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ट्रांसजेंडर समावेशी यौन शिक्षा पर 6 राज्यों से सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

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सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के स्कूलों में ट्रांसजेंडर समावेशी यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार, एनसीईआरटी और छह राज्यों से जवाब मांगा है। यह याचिका दिल्ली की वसंत वैली स्कूल की कक्षा 12वीं की छात्रा काव्या मुखर्जी साहा ने दायर की है।

काव्या मुखर्जी साहा की याचिका में कहा गया है कि एनसीईआरटी और एससीईआरटी की किताबों में अभी तक आयु-उपयुक्त और ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा को समावेशित नहीं किया गया है। उनका तर्क है कि जब तक बच्चों को शुरुआती शिक्षा से ही जेंडर संवेदनशीलता और विविधता की समझ नहीं दी जाएगी, तब तक समाज में समानता और स्वीकार्यता लाना मुश्किल होगा।

2014 के आदेश अब तक लागू नहीं

याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम भारत सरकार मामले में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ट्रांसजेंडर-समावेशी शिक्षा को लागू किया जाए। लेकिन आज तक इन आदेशों को लागू नहीं किया गया।

याचिका के मुताबिक, एनसीईआरटी और कई राज्य स्तरीय परिषदों ने अब तक ट्रांसजेंडर पर्सन्स (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत दी गई अनिवार्य व्यवस्थाओं को भी लागू नहीं किया है। इस अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए समावेशी शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का स्पष्ट प्रावधान है।

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने कहा, “यह साफ दिखाता है कि अदालत के आदेश लागू नहीं किए गए हैं। यौन शिक्षा सिर्फ औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, इसमें लैंगिक संवेदनशीलता और ट्रांसजेंडर-समावेशी दृष्टिकोण भी होना जरूरी है।”

याचिका में कहा गया है कि यह कमी न केवल अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(a), 21 और 21A के तहत छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 39, 46 और 51(c) जैसे निदेशक सिद्धांतों की भी अवहेलना है। इस तरह की अनदेखी संस्थागत भेदभाव और सामाजिक कलंक को बढ़ावा देती है।

याचिका में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक की पाठ्यपुस्तकों का हवाला दिया गया है, जिनमें इन विषयों को व्यवस्थित रूप से नजरअंदाज किया गया है। वहीं, केरल ने आंशिक रूप से इन मुद्दों को शामिल किया है।

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