‘भारत में लोकतंत्र खतरे में है।’ भारत में मेरी जासूसी की जा रही है।’ ब्रिटेन की जमीन पर राहुल गांधी के इन बयानों से यदि किसी को ताज्जुब हुआ हो तो मैं इससे सहमति नहीं रखता। हां, कांग्रेस के अघोषित सर्वेसर्वा यदि इस तरह की बातें नहीं करते, तो अवश्य हैरत होती। चलिए, विदेश में जाकर देश के बारे में ऐसे विचार जाहिर कर राहुल ने जता दिया कि उनकी भारत जोड़ो यात्रा में जोड़ने और तोड़ने के बीच कितना कम अंतर था।
इसे राहुल की केवल गलती नहीं कहा जा सकता। यह उनकी समस्या भी है। उन्हें मुद्दों की समझ नहीं है। समझ के लिए वे ‘आयात’ के मोहताज हैं। केंद्र सरकार के विरुद्ध उनके पास बोलने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए कुछ भी बोल जाते हैं। कांग्रेस में विद्वानों की आज भी कमी नहीं है। ऐसे-ऐसे धुरंधर इस दल में हैं, जो चाहें तो राहुल को बकवाद से बचा सकते हैं। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे। वरना ये संभव ही नहीं है कि मल्लिकार्जुन खरगे, शशि थरूर, जयराम रमेश, एके एंटोनी, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जैसे जानकार नेताओं वाली कांग्रेस में राहुल की ऐसी ‘गतिविधियों’ को सुधारा न जा सके।
इस घटनाक्रम से एक बात फिर साफ़ है। वह यह कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी राहुल राजनीतिक अनुभव में सिफर पर ही खड़े हैं। सियासी परिपक्वता को उन्होंने अब भी घर निकाला दे रखा है। उनके पास केंद्र के खिलाफ बोलने के लिए कोई नया विषय नहीं है। फिर, एक बात तो तय है, मामला विदेश का हो या विदेशी का, दोनों से साक्षात्कार होते ही राहुल गांधी में भयानक किस्म के बदलाव आ जाते हैं। पहले भी वे विदेशी प्रतिनिधियों की उपस्थिति में भारत में आतंकवाद से अधिक खतरा हिंदुत्व वाली थ्योरी से होने की बात कह चुके हैं। गलवान में जिस समय हमारे सैनिक चीन को खदेड़ रहे थे, तब राहुल गुपचुप तरीके से चीनी दूतावास के अधिकारियों के साथ भेंट और चर्चा करने में मसरूफ थे। बीते साल लंदन में राहुल ने कहा था कि पूरे भारत पर केरोसीन छिड़क दिया गया है और एक चिंगारी से आग भड़क सकती है। हालिया विजय दिवस के अवसर पर राहुल ने कहा कि चीन की सेना भारतीय सैनिकों को पीट रही है। ये सब विचित्र है। इसलिए जब मनोज मुन्तशिर इस बयान का जिक्र करते हुए चाणक्य के इस कथन को याद करते हैं कि विदेशी नारी से उत्पन्न संतान कभी भी राष्ट्र भक्त नहीं हो सकती, तब चाणक्य की दूरदर्शिता के लिए सिर श्रद्धा से झुक जाता है। वैसे मुन्तशिर ने यह कहते हुए किसी का नाम नहीं लिया था और हम भी ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन चाणक्य द्वारा कहे गए और राहुल द्वारा बार-बार करे गए के बीच का यह साम्य जिक्र करने लायक तो है।
जीतू पटवारी कांग्रेस के विधायक हैं। चर्चित हैं। विवादित भी। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी को ‘तेल लेने गयी’ के आदरसूचक भाव से संबोधित कर चुके हैं। मंत्री बने तो मीडिया को मंडी बताने की मुद्रा में आ गए थे। अब उन्होंने विधानसभा को हल्केपन की तराजू पर तौलने की हिमाकत की है। सरकार के विरोध में बोलते-बोलते ऐसी रौ में बहे कि नैतिकता को अनैतिकता के पास तेल लेने भेज दिया। जिसके चलते विधानसभा की कार्यवाही से उन्हें निलंबित कर दिया गया है।
गांधी हों या पटवारी, सवाल एक ही है। आखिर विरोध और विद्वेष के बीच के अंतर को कायम रहने दिया जाएगा या नहीं? कोई विदेशी मंच का प्रयोग देश की पगड़ी उछालने के लिए कर रहा है तो कोई विधानसभा जैसे पवित्र स्थान पर शालीनता की सीमाओं का अतिक्रमण कर गुजरा। उधर दुनिया के शक्तिशाली देश नए भारत को सराह रहे हैं और इधर राहुल गांधी अनर्गल प्रलाप कर इस छवि को बट्टा लगाने की कोशिश में हैं। यहां मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना अभियान शुरू हो रहा है और वहां जीतू पटवारी स्त्रियों के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी कर रहे हैं। आप बेशक नरेंद्र मोदी का विरोध कीजिए। शिवराज सिंह चौहान के साथ भी ऐसा ही कीजिए, लेकिन इसके नाम पर पूरे देश को बदनाम करने और स्त्री वर्ग का अपमान करने का अधिकार आपको किसने दे दिया?