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इसरो ने देश का सबसे वजनदार संचार उपग्रह लांच किया, बाहुबली दिया नाम

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) रविवार को देश के सबसे भारी स्वदेशी संचार उपग्रह सीएमएस-03 (जीसैट-7आर) को यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5.26 बजे सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।

लगभग 4,410 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह को पहली बार भारतीय सरजमीं से प्रक्षेपित किया गया है। इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) में स्थापित कर दिया गया है, जहां से ये जियोस्टेशनरी आर्बिट में भेजा जाएगा। यह उपग्रह देश के सबसे शक्तिशाली राकेट लांच व्हीकल मार्क3- एम5 (एलवीएम3-एम5) के जरिये प्रक्षेपित किया गया।

इसे इसरो का बाहुबली राकेट बताया जाता है, जो चंद्र मिशन के दौरान अपनी काबिलियत साबित कर चुका है। ये राकेट अब तक पांच मिशनों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में ले जा चुका है। इसरो के मुातबिक जीसैट-7आर पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में मजबूत दूरसंचार कवरेज प्रदान करेगा।

इसके पेलोड में कई संचार बैंडों पर वायस, डेटा और वीडियो लिंक का सपोर्ट करने में सक्षम ट्रांसपोंडर शामिल हैं। यह उपग्रह उच्च क्षमता वाले बैंडविड्थ के साथ नौसेना की कनेक्टिविटी को कई गुना बढ़ाएगा, जिससे युद्धपोतों, विमानों, पनडुब्बियों और भारतीय नौसेना के समुद्री संचालन केंद्रों के बीच निर्बाध और सुरक्षित संचार संपर्क संभव होगा।

इस सैटेलाइट से क्या मिलेगी मदद?

इसकी उच्च क्षमता वाली बैंडविड्थ से दूरस्थ क्षेत्रों तक डिजिटल पहुंच में सुधार होगा। इससे नागरिक एजेंसियों को मदद मिलेगी और रणनीतिक अनुप्रयोगों में सुधार होगा। ये उपग्रह 2013 में लांच जीसैट-7 (रुक्मिणी) की जगह लेगा, जो फिलहाल नौसेना के संचार का मुख्य आधार है।

‘रुक्मिणी’ ने युद्धपोतों, पनडुब्बियों, विमानों और किनारे पर बने कमांड के बीच सुरक्षित रीयल-टाइम कनेक्शन संभव बनाए हैं। उल्लेखनीय है कि इसरो ने इससे पहले पांच दिसंबर, 2018 को एरियन-5 वीए-246 राकेट द्वारा फ्रेंच गुयाना के कौरू प्रक्षेपण स्थल से लगभग 5,854 किलोग्राम के सबसे भारी संचार उपग्रह जीसैट-11 को प्रक्षेपित किया था।

जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) में स्थापित उपग्रह में लगा इंजन इसे जियोस्टेशनरी आर्बिट में ले जाएगा। ये आर्बिट भूमध्य रेखा से 35,786 किलोमीटर ऊपर स्थित है। यहां उपग्रह एक ही जगह स्थिर होता है और धरती के साथ-साथ घूमता है। इससे ये 24 घंटे की कवरेज दे सकता है। माना जा रहा है कि ये उपग्रह अगले 15 वर्षों तक सेवा में रह सकता है।

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