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कुछ हैरत, बहुत कुछ उम्मीद शिवराज से

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थोड़ी-सी हैरत है। बहुत सारी उम्मीदें भी। दोनों का रुख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की तरफ है। हैरत इस बात की कि संवेदनशीलता (Sensitivity) के अनगिनत अनुकरणीय उदाहरण पेश करने वाले चौहान इस मर्तबा कुछ मामलों में कंजूस दिख रहे हैं। कोरोना पीड़ितों (Corona victims) के लिए एक के बाद एक उन्होंने कई एलान किए हैं। अब कोरोना से बीती 1 मार्च को हुई शासकीय सेवक (Government servant) की मौत पर उसके आश्रित को अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate appointment) और पांच लाख रूपए देने का उन्होंने ऐलान किया है। खास बात यह है कि शिवराज ने इसमें सरकार के सभी श्रेणी के कर्मचारियों को शामिल किया है। कोरोना वारियर श्रेणी (Corona Warrior Range) में इजाफा कर सरकारी मदद को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का बंदोबस्त भी शिवराज ने ही किया है। दो दिन पहले उन्होंने घोषणा की है कि प्रदेश में कोरोना से किसी दंपति का निधन होने पर उसके आश्रितों को पांच हजार की पेंशन दी जाएगी। कोविड-19 (Covid-19) के लगातार बढ़ते कहर के बीच शिवराज ने इस घोषणा के माध्यम से एक बार फिर आम जनता की मदद के लिए बड़ा कदम उठाया है। इससे पहले उन्होंने कोरोना की दवाओं तथा इसके इलाज के लिए जरूरी उपकरणों की कालाबाजारी (Black marketing) या जमाखोरी (Hoarding) करने वालों पर सख्ती की है। मरीजों से ज्यादा बिल वसूलने वाले अस्पताल भी सरकार की सख्ती के दायरे में आएं हैं। आयुष्मान कार्ड (Ayushman Card) होने पर प्राइवेट अस्पताल (Private hospital) में पांच लाख तक का मुफ्त इलाज (Free treatment) कराने की व्यवस्था वह कर चुके हैं। आनकानी कर रहे निजी अस्पतालों पर शिवराज का अंकुश और कसेगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है।





जब सब ठीक है तो फिर हैरत बीच में क्यों? जी हां, हैरत है। इस बात की कि इतनी उदारता भरी घोषणाएं करने के बावजूद शिवराज ने प्रदेश में किसी भी दंपति के निधन पर केवल पांच हजार की पेंशन का ही बंदोबस्त क्यों किया है? ये राशि कम से कम ग्यारह हजार रुपये तो होना ही चाहिए थी। महंगाई के इस दौर में पांच हजार की राशि बहुत कम है। और शिवराज जैसे कि हैं, तो उम्मीद की जा सकती है कि वह इस दिशा में जल्दी ही पूरक घोषणा कर पेंशन की राशि बढ़ाने वाली राहत प्रदान कर सकते हैं। मुझे याद है जून, 2013 की। तब भी शिवराज ही मुख्यमंत्री थे। राज्य के आईएएस अफसर टी धमार्राव (IAS officer T Dhamrao) की लद्दाख में एक सड़क हादसे में पत्नी सहित मृत्यु हो गई। इसी दिन एक घटना और हुई थी, खरगौन में बाइक पर सवार एक दंपति ने आसमान से गिरी बिजली की चपेट में आकर दम तोड़ दिया था। उनका नाबालिक बच्चा भी उनके साथ था जो इस घटना से बच गया था और अखबारों में मां-बाप के शव के पास मासूम बच्चे की मार्मिक फोटो प्रकाशित हुई थी। धमार्राव प्रकरण के बाद शिवराज सरकार ने एक नियम बनाया। तय किया गया कि किसी सरकारी अफसर (Government officer) या कर्मचारी की पत्नी के साथ आपात मृत्यु होने पर उनके आश्रित नाबालिग बच्चों को अफसर के शेष कार्यकाल का पूरा वेतन दिया जाएगा। साथ ही इन बच्चों को उसके पालक के सेवानिवृत्त (Retired) होने पर मिलने वाली पेंशन भी उनके व्यस्क और रोजगार से लगने तक मिलती रहेगी।





इस नियम के आकार लेने के समय ही खरगोन की घटना ने भी सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। मृत दंपति के शव के पास बिलख रहे उनके मासूम बच्चे (Innocent children) के फोटो ने हर किसी को दहला कर रख दिया था। ऐसे मे सरकार के पास यह महत्वपूर्ण सुझाव आया कि राज्य में एक साथ किसी भी घटना-दुर्घटना (incident accident) में अपने माता-पिता को खोने वाले किसी भी अनाथ को ‘राज्य की संतान’ का दर्जा देकर सरकार उनकी परवरिश में मदद दें। उन्हें मासिक तौर पर कम से कम 11, 000 रुपये की मदद दी जाए। जाहिर है यह सुझाव अच्छा था लेकिन अब अफसरों ने मुख्यमंत्री को जो भी समझाया हो, वो लागू नहीं हुआ। वो अब जाकर लागू हुआ जब खबरें आई कि कोरोना (Corona) में कई बच्चे अनाथ हो गए हैं। पर सवाल तो उठता ही है कि आज क्या हो गया है कि कोरोना से ऐसी मौत के मामलों में सरकार का हाथ कुछ तंग दिख रहा है! क्यों किसी दंपति के इस रोग से निधन पर मिलने वाली पेंशन कम से कम ग्यारह हजार रुपये नहीं की जा सकती है! न कोरोना से इस तरह की मृत्यु की दर बहुत अधिक है और न ही सामान्य परिस्थितियों में भी दंपति की एक साथ मौत के ज्यादा मामले सामने आते हैं। यानि कोरोना हो या फिर सामान्य अवस्था में हुई ऐसी दुर्भाग्यजनक घटनाएं जिनमें माता-पिता की मौत के बाद बच्चा अनाथ हो तो सरकार उसे राज्य की संतान का दर्जा देकर क्यों नहीं 11 हजार रूपए महीना उसके पालन पोषण के लिए दे सकती है। ऐसी घटनाएं बहुत कम ही होती हैं इसलिए सरकार यदि पेंशन (Pension) की राशि में इजाफा करती है, तब भी उसके खजाने पर कोई बहुत अधिक बोझ नहीं आएगा।

 

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अब ये मानसिकता तो किसी की भी नहीं हो सकती कि Corona से खुद के मौत का बंदोबस्त सिर्फ इसलिए कर ले कि ऐसा होने पर सरकार उसके परिवार को भारी-भरकम पेंशन देगी। या कोई शख्स यह सोचकर तो अपने कोरोना पीड़ित होने की कामना नहीं ही करेगा कि ऐसा होने पर उसे प्राइवेट अस्पताल (Private hospital) में पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिल सकेगा। जबकि शिवराज सरकार (Shivraj government) ने यह दोनों ही प्रावधान किए हैं। बात कहने का आशय केवल यह है कि ग्यारह हजार रुपये की पेंशन भी किसी बड़े आर्थिक भार का सबब नहीं बनेगी। इसलिए सरकार को इस दिशा में और सद्भावना के साथ विचार करना चाहिए। शिवराज ने कोरोना काल (Corona times) में करुणा के अनेक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किये हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पेंशन वाले आदेश में उन्होंने कोई विद्वेष से काम लिया है। निश्चित ही यह विसंगति वाला मामला है और इसमें शिवराज से उम्मीद है कि वे सुधार का कदम जल्दी ही उठाएंगे।

 

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