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बाग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जीना हुआ मुश्किल, अब शिक्षकों से जबरन लिया जा रहा रिजाइन, वह भी दो शब्दों में

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नई दिल्ली। बांग्लादेश में सियासी उथल-पुथल के बाद अंतरिम सरकार का गठन हो गया है। जिसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा था कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की मुसीबतें कम जो जाएंगी, लेकिन उनकी परेशानियां कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। इतना ही नहीं, हिंदुओं का जीना अत्यंत मुश्किल हो गया है। पहलें जहां उन पर जमकर अत्याचार हुआ, वहीं अब उन्हें सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने पर मजबूर किया जा रहा है। खबर तो यहां तक है कि अब अब तक 50 हिंदू शिक्षकों से मजबूरन इस्तीफा दिलवाया गया है। खबर यह है कि जिनशिक्षकों ने डर से कैंपस में नहीं आने का फैसला किया है उनके घर तक जाकर उन्हें अपमानित किया जा रहा है

ढाका विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर चंद्रनाथ पोद्दार ने कहा कि मुझे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। वहीं कुछ शिक्षकों ने जबरन इस्तीफा लेने की भी पुष्टि की है। संजय कुमार मुखर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर, लोक प्रशासन और गवर्नेंस स्टडीज विभाग, काजी नजरुल विश्वविद्यालय, बांग्लादेश ने कहा, “दादा, मैं संजय कुमार मुखर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर, लोक प्रशासन और गवर्नेंस स्टडीज विभाग, काजी नजरुल विश्वविद्यालय, बांग्लादेश हूं। मुझे प्रॉक्टर और विभागाध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। हम इस समय बहुत असुरक्षित हैं।”

कैसे हुआ खुलासा
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई परिषद का एक संगठन बांग्लादेश छात्र परिषद ने शनिवार को एक प्रेस वार्ता में कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं को सरकारी नौकरी से जबरन निकाला जा रहा है। सरकारी बाकरगंज कॉलेज की प्रिंसिपल शुक्ला राय की इस्तीफा देते हुए फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस्तीफा देते वक्त सिर्फ इतना ही लिखा कि मैं इस्तीफा देती हूं, और उनका इस्तीफा ले लिया गया।

निर्वासित लेखिका ने कही यह बात
बांग्लादेश से निर्वासित लेखिका, तस्लीमा नसरीन ने पर लिखा कि, ‘बांग्लादेश में हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं। शिक्षकों को जबरन इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पत्रकार, मंत्री, और पूर्व सरकार के अधिकारियों को मारा जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है, और जेल में डाला जा रहा है। जनरेशन जी ने अहमदी मुसलमानों के उद्योगों को जला दिया है, और सूफी मुसलमानों की मजारें और दरगाहें इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा ध्वस्त की जा रही हैं। इस पूरे संकट पर नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की चुप्पी बरकरार है।’

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