सुप्रीम कोर्ट ने बिहार एसआईआर पर सोमवार को सुनवाई के दौरान साफ किया कि चुनाव आयोग वैसे तो एक संवैधानिक संस्था है और वह अपना काम तय कानूनी प्रक्रियाओं के तहत ही करती है। बावजूद इसके आयोग की ओर से बिहार एसआईआर को लेकर कानूनी रूप से किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी की गई होगी तो वह किसी भी स्तर पर इसे रद्द कर देगा।
कोर्ट ने इसके साथ ही बिहार सहित देश भर में शुरु होने वाले एसआईआर पर रोक की मांग को भी खारिज कर दिया और कहा कि एसआईआर एक चुनावी प्रक्रिया है वे इस पर रोक नहीं लगा सकते है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार एसआईआर पर सुनवाई के दौरान यह अहम टिप्पणी तब की, जब याचिकाकर्ताओं की ओर से यह कहा गया कि आयोग मनमानी तरीके से राज्य में एसआईआर को पूरा कर रहा है, 30 सितंबर को वह अपनी अंतिम मतदाता सूची भी प्रकाशित कर देगा। ऐसे में कोर्ट को दखल देते हुए गलत तरीके से किए जा रहे इस एसआईआर पर रोक लगानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि वे सभी निश्चंत रहे। मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन से हम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा? अगर इसमें किसी तरह की कोई कानूनी गड़बड़ी मिलती है, तो हम इसे रद कर सकते हैं। कोर्ट के इसके साथ ही बिहार एसआईआर मामले की अगली सुनवाई के लिए अब सात अक्टूबर की तारीख तय की है।
कोर्ट इस दौरान यह भी साफ किया कि बिहार एसआईआर को लेकर दिए गए उनके निर्देश देश भर में होने वाले एसआईआर पर लागू होगा। जिसमें कोर्ट ने आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में शामिल करने जैसा अहम निर्देश भी दिया था। कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि आयोग अब देश भर में एसआईआर कराने जा रहा है, ऐसे में इस पर तेजी से सुनवाई करें।
आरजेडी की ओर से पेश हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग एसआईआर को लेकर पारदर्शिता नहीं बरत रहा है। वहीं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश हुए गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि एसआईआर की कानूनी प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े किए थे। वहीं चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कोर्ट से मांग की कि वह एसआईआर का काम पूरा होने तक ही सुनवाई को टाल दें।
बिहार एसआईआर पर सुनवाई के दौरान आधार को 12 वें दस्तावेज के रूप में शामिल किए जाने के आदेश को भी चुनौती दी गई। वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट के 8 सितंबर के आदेश को वापस लेने के लिए एक अंतरिम आवेदन दायर करते हुए कहा कि ‘ न्यायालय के छह फैसले हैं जो ये कहते हैं कि आधार उम्र, निवास या नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इसलिए उसे 11 दस्तावेजों के बराबर नहीं माना जा सकता। ऐसा किया गया तो पूरी एसआईआर प्रक्रिया विनाशकारी होगी।’
उन्होंने कहा कि बिहार में एक लाख से ज्यादा रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिक हैं। कानून के तहत, विदेशियों को भी आधार दिया जा सकता है और यह किसी ग्राम प्रधान, स्थानीय विधायक या सांसद के सिफारिश पत्र पर बनाया जा सकता है। कोर्ट ने उनकी दलील पर नोटिस जारी कर सात अक्टूबर को सुनने का फैसला दिया। हालांकि यह कहा कि आधार को एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में स्वीकार्य बनाया गया है। यह विनाशकारी होगा या नहीं, इस पर फैसला चुनाव आयोग करेगा।