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क्या ये ‘दिमाग भटकाऊ’ अस्त्र है ?

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एक सवाल सहज रूप से उठ रहा है। मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) में अदालत और पुलिस नाम की संस्थाओं का कोई अस्तित्व बाकी नहीं बचा है क्या? ऐसा लगना बेमायने वाली बात नहीं है। कहने को तो हनी ट्रेप (Honey trap) का मामले की जांच उच्च अदालत (High court) की निगरानी में चल रही है। SIT इसकी जांच कर रही है। मगर इन दो संस्थाओं से बाहर एक-एक समानांतर अदालत तथा पुलिस थाना चलने जैसे घटनाक्रम हो रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) फिर गरज रहे हैं कि इस मामले से जुड़े अहम सबूत उनके पास हैं। इसके उत्तर में अब राज्य के असरदार गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा (Narottam Mishra) मैदान में आ गए हैं। उन्होंने जवाबी बारूद नाथ पर खर्च करने के बाद राज्यपाल (Governor) से मांग कर दी है कि नाथ के खिलाफ सबूतों को दबाने के मामले में कार्रवाई की जाए। नरोत्तम को लगता है कि कमलनाथ ने अपने अल्प मुख्यमंत्री काल में और भी महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब किए हो सकते हैं।

जाहिर है मुख्यमंत्री रहते हुए कमलनाथ के ध्यान में हनी ट्रेप कांड (Honey trap scandal) की हर बात लाई गई होगी। उन्होंने इस मामले से जुड़े सबूत और दस्तावेज भी देखे होंगे। तो उस समय तो उन्होंने इस मामले के दोषियों पर सिवाए इसके कोई खास कार्रवाई की नहीं कि ब्लेकमैल (Blackmail) करने वाली महिलाएं आज तक जेल में बंद हैं। अब उनका धमकाना भी समझ से परे है। इसलिए भी कि वे अपनी सरकार बचाने के लिए Honey trap का दबाव के तौर पर भी इस्तेमाल नहीं कर पाएं। दूसरी तरफ नरोत्तम मिश्रा कह रहे हैं कि जो व्यक्ति आपराधिक सबूत छिपा कर रख सकता है , उसने अपने मुख्यमंत्री काल में और भी महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज (Important government documents) गायब किये हो सकते है। अब यह सोच और शोध का विषय तो है ही साथ ही जांच का भी विषय है। तो अब कमलनाथ की अकड़ धकड़ और उस पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की प्रतिकियाएं आखिर क्या संकेत दे रही हैं।





लगता ऐसा है कि कमलनाथ और नरोत्तम मिश्रा में गजब की ‘गाल बजाओ’ प्रतियोगिता चल रही है। मिश्रा के पास राज्य की पुलिस का विभाग है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कदम उठाने के लिए वे राजभवन का मुंह तक रहे हैं। इस मामले में जांच कराने का अधिकार तो home Minister के नाते वैसे भी नरोत्तम मिश्रा के पास सुरक्षित है। तो इस मामले में जांच की मांग उठाकर क्या मिश्रा यह प्रचारित करना चाह रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस मामले में कमजोर हैं! नाथ यदि सरकार की नजर में दोषी हैं, तो इसकी सीधी-सी प्रक्रिया है। नरोत्तम पुलिस को मामले में कार्रवाई का आदेश दें। हां, अगर पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष (opposition leader) की गिरफ्तारी तक मामला पहुंचता है तो कमलनाथ के विधायक होने के कारण इतनी भर संवैधानिक बाध्यता है कि पुलिस विधानसभा अध्यक्ष के सचिवालय को उनकी गिरफ्तारी पर बाकायदा लिखित सूचना दें और नाथ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर दे। इसमें भला राजभवन (Raj Bhavan) कहां बीच में आ गया! मध्यप्रदेश पूर्ण राज्य है। दिल्ली या पुड्डुचेरी नहीं, जो केंद्र शासित प्रदेश हैं और वहां की पुलिस केंद्र सरकार (central government) के अधीन होकर उपराज्यपाल के भरोसे रहती है। करीब चार दशक से राजनीति में सक्रिय मिश्रा को यह तथ्य न पता हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। तो फिर क्यों वे ऐसा बचकाना आचरण कर रहे हैं?

नाथ तो हैं ही आरोपी। क्योंकि यदि उनके पास हनी ट्रेप के सबूत हैं, तो जाहिर है कि अब तक इन सबूतों को वे छिपाए हुए हैं। वे तो इस बात के भी दोषी हैं कि उनकी सरकार ने Blackmail करने वाली महिलाओं को तो जेल भेज दिया मगर जो रसूखदार इन महिलाओं से ब्लेकमैल होकर सरकार में कालापीला कर गए, इन तथ्यों की जांच से आंख उन्होंने भी मूंदे रखी। अब अचानक उन्हें हनीट्रेप के सबूत याद आ रहे हैं तो यह मुख्यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ के उल्लंघन का भी मामला बनता है। मजेदार यह भी कि धमकी देने के चार दिन बाद भी पूर्व CM इस दिशा में व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं कर सके हैं। जिनके पास ऐसे मामले में कुछ करने का विधिक अधिकार है, वे गृहमंत्री उस शख्स जैसा आचरण कर रहे हैं, जो किसी झगड़े के दौरान पूरे समय यही खोखली धमकी देता रहता है कि यदि उसे गुस्सा आ गया तो सामने वाले की हड्डी-पसली एक कर देगा। इस जुबानी जमाखर्च से अधिक वह और कुछ नहीं कर पाता है।

 

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ऐसा लगता है कि कोरोना काल (Corona times) में सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर इसे मीडिया में एक विवाद का एक रूप दिया जा रहा है। राज्य के सियासी गलियारों (Political corridors) में इस तरह का युगल गीत कोई नयी बात नहीं है। अर्जुन सिंह (Arjun singh) और सुंदरलाल पटवा (Sundalal Patawa) से लेकर दिग्विजय सिंह (Digvijay singh) तथा विक्रम वर्मा (Vikram Varma) के बीच नूरा कुश्ती के प्रसंग छिपाने का कभी भी प्रयास नहीं किया गया। ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की शैली में सत्ता पक्ष और विपक्ष का ये भाईचारा कायम रहा। यह वह ताल्लुकात हैं, जिनके चलते अनेक बार विपक्षी दल ही सत्ता पक्ष को किसी बखेड़े से दूर कर देने का औजार बन जाता है। ऐसा ही यहां भी होता दिख रहा है। फालतू के इस विवाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह (Chief Minister Shivraj Singh) ने अब तक जुबान खोलना भी जरूरी नहीं समझा है। शिवराज सिंह चौहान Corona से निपटने और इससे प्रभावित लोगों की मदद के लिए हरसंभव प्रयास करने में दिनरात जुटे हुए हैं। फिर भी दुर्योग से स्थिति ऐसी बनी थी कि किसी भी हुकूमत के लिए इन परिस्थितियों पर काबू पाना संभव नहीं रह गया था। यही मध्यप्रदेश में भी हो रहा था। तो कोरोना से मची अफरातफरी के थमते दौर में क्या कमलनाथ सरकार की मदद की गरज से हनी ट्रेप के दिमाग भटकाऊ अस्त्र का इस्तेमाल कर रहे हैं!

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