भोपाल। श्रावण-भादो के पावन महीने में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में निकलने वाली बाबा महाकाल की शाही सवारी को अब राजसी सवारी के नाम से जाना जाएगा। यह ऐलान स्वयं मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किया है। बता दें कि लंबे समय से साधु-संतों द्वारा शाही सवारी का नाम बदलने की मांग की जा रही है। उनही मांग थी कि स्थान पर संस्कृत या हिंदी का कोई उपयुक्त शब्द प्रचलन में लाया जाए।
आज सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी से पहले सीएम मोहन यादव ने कहा कि आज उज्जैन में बाबा महाकाल की आखिरी राजसी सवारी निकल रही है। बाबा का जनता से सीधा सरोकार है। उनकी कृपा सब पर बनी रहे। इस साल आदिवासी कलाकार शामिल किये गए और शासकीय बैंड शामिल किए गए। सीएम डॉ. मोहन यादव ने आगे कहा कि यह मात्र सवारी नहीं, अपितु बाबा का जनता के साथ सीधा सरोकार है। मैं देश-विदेश से पधारे श्रद्धालुओं का बाबा महाकालेश्वर की राजसी सवारी में स्वागत, वंदन एवं अभिनन्दन करता हूं।
संतों ने की थी मांग
दरअसल, प्रतिवर्ष श्रावण-भादो मास के प्रत्येक सोमवार को महाकाल की सवारी निकलती है। इसमें महाकाल पालकी में सवार होकर प्रजा का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं। महाकाल की अंतिम सवारी सबसे भव्य होती है, इसलिए इसे शाही सवारी कहा जाता है। लेकिन शाही कहने पर उज्जैन के संतों, विद्वानों और अखाड़ों के साधुओं में असहमति व आक्रोश था। भागवत आचार्य श्री भीमाशंकर जी शास्त्री ने धर्म सभा में शाही नाम को बदलने की मांग उठाई थी। साधु संतों का कहना था कि महाकाल की सवारी को ह्यशाही सवारीह्ण न कहा जाए। इसके स्थान पर संस्कृत या हिंदी का कोई उपयुक्त शब्द प्रचलन में लाया जाए।