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OBC आरक्षण की वकालत में प्रभु श्रीराम के अपमान के आरोप को सरकार ने बताया निराधार

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मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के मामले में राज्य सरकार द्वारा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत हलफनामे के कुछ अंशों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

इंटरनेट मीडिया पर इन अंशों के आधार पर प्रदेश की भाजपा सरकार पर भगवान राम और आचार्य द्रोणाचार्य का अपमान करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। प्रसारित सामग्री में पुरानी जातिगत व्यवस्था पर की गई टिप्पणियां भी शामिल हैं।

बताया जा रहा है कि इन अंशों में उल्लेख है कि धार्मिक व्यवस्था के उल्लंघन पर ऋषि शम्बूक का वध किया गया, जबकि वह तपस्या कर रहे थे। यह दर्शाता है कि छोटी जाति का व्यक्ति श्रेष्ठ कार्य करे, यह नियमों के खिलाफ माना गया। राजा राम द्वारा शम्बूक का वध करवाने को सामाजिक व्यवस्था का उल्लंघन माना गया।

इसके अतिरिक्त, द्रोणाचार्य द्वारा भील पुत्र एकलव्य को शिक्षा देने से मना करने का उदाहरण भी दिया गया है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब छोटी जाति के कारण योग्य व्यक्तियों को विद्या से वंचित रखा गया।

जब मामला बढ़ा तो प्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया कि इंटरनेट मीडिया में प्रसारित अंश हलफनामे का हिस्सा नहीं हैं और न ही यह राज्य की किसी नीति का भाग है। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने भी कहा कि कुछ शरारती तत्व दुष्प्रचार कर रहे हैं। सच यह है कि ये अंश महाजन आयोग की 1983 की रिपोर्ट से लिए गए हैं, न कि वर्तमान शासन से।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण का मामला विचाराधीन है। वर्तमान में सरकारी नौकरियों में आरक्षण 63 प्रतिशत है, जिसमें अनुसूचित जातियों को 20, अनुसूचित जनजातियों को 16 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।

कमल नाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था, जिससे कुल आरक्षण 63 प्रतिशत हो गया, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है। वहीं, भारत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान भी किया है, जो आरक्षण की सीमा में नहीं आता है।

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