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अच्छा हैं कि नहीं हैं अब बाल ठाकरे

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यदि बाला साहब ठाकरे (Bala Saheb Thakre) जीवित होते तो निश्चित ही वह भी इस कार्यवाही का समर्थन करते कि सांसद नवनीत राणा (MP Navneet Rana) तथा उनके विधायक पति रवि राणा (Ravi Rana) के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला (treason case) दर्ज किया जाना चाहिए। राणा दंपति ने ठाकरे के चिरंजीव और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास ‘मातोश्री’ (Chief Minister Uddhav Thackeray’s residence ‘Matoshree’) के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ (hanuman chalisa ka path) करने का ऐलान किया था। हालांकि इस युगल ने पाठ नहीं किया, लेकिन उद्धव के नेतृत्व वाली महा अघाड़ी सरकार ने उनके खिलाफ प्रकरण कायम कर लिया है। स्वर्गवासी पिता और सत्तावासी बेटे की इस कार्यवाही के बीच एक महान अंतर होता। Bala saheb इस बात के लिए केस दर्ज करवाते कि घोषणा के बाद भी हनुमान चालीसा का पाठ क्यों नहीं किया गया और उद्धव ने इसलिए अपराध कायम करवाया है कि किसी ने चालीसा के पाठ की घोषणा तो दूर, ऐसा करने की कल्पना तक कैसे कर ली? वह भी उस राज्य में जहां शिव सेना (Shiv Sena) अपने सिद्धांतों और विशेषतः हिंदुत्व (Hindutva) को पहले ही तिलांजलि दे चुकी है।

वैसे यह पूरी तरह सही एवं स्वीकार करने योग्य बात है कि हनुमान चालीसा के पाठ सहित किसी भी अन्य धार्मिक क्रिया-कलाप का उद्देश्य किसी अन्य को आहत करने या किसी सांप्रदायिक विद्वेष (communal hatred) की आहट वाले विस्तार तक नहीं जाना चाहिए। इसलिए यदि किसी धर्म-विशेष के त्यौहार के समय आबादी के लिहाज से उसके बाहुल्य वाले इलाके में भड़काऊ नारेबाजी गलत है तो उतना ही बुरा यह भी है कि अपने इलाके से किसी अन्य धर्म की शोभा यात्रा को निर्विघ्न तरीके से न निकलने दिया जाए। फिर यह तो सोचना और यह सोचकर डरना ही होगा कि ऐसा करने वाले किसी भी वर्ग की ऐसी हरकत का यदि राजनीतिकरण हो जाए। यदि ऐसा होगा तो फिर क्या होगा? कहा तो वैसे ये किसी और सन्दर्भ में गया था, किन्तु कुछ परिवर्तित स्वरूप में उसे यह कहकर आवश्यक रूप में दोहराया जा सकता है कि आम आदमी के दिमाग की जिस कील पर राजनीति का कुर्ता-पायजामा टंग जाए, वहां फिर इंसानियत के जिस्म और फिर उसे ढंकने वाले लबादे की कोई जगह नहीं रह जाती है।यह पहले भी हो रहा था और आज भी ऐसा होना बदस्तूर जारी है। हां, यह ताज्जुब जगाता है कि इस भड़काने या भड़कने की परिधि में भला मातोश्री (Matoshree) कैसे आ गया? कब से ऐसा हो गया कि बाबरी विध्वंस (Babri Demolition) के पीछे अपनी पार्टी का ‘हाथ’ होने की बजाय ‘लात’ होने की पुष्टि करने वाले बाला साहेब की पार्टी एक पाठ के नाम से ही बौखला गयी? फिर वर्तमान विषय पर आयें। सच यह भी है कि खीझ को मन में आश्रय दे दिया जाए, तो फिर कुछ भी परिणाम दिख सकता है।

महाराष्ट्र (Maharashtra) में जो-कुछ हो रहा है, उसे भी उत्तर प्रदेश में हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण (Polarization of Hindu Votes in Uttar Pradesh) के चलते भाजपा-विरोधी दलों (anti-BJP parties) की करारी पराजय की खीझ से जोड़ा जा सकता है। यदि आप बीच सड़क सहित किसी अति-सुरक्षा के घेरे वाले एयरपोर्ट पर जगह घेरकर नमाज अदा (Namaz ada) किए जाने को सही मानते हैं तो फिर किसी के द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ से आपको भला क्या आपत्ति हो सकती है? यह विचित्र स्थिति है कि अब देश में हनुमान चालीसा के सार्वजनिक पाठ को भी जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाने तथा गुजरात में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल (Patidar leader Hardik Patel in Gujarat) द्वारा पुलिस वालों की हत्या करने की बात कहने के सदृश ही अपराध मान लिया गया है। क्योंकि देश-विरोधी नारों (anti-national slogans) एवं पुलिसकर्मियों के क़त्ल की बात करने जैसे जिन संगीन आरोपों के चलते क्रमशः कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) तथा हार्दिक के खिलाफ देशद्रोह के प्रकरण दर्ज हुए थे, उसी धारा में हनुमान चालीसा का पाठ करने की बात कहने वालों पर भी प्रकरण दर्ज कर लिया गया है। रोचक बात है कि जिन भाजपा-विरोधी दलों ने कन्हैया और हार्दिक का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of expression) के नाम पर बचाव किया था, वही दल राणा दंपति की इस स्वतंत्रता तो दूर, उनकी धार्मिक स्वतंत्रता (religious freedom) तक के हक में आवाज नहीं उठा रहे हैं।

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव (Maharashtra assembly elections) में जितना समय बचा है, पश्चिम बंगाल (West Bengal) के बीते इसी चुनाव की लगभग इतनी ही अवधि पहले ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने सड़क पर जय श्रीराम का नारा (jay shriram ka nara) लगाने वालों पर आंखें तरेर ली थीं। उन्होंने प्रदेश में हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों पर प्रकारांतर से सख्ती के साथ रोक लगाने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। ममता ने यह सब अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक (minority vote bank) को रिझाने तथा भाजपा के हिंदुत्व को कमजोर करने के लिए किया था। यह बात और रही कि इस सबके चलते देश के इस राज्य में भाजपा की विधानसभा में सदस्य संख्या तीन से बढ़कर 70 के पार पहुंच गयी थी। यदि ठाकरे भी राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) तथा कांग्रेस (Congress) के प्रभाव में आकर शिव सेना (Shiv Sena) के तुष्टिकरण वाले स्वरूप को इसी तरह आगे ले जाना चाह रहे हैं तो उन्हें ममता बनर्जी की कम हुई ताकत वाले घटनाक्रमों से कुछ सबक लेना चाहिए।

सच तो यह है कि हुकूमतें किसी भी अप्रिय प्रसंग पर ‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी’ वाली परिणीति से सहमे रहते हैं। इसलिए उठती आवाज को प्रायः तुरंत दबाने के प्रयास तमाम प्रपंच की सूरत में किये जाते रहे हैं। महाराष्ट्र में किसी समय कद्दावर भाजपा नेता (दिवंगत) गोपीनाथ मुंडे (BJP leader (late) Gopinath Munde) उपमुख्यमंत्री थे। कहा जाता था कि कामकाज की थकान उतारने के लिए वह बरखा नामक नृत्यांगना के घर जाते थे। यह वह समय था, जब वहां भाजपा-शिवसेना की सरकार ने मुंडे के सामने ‘ओ सजना, बरखा बहार आयी’ गाने वालों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण कायम कर दिए थे। यह वह भी समय था, जब खुद बाला साहेब ठाकरे ने मुंडे के पक्ष में आते हुए उन्हें सलाह दी थी, ‘प्यार किया तो डरना क्या!’ मगर आज तो अपने आराध्य देवता के लिए प्रेम जताना भी राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में ला दिया गया है। ये उत्तर प्रदेश की खुन्नस का असर हो या हो उस राज्य के हिन्दू मतों को महाराष्ट्र का उत्तर, मामला शर्मनाक वाली श्रेणी पर पूरी तरह फिट बैठता है। संतोष केवल इस बात का है कि यह सब होता देखने से पहले ही बाला साहेब ने हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। आपके प्रति पूरी श्रद्धा के साथ कहना चाहता हूं कि अच्छा हुआ कि आप जीवित नहीं हैं बाला साहेब।

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