयोजित कराई, उसे भारत सरकार ने अमान्य घोषित किया है। जबकि भारत की एआईसीटीई (SICTE) और NTA ने एडिक्यूटी कैरियर टेक्नालाजी से 9 मार्च, 2022 में ही MOU साईन किया है। पुलिस आरक्षक परीक्षा (police constable exam) में प्रथम चरण के रिजल्ट में कटआफ कभी नहीं बताया जाता क्योंकि आखिरी चयन तो फिजिकल टेस्ट (physical test) में क्वालिफाईड़ (Qualified) पाए जाने के बाद ही होता है। इसके बाद ही पीईबी फायनल रिजल्ट जारी करता है और उसमें कट आफ मार्क्स और उम्मीदवार के हासिल नंबर भी दिखाए जाते हैं। PEB पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा के सत्य को तथ्यों के साथ बता रहा है। किन्तु जो ‘सत्य के साथ बलात्कार में रचे-बसे हैं, उन्हें इस सत्य से कोई लेना-देना ही नहीं है। तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने लिखा है, ‘जथा उलूकहि तम पर नेहा’ यहां खुद उल्लू बनकर अंधेरे से मोह रखने से बड़ी निर्लज्ज कोशिश यह कि आप अपने पढ़ने वालों को भी उसी असत्य, प्रपंच के अंधेरे से मोह करने के लिए धकेल रहे हैं। और ये तब किया जा रहा है, जब एक बार फिर राज्य का विधानसभा चुनाव (Assembly elections) नजदीक आता जा रहा है। खबर के नाम पर झूठ परोसने का ये खेल मन तथा आत्मा के पूरे मैल के साथ पिछले चुनाव के समय भी इस तेजी से बढ़ते अखबार ने खेला था। होली पर पानी की बर्बादी रोकने का आह्वान करने वालों ने उस तरह की इस कीचड़ सनी होली को खेलने में कोई भी गुरेज नहीं किया था। आप पत्रकारिता नहीं, बल्कि वह पक्षकारिता कर रहे हैं, जिसमें सिर्फ और सिर्फ आपकी गैंडे सरीखी बेशर्म खाल के और मोटे होने का बंदोबस्त किया जा सके।

आप इतने ही सही हैं, तो क्यों उस मर्द जैसा आचरण नहीं कर पा रहे, जो प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड के पक्ष को भी पूरी तरह छापने का साहस दिखा सके? सब जानते हैं कि आप एकलव्य (Eklavya) नहीं हैं। आप के भीतर वह धनुर्धर नहीं रहा, जो असत्य को लेकर भौंकते किसी श्वान के मुंह में सत्य वाले तीर घोंप सके। बल्कि आप का तो असत्य का ऐसा उद्घोष पत्रकारिता की पवित्र नदी को उस उथले और घिनौने तीर पर ले आया है, जिसके आगे मीडिया का श्मशान या कब्रिस्तान ही दिखता है। उसकी तेरहवीं या ऐसे ही किसी मातम का मार्ग ही शेष रह जाता है। आप मगरूर हैं और आपके इस रुख के चलते आपके कारकून मजबूर हैं। लेकिन इस तरह तरक्की के उस नकली आसमान की तरफ उन्मादी होकर मत भागिए, जहां से वापस जमीन पर आने का आपके पास कोई रास्ता ही नहीं रह जाए। झूठ को सुदीर्घ मानने के बचपने से बचिए। सद्गति और दुर्गति के बीच के महीन और महान अंतर को अपनी हरकतों से खत्म करने की मूर्खता न करें तो शायद आपके लिए अच्छा होगा।

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