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नसीरुद्दीन शाह को ऐसी पत्नी मिलने की बधाई

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रत्ना शाह पाठक (Ratna Shah Pathak) को मैं एक बेहतरीन अदाकार, दीना पाठक (Dina Pathak) की बड़ी बेटी, सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) की बड़ी बहन और नसीरूद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) की बीबी के तौर पर जानता हूं। दोनों पति पत्नी बहुत प्रगतिशील भी है और उत्कृष्ट एक्टर भी। पर फिलहाल मामला उनकी एक्टिंग से जुड़ा हुआ नहीं है। रत्ना पाठक शाह की न जाने कौन सी दुखती रग पर किसी ने हाथ रख दिया। पता नहीं उनकी किस कुंठा का यह विस्फोट हुआ। वह करवा चौथ के व्रत को लेकर उफन- रही हैं। हैरत जता रही हैं कि कैसे कोई शिक्षित महिला अपने पति की लंबी उम्र (इसे उन्होंने ‘विधवा होने से बचने का डर’ भी कहा हैं) के लिए यह व्रत रख सकती है? तरस आता है, उस व्यक्ति पर जिसने कथित रूप से रत्ना से पूछा था कि क्या वह करवा चौथ का व्रत रखेंगी? सवाल पूछने वाले (यदि वाकई कोई इतना मूर्ख था) को सोचना चाहिए था कि नसीरुद्दीन शाह की पत्नी और हीबा (heeba), विवान (Vivan) और इमाद (Imad) की मां के उस कुनबे में करवा चौथ की क्या कोई गुंजाइश हो सकती है?

किसी समय रत्ना पाठक को ‘इधर-उधर’ सीरियल में पहली बार देखा था। बाद में वह असली जिंदगी में भी इधर से उधर हुईं और उनके नाम के आगे शाह वाला उपनाम भी जुड़ गया। यह शाह भी वही नसीरुद्दीन हैं, जिन्हें उसी देश से डर लगता है, जिस देश ने उन्हें फिल्मों का प्रसिद्ध सितारा बनाकर पूरा सम्मान दिया। पद्मश्री जैसा नागरिक सम्मान दिया। खैर, विवाह निजी विषय है। अपनी-अपनी पसंद का मामला है। ठीक वैसे ही, जैसे करवा चौथ का व्रत रखना या नहीं रखना आस्था का विषय है और अपनी-अपनी पसंद का मामला भी है। लेकिन एक बात साफ है। इस व्रत को ‘रूढ़िवादी’ बताते हुए इससे जुड़े हालात की तुलना सऊदी अरब (Saudi Arab) से कर के रत्ना ने बिल्कुल सही किया। अब नसीरुद्दीन शाह की पत्नी होने के नाते यह बिलकुल माना जा सकता है कि रत्ना को सऊदी अरब जैसे रूढ़िवादी हालात का अब तक गहरा और प्रत्यक्ष अनुभव हो चुका होगा। वह भी घर में बैठे-बैठे ही।

रत्ना पाठक शाह के नजरिये से देखें तो करवा चौथ (karva chauth) केवल अशिक्षितों के लिए वाला मामला होना चाहिए। तो देश की उन तमाम महिलाओं को अब इस व्रत के दौरान बुर्के में छिपकर पूजा करनी चाहिए, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह भी देख लिया हो। बुर्के से याद आया कि रत्ना पाठक शाह से कभी किसी ने हिजाब (Hijab) के लिए की जा रही ‘पढ़ी-लिखी जिद’ पर सवाल पूछा या नहीं। मुझे यकीन है कि यह प्रश्न उनसे जरूर किया होगा और उस पर अपनी तरह के पढ़े-लिखे तबके की भांति श्रीमती शाह ने ‘ये तो धार्मिक स्वतंत्रता का मामला है कि कोई कैसे रहना चाहता है’ वाला उत्तर ही दिया होगा। गनीमत है कि दुनिया की किसी यूनिवर्सिटी में दोगलापन पर कोर्स संचालित नहीं किया जाता, वरना वहां की प्रावीण्य सूची में पहले से लेकर आखिरी तक रत्ना पाठक शाह और उन जैसी समान सोच वालों के नाम ही नजर आते।

भले ही नाम और असली उपनाम के बीच ‘पाठक’ लगाकर आप यह संकेत देने का प्रयास करें कि आपने हिन्दू धर्म को छोड़ा नहीं है, लेकिन कम से कम इस तरह की बातें करके ये साबित करने की कोशिश तो न करें कि आप अपने माता-पिता वाले धर्म को ‘कहीं का भी न छोड़ने’ पर आमादा हैं। रत्ना शाह को पता है या नहीं, पर देश के ही कई हिस्सों में करवा चौथ का व्रत नहीं होता है। उसकी जगह तीजा का कठिन व्रत महिलाएं खुशी से रखती हैं। हिन्दू महिलाएं (Hindu women) अपने पति ही नहीं बच्चों के लिए भी व्रत रखती हैं। किसी विषय पर अपनी राय ‘मैं इसके पक्ष में नहीं हूं’ कहकर भी रखी जा सकती है, लेकिन उस विषय पर अपनी राय को विद्वेष भरे विषवमन तथा कुतर्कों से जस्टिफाई करने की कोशिश भला किस तरह उचित कही जा सकती है? फिर यदि आप इतनी ही विद्रोही चेतना से युक्त हैं तो फिर कभी बोहरा स्त्रियों के खतना, तीन तलाक, हलाला या बुर्का जैसी कुप्रथाओं पर भी तो बोलने का साहस दिखाइए। या फिर मामला वही है कि उस धर्म के खिलाफ बोल लो, जो सहिष्णु है और उस जगह मुंह बंद कर लो, जहां सच बोलने की सजा भी ‘तन से सिर जुदा’ करने के रूप में दी जाती है?

‘विधवा होने का डर’ इस शब्द का इस्तेमाल भी कोई कैसे कर सकता है? वो भी किसी व्रत से सन्दर्भ में? यह मौत के डर को गौण करने वाली जिहादी थ्योरी से प्रभावित मानसिकता का प्रतीक ही दिखता है। कोई स्त्री अपने दाम्पत्य जीवन के सुख को चिर-स्थायी करने की कामना से धार्मिक क्रिया कर रही है और आप उसे ‘विधवा’ शब्द से जोड़कर उस स्त्री की पवित्र भावनाओं को जिबह करने पर तुले हुए हैं। लेकिन आप खुलकर और मनमाने तरीके से ऐसा कर सकती हैं, क्योंकि आप का नाम नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) नहीं है और आपका सामना उस सोच से नहीं है, जो राजस्थान के कन्हैयालाल (Kanhaiyalal of Rajasthan) से लेकर महाराष्ट्र के उमेश कोल्हे (Umesh Kolhe of Maharashtra) वाले उन्माद को अपनी धार्मिक शान के रूप में प्रस्तुत करती है।

रत्ना पाठक शाह जैसे एक करोड़ लोग भी अशिक्षित तो दूर, पढ़े-लिखे हिंदू वर्ग को उसकी मान्यताओं से पृथक नहीं कर सकते। ऐसी साजिशें अनंत काल से चली आ रही हैं। लेकिन, कुछ भी कहिए, इस कथन के जरिये रत्ना पाठक शाह ने यह साबित कर दिया कि हिन्दू स्त्री भले ही दूसरे धर्म में चली जाए, किन्तु उसके भीतर वह संस्कार सदैव रहते हैं, जिनके तहत वह पति के बताए मार्ग पर चलती है। लेकिन, कुछ भी कहिए, इस कथन के जरिये रत्ना पाठक शाह ने यह साबित कर दिया कि हिन्दू स्त्री भले ही दूसरे धर्म में चली जाए, किन्तु उसके भीतर वह संस्कार सदैव रहते हैं, जिनके तहत वह पति के बताए मार्ग पर चलती है। पति के कामों में बराबरी से सहयोग करती है। नसीरुद्दीन शाह को ऐसी पत्नी मिलने की बधाई।

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