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ये कमलनाथ का विश्वास है दिग्विजय पर

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उन नादानों पर तरस आ रहा है, जो यह सोचकर ताली बजा रहे हैं कि कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को निपटा दिया है। अब यदि नाथ ने टिकट वितरण से नाराज पार्टीजनों को दिग्विजय और उनके सुपुत्र जयवर्द्धन सिंह के कपडे फाड़ने की सलाह दी है, तो इसे भला किस तरह से गुस्सा कहा जा सकता है? कम से कम मैं तो ऐसा बिलकुल नहीं मान सकता। मेरी दृढ़ मान्यता है कि कमलनाथ ने जो कहा वह दिग्विजय सिंह की सौम्यता के प्रति उनके अगाध विश्वास का प्रतीक है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यह भली-भांति जानते हैं कि दिग्विजय को अपने कपडे फाड़े जाने से कोई शिकायत नहीं होगी। ऐसा किए जाने पर उनके माथे पर शिकन तक नहीं आएगी। बल्कि इससे यह होगा कि टिकट वितरण से नाराज कांग्रेस वालों की भड़ास निकल जाएगी और उनका यह क्रोध किसी बैर में तब्दील होकर गंभीर रूप नहीं लेगा। और ऐसे शॉक एब्जॉर्वर के रूप में सिंह से मुफीद और कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता है। हाथ कंगन को आरसी क्या? मामला चाहे पार्टी के नाम पर हो या पार्टी के काम वाला हो, दिग्विजय अंजाम की परवाह किए बगैर आगे बढ़ते जाते हैं। फिर ऐसा करने में चाहे कभी इंदौर विमानतल पर कोई प्रेमचंद गुड्डू उनके कपडे फाड दें या रायपुर में विद्याचरण शुक्ल के समर्थक भी उनके साथ ऐसा ही कर गुजरें। दिग्विजय निर्लिप्त भाव से यह सब चुपचाप सह जाते हैं और उनके गांधीगिरी के इस स्वरूप के चलते ही कमलनाथ ने सोचा होगा कि असंतुष्टों का गुस्सा बाहर निकालने के लिए दिग्विजय के फटे कपड़ों से बेहतर रोशनदान और कोई हो ही नहीं सकता है।

अब यह भी देखिए ना। गोवा में कांग्रेस की सरकार बनते-बनते रह गई। इसकी वजह चाहे जो रही हो, लेकिन इसके लिए दिग्विजय पर कपड़ा-फाडू वाली शैली में जुबानी हमले किए गए। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए मंदसौर से अपने अभियान की शुरूआत के समय राहुल गांधी ने दिग्विजय को मंच पर स्थान देना तक उचित नहीं समझा। कोई और होता तो इसे भी कपडे तार-तार कर दिए जाने वाली बेइज्जती मानता, लेकिन दिग्विजय पर इस सबका कोई असर नहीं पड़ा। पूरे संतों वाले भाव के साथ वह इस तोहमत के फटीचर स्वरूप को भी धारण किए हुए हैं कि राज्य में कमलनाथ की सरकार के असमय गिरने के मुल में खुद दिग्विजय ही थे।

और कमाल यह कि इस अभ्यास को दिग्विजय नियमित मजबूती प्रदान कर रहे हैं। कमलनाथ के ताजा कथन पर भी उन्होंने निहायत संयत स्वरूप की प्रतिक्रिया दी है। कोई शिकायत नहीं। क्रोध का तो नाम भी नहीं। बस यह लिखा कि बड़े परिवार में ऐसे मामले समझदारी से निपटाए जाने चाहिए। कमलनाथ के कथन वाले वायरल वीडियो को यदि आप कपड़े फाड़ने वाले प्रक्रिया के रूप में ही देखते हैं तो दिग्विजय की यह प्रतिक्रिया भी बताती है कि कपड़े फाड़े जाने वाली नाथ की सलाह के केंद्र में दिग्विजय को रखा जाना गहन विवेकशीलता का प्रतीक ही था।

बीच में एक जगह लिखा गया है, ‘मामला चाहे पार्टी के नाम पर हो या पार्टी के काम वाला हो’ तो चलते-चलते इस बात की व्याख्या भी कर दी जाए। ऐसे कई मामलों में यह बिलकुल साफ रहा है कि दिग्विजय ने जिन बातों के चलते अपने लिए कपडे फटने की स्थिति बुलाई, उनमें से अधिकतर बातें भले ही पार्टी के नाम पर की गईं, लेकिन उनके मूल में खुद दिग्विजय का निजी एजेंडा भी निहित था। खैर, इसे गलत भी नहीं मानना चाहिए। निजी शुभ-लाभ हासिल करने की निंदा करने से पहले यह देखा जाना चाहिए कि कपडे फड़वाने की दिग्विजय की तरह ऐसी बार-बार हिम्मत करना कांग्रेस में क्या किसी और के बूते की बात है?

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