मध्यप्रदेश के सागर जिले के चित्रकार असरार अहमद की पेंटिंग नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में काफी सराही गई।
नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रकृति जंगल और वन प्राणियों के बीच आदिवासी समुदायों के गहरे संबंध को दर्शाने वाली कला प्रदर्शनी का आयोजन 9 से 12 अक्टूबर तक किया गया। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया।
संकला फाउंडेशन द्वारा आयोजित नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) और इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (आईबीसीए) के सहयोग से यह प्रदर्शनी आयोजित की थी। इस राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का शीर्षक- ‘मौन संवाद: हाशिये से केंद्र तक’ (साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर) था। इसमें बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों और उनका संरक्षण करने वाले जंगलों के आसपास रहने वाले आदिवासी समुदायों के कलाकारो के बनाये चित्रों को दिखाया गया इस इस प्रदर्शनी में देश भर के 17 राज्यों से आए है 50- से कलाकारों की लगभग ढाई सों पेंटिंग्स और हस्तशिल्प प्रदर्शनी की है
इस प्रदर्शनी में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व नौरादेही के माध्यम से चित्रकार असरार अहमद की वाराह (महावाराह) की पेंटिंग चयनित हुई थी। सागर के पुरातात्विक स्थल ऐरण में वाराह की मूर्ति है। यह पुरातत्व की दृष्टि से अत्य महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा शिल्प है जो भारतीय प्राचीन परंपरा में मानव के साथ वन्य प्राणियों के सहजीवन को तो जाहिर करता ही है, इसे भारतीय धार्मिक परंपरा में भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। वाराह को भगवान विष्णु का एक अवतार माना जाता है। असरार अहमद ने इस शिल्प की कैनवास पर पेंटिंग बनाई है। इस कलाकृति को राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में दर्शकों की भरपूर सराहना मिली।
असरार अहमने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में अपने फन से कला मनीषियों और कला रसिकों को परिचित कराने का अनुभव यादगार रहा। इस आयोजन में देश भर के कलाकारों से मिलना, उनकी कला से रूबरू होना भी शानदार अनुभव था। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिला। सागर का प्रतिनिधित्व करते हुए मैं गौरवान्वित हुआ।
इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य कला के जरिए समुदायों की वन्य जीवन संरक्षण की भावना को प्रोत्साहित करना और उनकी कला को राष्ट्रीय मंच पर लाना था। इसमें आदिवासी कला और कलाकारों को प्रोत्साहित किया गया। इस प्रदर्शनी के तहत 10 अक्टूबर को केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंग शेखावत जी के मुख्य आतिथ्य में एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया गया, जिसमें संरक्षण, आदिवासी संस्कृति और समावेशी नीतियों पर चर्चा हुई।
इस प्रदर्शनी के जरिए प्रकृति और आदिवासी समुदायों के बीच सदियों पुराने अनूठे रिश्ते का जश्न मनाया गया। इस आयोजन के जरिए न केवल आदिवासी समुदायों की कला और संस्कृति को प्रदर्शित किया गया, बल्कि वन्य जीव के संरक्षण के ज्ञान और तरीकों को भी व्यापक रूप से प्रचारित किया गया। इस प्रदर्शनी में देश के 20 से अधिक टाइगर रिजर्व और वन क्षेत्रों से लाई गई 250 से अधिक पेंटिंगें और कलाकृतियां प्रदर्शित की गईं। इन कलाकृतियों के माध्यम से आदिवासी समुदायों और वनवासियों की कला को सम्मानित किया गया।