सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिले पर सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए राज्य की डोमिसाइल नीति को रद्द कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई उम्मीदवार राज्य कोटे का लाभ उठाना चाहता है, तो उसे लगातार चार वर्षों तक तेलंगाना में रहना या पढ़ाई करनी होगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि तेलंगाना सरकार की ओर से तय की गई चार साल की अनिवार्यता न तो मनमानी है और न ही असंवैधानिक. अदालत ने माना कि यह नीति स्थानीय छात्रों को मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश का अवसर देने के उद्देश्य से बनाई गई है.
इससे पहले तेलंगाना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस नियम को खारिज कर दिया था और कहा था कि केवल इसलिए मेडिकल कॉलेज में प्रवेश से वंचित करना गलत है कि कोई छात्र अस्थायी रूप से राज्य से बाहर रहा हो. हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने राज्य सरकार की अपील को मंजूर करते हुए तेलंगाना मेडिकल एवं डेंटल कॉलेज प्रवेश नियम, 2017 (जो 2024 में संशोधित किया गया था) को बरकरार रखा. संशोधन के बाद यह प्रावधान जोड़ा गया था कि केवल वे छात्र, जिन्होंने कक्षा 12 तक लगातार चार वर्ष राज्य में पढ़ाई की है, उन्हें ही स्थानीय कोटे के तहत प्रवेश मिलेगा.
याचिकाकर्ताओं ने इस नीति का विरोध करते हुए कहा था कि इससे उन बच्चों के साथ अन्याय होगा, जिनके माता-पिता सरकारी सेवाओं, रक्षा या अर्धसैनिक बलों में कार्यरत हैं और नौकरी की वजह से राज्य से बाहर रहना पड़ा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष को स्वीकार कर लिया और कहा कि यह नीति स्थानीय छात्रों को अवसर देने के लिए उचित है.