निहितार्थ

इस प्रचंड के अखंड रहने की आशा

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय हितों के संरक्षण की दिशा में एक और क्रांतिकारी कदम उठाते हुए पेसा एक्ट को राज्य में आज से लागू कर दिया। पेसा एक्ट के तहत स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार दिए जाएंगे।

भगवान बिरसा मुंडा ने आजन्म जनजातीय समुदाय की सेवा की। अपने लोगों को ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचार और लूट-खसोट से बचाने के लिए आक्रामक तेवर दिखाए। वह विदेशी शासकों की नाक में दम करने में सफल रहे। क्योंकि ऐसा करने से पहले उन्होंने अपने समुदाय को उसके अधिकार और हालात से अवगत कराकर एकजुट किया। इसलिए मंगलवार को जब मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पेसा एक्ट की शुरूआत की, तो यह कहा जा सकता है कि इसके जरिये भगवान बिरसा मुंडा को उनकी जयंती पर सही अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित की गयी है। निःसंदेह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने जनजातीय समुदाय को जल, जमीन और जंगल के लिहाज से सामुदायिक हित के लिए एक सामानांतर व्यवस्था का लाभ प्रदान किया है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय हितों के संरक्षण की दिशा में एक और क्रांतिकारी कदम उठाते हुए पेसा एक्ट को राज्य में आज से लागू कर दिया। पेसा एक्ट के तहत स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार दिए जाएंगे। ऐसा होने से अनुसूचित जाति और जनजाति वाली ग्राम पंचायतों को सामुदायिक संसाधन जैसे जमीन, खनिज संपदा, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार मिल जाएगा।

इसे विस्तार से समझने के लिए पेसा एक्ट के प्रावधानों पर गौर करें, तो यह जनजातीय समुदाय को कई तरीके से अधिकार संपन्न करता है और उनकी सुरक्षा के भी इसमें ठोस प्रावधान किए गए हैं। यदि जनजातीय इलाकों की ग्राम पंचायत कृषि विभाग के माध्यम से मिट्टी के कटाव और पानी को बचाने का अधिकार रखती है, तो यह खेती की बेहतरी के लिहाज से सुखद पहल है। यह भी स्वागत योग्य है कि इस एक्ट में किसानों को नक्शा या खसरे के लिए तहसील के चक्कर नहीं लगाने होंगे। ग्राम सभा ही गांव की जमीन से जुड़े मामले का प्रस्ताव पारित कर सीधे पटवारी को भेज देगी।

इतना ही नहीं, इसमें आदिवासियों की जमीन का इस्तेमाल न बदलने तथा उनकी गैर-आदिवासी के नाम की गयी और बटाई के लिए बंधक की गयी जमीन वापस दिलाने का प्रावधान भी किया गया है। ग्राम सभा ही इन क्षेत्रों में जल प्रबंधन का अधिकार भी रखेंगी। एक और बड़ी बात यह कि इस एक्ट के बाद जनजातीय क्षेत्रों में वहां की महिलाओं के समूह गौण खनिज के टेंडर भी ले सकेंगे। इससे उनकी आर्थिक शक्ति तथा आत्मनिर्भरता में वृद्धि होगी। तेंदू पत्ता इन क्षेत्रों की आजीविका का बहुत बड़ा जरिया है और एक्ट कहता है कि दस ग्राम सभाएं मिलकर इस शर्त पर इसकी तुड़ाई का टेंडर खुद निकाल सकती हैं कि ऐसा करने पर सरकार द्वारा तय की गयी दर से अधिक बोनस मिल सकता है।इसके साथ ही पलायन रोकने, रोजगार की योजना बनाने, शराब की दुकान हटवाने, अवैध खनन पर रोक जैसे अधिकार देकर पेसा में ग्राम सभाओं के माध्यम से आदिवासियों को और सशक्त बनाया जा रहा है।

क्या ऐसा नहीं लगता कि पेसा एक्ट में भगवान बिरसा मुंडा जी की इच्छाओं को धड़कन प्रदान करने की कोशिश हो रही हो? तब अंग्रेज थे, और अब उसी मानसिकता के ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिन्होंने दशकों तक जनजातीय समुदाय को निचोड़ने में कोई कसर नहीं उठा रखी। भोला-भाला आदिवासी लगातार आदिकाल का वासी बने रहने को ही अभिशप्त रहा और उसके नाम पर लोग मालामाल होते चले गए। पेसा के प्रावधान पढ़ें तो यह उम्मीद जागती है कि अब इस सब पर रोक की ठोस शुरूआत हो सकेगी। आरम्भ तो यकीनन प्रचंड है और जिस तरह से यह हुआ है, वह इस प्रचंड के अखंड रहने की आशा का संचार भी कर रहा है।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button