सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आरक्षण व्यवस्था पर गंभीर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि देश में आरक्षण व्यवस्था रेल यात्रा की तरह हो गई है जो डिब्बे में घुस गए हैं वे नहीं चाहते कि कोई और घुसे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब आप समावेशिता के सिद्धांत का पालन करते हैं तो राज्य का दायित्व है कि वह और वर्गों की पहचान करे। वहां सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा, राजनैतिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा। वे लोग लाभ से क्यों वंचित रहने चाहिए। ये सिर्फ एक निश्चित परिवार या वर्ग तक ही सीमित क्यों रहे। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से ये टिप्पणी महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव में ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामले पर सुनवाई के दौरान कीं।
वैसे हाल के दिनों में आरक्षण बढ़ाने और संख्या के लिहाज से हिस्सेदारी को लेकर राजनीति में हो रही बयानबाजी के लिहाज से भी यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है। जबकि एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण विवाद लंबित होने के कारण लंबे समय से स्थानीय निकाय चुनाव न होने का संज्ञान लेते हुए महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह चार सप्ताह में स्थानीय निकाय चुनाव अधिसूचित करे।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव 2022 में ओबीसी आरक्षण पर बंथिया कमीशन की रिपोर्ट आने के पहले के आंकड़ों और व्यवस्था के मुताबिक होंगे। हालांकि चुनाव कोर्ट के अंतिम फैसले पर निर्भर करेंगे। मंगलवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ जब महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी तो एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण ने बंथिया कमीशन में की गई ओबीसी आरक्षण की सिफारिशों का विरोध करते हुए कहा कि बंथिया कमीशन ने अन्य पिछड़ा वर्ग को स्थानीय निकाय चुनाव में बिना यह विचार किए हुए आरक्षण दे दिया कि ओबीसी राजनैतिक रूप से पिछड़े भी हैं कि नहीं।
शंकर नारायण ने कहा कि राजनैतिक पिछड़ापन, और सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन में अंतर है। ओबीसी को स्वत: राजनैतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता। जब शंकर नारायण ने ये दलीलें दीं उसी समय पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस सूर्य कांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बात ये है कि देश में आरक्षण व्यवस्था रेल यात्रा की तरह हो गई है। जो लोग डिब्बे में घुस गए हैं वे नहीं चाहते कि कोई और घुसे। यही सारा खेल है। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है। इस पर शंकर नारायण ने कहा कि, पीछे से और बोगियां जोड़ी जा रही हैं।
जस्टिस सूर्य कांत ने आगे भी कहा कि जब आप समावेशिता के सिद्धांत का पालन करते हैं तो राज्य का दायित्व है कि वह और वर्गों की पहचान करे। वहां सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा, राजनैतिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा। वे लोग लाभ से क्यों वंचित रहने चाहिए। ये सिर्फ एक निश्चित परिवार या वर्ग तक ही सीमित क्यों रहे। जस्टिस कांत की इन मौखिक टिप्पणियों पर शंकर नारायण ने कहा कि याचिकाकर्ता भी यही मुद्दा उठा रहा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा कि ओबीसी आरक्षण का मुद्दे के कारण महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनावों में और देर नहीं होनी चाहिए।