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उत्तरप्रदेश का कोई मध्यप्रदेश कनेक्शन है क्या…

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गुजरात (Gujrat), मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) और गोवा (Goa) की राह पर अब उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh), उत्तराखंड (Uttarakhand) और मणिपुर (Manipur) भी आ गए है। भाजपा (BJP) शासित यह वो राज्य हैं जहां भाजपा ने लगातार दूसरी, तीसरी और चौथी बार तक लगातार अपनी सत्ता को  बनाए रखने में सफलता हासिल की है। सवा तीन दशक बाद एक मुख्यमंत्री (CM) का उत्तरप्रदेश में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने से ज्यादा बड़ी बात है उत्तरप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दुबारा जनता का समर्थन हासिल करना। उत्तरप्रदेश वो राज्य है जहां जाति, संप्रदाय से लेकर बाहुबल और धनबल सब कुछ राजनीति में मान्य है।
भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने सफलता का शानदार रिकार्ड बनाया। कहा जा सकता है कि भाजपा ने अपनी तमाम ताकत झौंक कर इस सफलता को हासिल किया है। अब अगर किसी दल के पास राज्य और केन्द्र की सरकार है। मजबूत संगठन के साथ निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज है। प्रधानमंत्री (PM), मुख्यमंत्री(CM)  से लेकर तमाम जनाधार वाले नेताओं का जमावड़ा है। तो भला प्रतिष्ठा से जुड़े और दूर तक संदेश देने वाले किसी चुनाव को जीतने के लिए ये जमा की गई पूंजी कोई क्यों नहीं खर्च करेगा? भाजपा के विपक्षी दलों के पास अगर वो ताकत नहीं हैं तो इसमें किसका कसूर है। आखिर मायावती (Mayawati) उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) भी तीन बार के मुख्यमंत्री हैं। और मुलायम के बेटे अखिलेश (Akhilesh) पांच साल राज चलाने वाले मुख्यमंत्री रहे हैं। अब अगर ये भाजपा के सामने कमजोर साबित हुए तो कसूर इनका है। मौके तो जनता ने इन्हें भी भरपूर दिए हैं। लेकिन करिश्मा किया है योगी आदित्यनाथ ने पूरे सम्मानजनक बहुमत के साथ सत्ता में लौटकर।
तो इन चार राज्यों में BJP की शानदार सफलता के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में इसका क्या असर होगा। कयास लगने शुरू हो गए हैं और जाहिर है कयासों का केन्द्र अपनी चौथी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) हैं। कहा जा रहा है कि मोदी और शाह तो हर चुनाव खुद ही लड़ लेते हैं तो किसी भी राज्य में उन्हें किसी खास चेहरे की जरूरत ही क्या है। इसलिए अबकि बार तो भाजपा की हालिया सफलता का असर मध्यप्रदेश में होगा ही। अब मोदी (Modi) और शाह (Shah) तो 2014 के बाद से हर चुनाव लड़ ही रहे हैं लेकिन 2013 से 18 तक शिवराज कभी डिस्टर्ब नहीं किए गए। न रमन सिंह (Raman Singh) के साथ ऐसी कोई कोशिश हुई। और फिर कांग्रेसी अंतर्कलह से मिली भाजपा की इस चौथी पारी में भी भरोसा शिवराज पर ही जताया गया।
2018 में भी सत्ता में मामूली अंतर से पिछड़न कर बाहर होगा क्या कम अचंभा था? आखिर पन्द्रह साल की एंटी इनकम्बेसी (anti incumbency) को शिवराज की ही बदौलत तो थामा जा सका था। वरना किसान कर्ज माफी जैसे बड़े कांग्रेसी वादे (Congress promises) और तमाम अंसतोष की कहानियों के बाद भी शिवराज ने भाजपा को किनारे से इतनी दूर तक तो बरकरार रखा ही था जहां किसी भी समय चौथी पारी की संभावना पहले दिन से मौजूद थी। वो महज पन्द्रह महीने में ही आ गई। इसलिए मेरा मानना है कि उत्तर प्रदेश में फिर खिले कमल के फूल की खुशबू को जरा गौर से महसूस करना चाहिए।
आपको उसके भीतर मध्यप्रदेश में नर्मदा के किनारों की मिट्टी/रेत की सुगंध का पुट भी मिलेगा। जरा और ध्यान दें तो आप इस कमल की खाद में भोपाल के बड़े तालाब की उर्वरा मिट्टी के पोषक तत्वों का खमीर भी पा सकेंगे। वह नर्मदा, जिसके तट पर पले-बढ़े  शिवराज सिंह चौहान पिछले डेढ़ दशक से अधिक समय से मध्यप्रदेश के सफलतम मुख्यमंत्री के रूप में उल्लेखनीय फिगर बन चुके हैं। वह बड़ा तालाब, जिसके एक किनारे पर स्थित मुख्यमंत्री निवास में रहते हुए शिवराज ने ताल की लहरों में कामयाब राजनेता के लिए जरूरी शिक्षा के एक विशिष्ट ककहरे का आविष्कार किया है।
उत्तर  प्रदेश में भाजपा की सफलता के सूत्र तलाशने की मंजिल तक आपकी यात्रा नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), अमित शाह  (Amit Shah) और योगी आदित्यनाथ के जातिगत गणित, जनता से डायरेक्ट कनेक्ट (direct connect with the public ), अपनी बड़ी लकीर खींचकर  विरोधी को लकीर के फकीर तक सीमित कर देने जैसे पड़ावों से होकर चलेगी। खास बात यह कि इस सबके भीतर आप को शिवराज के रूप में एक कॉमन फैक्टर साफ दिखेगा। चौहान ने अपने करीब  पंद्रह साल के कार्यकाल में यह  स्थापित कर दिया है कि किस तरह जाति और वर्ग के गणित को विषबेल में पनपाये बगैर उसका सौम्य तरीके से लाभ लिया जा सकता है।
यदि योगी आदित्यनाथ यादव, जाट और मुस्लिम मतों (Muslim votes) की भारी नाराजगी वाली भरी धूप में भी अपने लिए सफलताओं वाली छांव का सुखद अहसास तलाश सके, तो यह वह काम रहा, जिसे सफल तरीके से करने करने के सूत्रों को शिवराज पहले ही सिद्ध कर चुके हैं। ब्राह्मण मतदाताओं की बेरुखी को भी हिंदुत्व वाली छवि के साथ योगी ने जिस तरह अपनी तरफ खींचा, उस तरह के चुंबक को शिवराज यहां अपनी  खास किस्म की छवि में पूर्व  में ही उतार सके हैं। जहां तक ‘भला उसकी लकीर मेरी लकीर से बड़ी कैसे!’ वाले सियासी शत्रुओं के विस्मय का सवाल है, तो चौहान इस दिशा में  मध्यप्रदेश में उस मुकाम पर जा बैठे हैं, जिसके सामने आज की तारीख में तो ‘अभूतपूर्व अजातशत्रु मुख्यमंत्री’ की तख्ती लगाई जा सकती है। समाज के हर तबके तक गहरी पैठ, जनता से सीधा और लगभग रोज जुडे रहना। चाहे महिलाएं हो या बुजुर्ग, सबको कैसे खुश रखना और कैसे सबका आशीर्वाद लेना, यह शिवराज बखूबी जानते हैं।
यह कहना तो अतिशयोक्ति होगी कि यूपी में भाजपा की जीत के पार्ट 2 का मुख्य सूत्र शिवराज की वजह से ही संभव हो सका। हां, यह लिखने और कहने में कंजूसी नहीं की जाना चाहिए कि जीत की इस पटकथा के हरेक पृष्ठ  पर शिवराज के असर की छाप साफ देखी जा सकती है। इस तरह की प्रेरणा ली गई, मिली या फिर उसे अनजाने में ही अपना लिया गया हो, इस उत्तर का विकल्प चुनने के लिए आप अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्र हैं। आने  वाले साल में भी मध्यप्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भी BJP को इस इमेज की मेज पर सियासी शतरंज (political chess) की बिसात ही बिछाना होगी, जहां लगभग उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से होगा। इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस इकलौती प्रमुख विपक्षी पार्टी है, जहां भाजपा विरोधी मतों के बंटने की कोई गुंजाईश नहीं होती। हां, विरोधी मतों को समर्थन में बदलने की कला में यहां जो राजनेता पारंगत हैं, उसका नाम जरूर शिवराज ही है। तो अटकलों की अटखेलियों से आल्हादित हो रहे लोगों को यह समझ लेना होगा कि इन हालात में शिवराज को डिस्टर्ब करने का जोखिम कोई भी समझदार नहीं उठाएगा और भाजपा नेतृत्व (BJP leadership) तो सोच समझ कर रणनीतियां बनाने में उस्ताद है ही सही।
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