मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी पदोन्नति (प्रमोशन) लेने से इनकार करता है, तो उसे न तो समयमान वेतनमान का लाभ मिलेगा और न ही क्रमोन्नति का अधिकार होगा।
यह फैसला हाई कोर्ट की फुल बेंच ने 3 मार्च को सुनाया, जिसमें जस्टिस संजीव सचदेवा, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस विनय सराफ शामिल थे।
यह मामला इंदौर खंडपीठ में विचाराधीन था। इसमें सवाल उठाया गया था कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो क्या उसे समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति का लाभ मिलना चाहिए? इससे पहले, हाई कोर्ट ने लोकल फंड ऑडिट विभाग के कर्मचारी लोकेन्द्र अग्रवाल के मामले में फैसला सुनाया था कि पदोन्नति से इनकार करने के बावजूद कर्मचारी को दी गई क्रमोन्नति वापस नहीं ली जा सकती। इसी तर्क को आधार बनाकर याचिकाकर्ता रमेशचंद्र पेमनिया ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
राज्य शासन ने कोर्ट में तर्क दिया कि समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति की नीति के तहत, यदि कोई कर्मचारी स्वयं पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो उसे भविष्य में पदोन्नति या वेतन वृद्धि का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। राज्य शासन का यह तर्क हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल ने इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। उनका कहना है कि पदोन्नति और समयमान वेतनमान दो अलग-अलग चीजें हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही यह फैसला दे दिया है कि प्रमोशन और समयमान वेतनमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए, भले ही कर्मचारी प्रमोशन से इनकार कर दे, लेकिन उसका समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति नहीं रोकी जा सकती।
हाई कोर्ट के इस फैसले का सीधा प्रभाव प्रदेश के सभी सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा। अब यदि कोई कर्मचारी पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो उसे भविष्य में किसी भी प्रकार की वेतन वृद्धि या पदोन्नति का अधिकार नहीं मिलेगा। यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि इससे उनकी वेतन संबंधी योजनाओं पर प्रभाव पड़ सकता है।