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ऑर्डनेंस फैक्ट्री की 30 याचिकाएं मप्र हाईकोर्ट से खारिज,केंद्र सरकार पर ठोका 3 लाख का जुर्माना

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मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक ऐतिहासिक और कड़ा फैसला सुनाते हुए जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री की ओर से दायर 30 याचिकाओं को खारिज कर दिया।

ये सभी याचिकाएं केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई थीं। जिसमें कर्मचारियों को ओवरटाइम भत्ते के भुगतान का निर्देश दिया गया था। अदालत ने इन याचिकाओं को निराधार और समय बर्बाद करने वाला करार देते हुए केंद्र सरकार पर 3 लाख का जुर्माना भी ठोका है।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का यह फैसला एक मिसाल की तरह देखा जा रहा है। इसने जहां कर्मचारियों को न्याय दिलाया। वहीं प्रशासन और सरकार को भी यह सख्त संदेश दिया कि वे न्यायिक संस्थाओं का समय बर्बाद करने वाली निराधार अपीलों से बाज आएं। अदालत द्वारा लगाया गया जुर्माना प्रशासनिक लापरवाही पर सीधी चोट है।

कर्मचारियों की भाषा में कहा जाए तो यह फैसला उनके संघर्ष की जीत है, जबकि सरकार और प्रशासन के लिए आत्ममंथन का समय। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार और संबंधित संस्थान इस फैसले से क्या सबक लेते हैं और कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर कितनी गंभीरता दिखाते हैं।

जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री के कर्मचारियों ने कई वर्षों से यह मांग की थी कि उन्हें अतिरिक्त काम करने पर ओवरटाइम भत्ता दिया जाए। कर्मचारियों का तर्क था कि वे निर्धारित कार्यघंटों से अधिक समय तक काम करते हैं, लेकिन उन्हें उसका उचित भुगतान नहीं किया जाता। इस मामले में कर्मचारियों ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया।

कैट ने सुनवाई के बाद कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ओवरटाइम भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। लेकिन ऑर्डनेंस फैक्ट्री प्रशासन ने इस आदेश को मानने के बजाय उच्च न्यायालय में चुनौती दी और कुल 30 अलग.अलग याचिकाएं दायर कर दीं। इन याचिकाओं में दावा किया गया कि कर्मचारियों की मांगें अनुचित हैं और उनके लिए अतिरिक्त भुगतान का कोई कानूनी आधार नहीं है।

मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने केंद्र सरकार और ऑर्डनेंस फैक्ट्री प्रशासन की कड़ी खिंचाई की। अदालत ने कहा कि कर्मचारियों का वैध हक रोकना न केवल उनके श्रम का शोषण है, बल्कि सरकारी संस्थाओं की जिम्मेदारी से मुंह मोडऩे जैसा है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि पहले से ही कैट जैसे विशेषज्ञ संस्थान ने मामले की गहन जांच कर स्पष्ट आदेश दिया था। ऐसे में उसी आदेश को बिना ठोस आधार के चुनौती देना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत ने केंद्र सरकार से तीखे शब्दों में कहा कि इस तरह के अनावश्यक मुकदमों से न्यायालय का कीमती समय बर्बाद होता है और न्याय प्रक्रिया पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

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