ये ठीक नहीं हो रहा। इसके दुष्परिणाम भी किसी भी सूरत में ठीक नहीं होंगे। नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) के कथन को लेकर शुक्रवार को देश के कई हिस्से हिंसा (violence) की आग में झोंक दिए गए। इसकी शुरूआत बीते शुक्रवार को कानपुर (Kanpur) से हुई थी। जांच के दौरान यह सामने आया कि इसके पीछे विवादित संगठन PFI का हाथ है। फिर शुक्रवार को जिस तरीके से प्रयागराज सहित उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के कुछ शहरों और झारखंड (Jharkhand), कश्मीर (Kashmir) और अन्य जगहों पर इसी हिंसा की आग फैली, उसमें कहीं न कहीं यह आशंका छिपी हुई है कि मामला विरोध भड़कने की बजाय अब साजिशन विरोध भड़काने वाला होता जा रहा है।
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के छिंदवाड़ा (Chhindwara) में भी कल ऐसी ही गड़बड़ी की कोशिश को पुलिस की सक्रियता से रोक दिया गया। धार्मिक भावनाओं के आहत होने वाली बात स्वाभाविक है। लेकिन अब ये उन्मादी भीड़ आखिर चाह क्या रही है? चलिए कि आपको नुपुर शर्मा द्वारा अपने शब्द वापस लेने भर से चैन नहीं पड़ा। यह भी माना जा सकता है कि भाजपा (BJP) से नुपुर की छुट्टी होने मात्र से आप संतुष्ट नहीं हैं। लेकिन कम से कम इस बात से कुछ तो इत्तेफाक रखिये कि शर्मा के खिलाफ पुलिस में प्रकरण दर्ज किये जा चुके हैं और किसी भी समय उनकी गिरफ्तारी हो सकती है।
किसी क्रेन (crane) पर लटकाया गया नुपुर का पुतला इतना ‘ऊंचा’ क्यों दिख रहा है कि उसके नीचे कानून की देवी की प्रतिमा भी बौनी नजर आने लगी है? आप क्यों नहीं इस बात पर यकीन रख पा रहे हैं कि अब कानून (law) अपना काम करेगा? क्या धार्मिक उन्माद में आप इतने अंधे हो गए हैं कि आपको कानून की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी का रंग भी भगवा नजर आने लगा है? आपका गुस्सा नुपुर से है, तो फिर उसका खामियाजा वह पुलिस क्यों भुगत रही है, जो आपको कानून हाथ में लेने से रोक रही है? रांची में कल एक दर्जन पुलिस वाले घायल हो गए। क्या उन सभी का नाम ‘नुपुर शर्मा’ था? या क्या वे भीड़ के सामने भाजपा से निलंबित नेत्री की पैरवी कर रहे थे? फिर आप भूल रहे हैं कि इस देश में अकेले आप ऐसे नहीं हैं जिनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुर्इं हैं। याद कीजिए देश के बहुसंख्यकों और एम एफ हुसैन (MF Hussain) की बनाई देवी देवताओं की पेंटिग्स की। तब बहुसंख्यकों ने आप जैसा ही आक्रोश दिखाते हुए खुद को भीड़ तंत्र में बदला होता तो क्या होता? जब आप बहुत दम भर के इस देश के अपना होने का दावा जताते हैं तो इस देश के संविधान और कानून का पालन भी करिए। पता है ना यहां शरिया कानून (sharia law) नहीं है कि इस देश की कोई अदालत या सरकार नुपूर शर्मा को भीड़ में सजा देने के लिए फेंक देगी। देश एक सभ्यता और संस्कृति का पालन करता है, उसे आपको भी अपनाना ही होगा।
मुस्लिम देशें में ईरान (Iran) ने इस मसले पर भारत सरकार (Indian government) के रुख की सराहना की है। कतर और पाकिस्तान (Pakistan) सहित तुर्की के बोल भी अब मध्यम हो चले हैं। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल (NSA Ajit Doval) ने साफ कहा है कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ वह कार्यवाही की जाएगी कि आगे से कोई ऐसा करने का साहस न करे। फिर दोहराया जा सकता है कि मामला कानून तक पहुंच चुका है। तो क्या तुक रह जाती है इस सब बखेड़े को और खाद-पानी दिए जाने की? क्या अब भीड़ यह तय करेगी कि देश का कानून कैसे काम करे?
कभी सोचिये कि यदि इस क्रिया की प्रतिक्रिया में दूसरा पक्ष भी इसी तरह सड़क पर उतर आया तो क्या होगा? वैसे तो उन्मादी भीड़ का नेतृत्व करने वालों के मंसूबे भी यही हैं कि देश में गृह-युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए जाएं। CAA और NRC सहित किसान आंदोलन (farmers movement) के समय ऐसे हालात बनते भी दिखे थे। दिल्ली दंगों की तो पूरी पटकथा जैसे देश के एक और विभाजन के हिसाब से ही रची गयी थी। क्या हल हुआ उस सबका? कुछ की राजनीति चमक गयी और उनके पीछे खड़ी भीड़ कहीं पुलिस की लाठी तो कहीं कानूनी कार्यवाही की तकलीफ झेलने पर विवश हो गयी। क्या ये बात अलग से बताने की जरूरत है कि ऐसी हिंसा में मरने, घायल होने और अपनी संपत्ति का नुकसान झेलने वाले हिन्दू या मुस्लिम (Hindu or Muslim) नहीं, केवल आम इंसान के रूप में पहचाने जाते हैं। जो किसी खास मंसूबे वालों के एजेंडे का शिकार हो जाते हैं।
बहुत आवश्यक है कि इस विषय पर अब दूसरा पक्ष भी शांति से काम ले। भड़काने वाली पोस्ट या विचारों से परहेज करे। सख्त निंदा की जानी चाहिए उनकी जो सोशल मीडिया (social media) पर शुक्रवार को ‘पत्थरवार’ लिख रहे है। शुक्रवार को किसने किस रूप में बदलने की कोशिश की है, इसका फैसला कानून करेगा, आप और हम नहीं। हम सभी संकल्प लें कि मन, वचन और कर्म से इस विषय पर संयम कायम रखें। कृपया नुपुर के पुतले को कानून की देवी की प्रतिमा से ऊंचा होने से रोकिये।