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गजब का स्टेमिना है ऐसे लोगों का

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  • इशरत जहां एनकाउंटर मामले में सीबीआई अदालत का फैसला

  • सभी आरोपी पुलिस वाले बरी

  • इशरत जहां को आतंकवादी माना अदालत ने

अपने समय के बेहद चर्चित शाहबानो केस से जुड़ा वाकया है। भोपाल में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहबानो के हक में दिए गए फैसले के खिलाफ जुलूस निकाला। एक अखबार ने जुलूस की रहनुमाई करने वालों की जन्मकुंडली छाप दी। पता चला कि जुलूस का नेतृत्व करने वालों में से ज्यादातर का तगड़ा क्रिमिनल बैकग्राउंड था। यह खबर सुर्खियों में रही और इसके चलते संबंधित अखबार को काफी हद तक कानून-व्यवस्था से जुड़े कष्टप्रद हालात का सामना भी करना पड़ गया था। जाहिर है इस जुलूस में शामिल पूरी की पूरी भीड़ तो आपराधिक पृष्ठभूमि की थी नहीं, लेकिन नेतृत्व कर रहे लोगों के दागदार चरित्र के चलते इस सारे विरोध प्रदर्शन की नीयत ही संदेह से घिर गयी थी।

ऐसा ही कुछ इशरत जहां मामले में है। इशरत जहां एनकाउंटर मामले में सीबीआई की अदालत का फैसला आ चुका है। जो कहता है कि गुजरात में इशरत और तीन अन्य आदमियों की मौत फर्जी एनकाउंटर में नहीं हुई थी। इसके अलावा कोर्ट ने इशरत जहां को आतंकवादी संगठन से जुड़े होने को भी सही माना है। इशरत मूलत: मुंबई की रहने वाली थी। बीजेपी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या का उसे जिम्मा सौंपा गया था। वह पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा की सदस्य थी। इशरत की मौत के बाद मुंबई में उसके जनाजे में करीब दस हजार लोग शामिल हुए। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता अबू आजमी ने इस अंतिम संस्कार का एक तरह से ‘नेतृत्व’ किया था। आजमी की सक्रियता और भीड़ के यूं उपत पड़ने के पीछे एक प्रमुख फैक्टर काम कर रहा था। केंद्र में तब कांग्रेस की सरकार थी। उसके गृह मंत्री पी चिदंबरम यह बयान दे चुके थे कि इशरत का एनकाउंटर फर्जी है। ऐसे ही आरोप मनमोहन सरकार के एक और मंत्री और बड़े वकील कपिल सिब्बल ने भी लगाए थे। आरोपों की जद में मोदी और अमित शाह थे। चर्चा के केंद्र में गुजरात के दंगे थे। यह एनकाउंटर गुजरात दंगों के दो साल बाद की घटना है।

तो इस तरह कई अवयवों से मिलकर बने राजनीतिक प्रपंचों की लंबी श्रृंखला शुरू हुई। इशरत के जनाजे में शामिल हुई दस हजार लोगों की भीड़ भी अनजाने में इसी चेन का एक हिस्सा थी। जिसका प्रत्येक सदस्य भले ही इशरत को गलत तरीके से समर्थन करने का दोषी नहीं कहा जाएगा, मगर इनमें से ज्यादातर इस पाप के भागी स्वयमेव बन जाते हैं। वो इसलिए कि उन्होंने दागदार छवि के लिहाज से देश के अग्रणी राजनेताओं में शामिल अबू आजमी के आव्हान पर चार आतंकवादियों की मौत को ग्लोरिफाई करने की कोशिश की थी।

इशरत मामले में कोर्ट के आज के फैसले ने कई चेहरों की कालिख को उजागर कर दिया था। अब उस दावे में दम दिखने लगा है कि चिदंबरम के इशारे पर इस घटनाक्रम से जुड़ा हलफनामा ही बदल दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि इशरत को आतंकवादी होने के आरोप से बरी कराया जा सके। इशरत के ढेर होने के बाद लश्कर ने बाकायदा एक बयान जारी कर उसे अपनी मेंबर बताया था। उसी समय इशरत को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार अपने राज्य की बेटी बताते हुए महिमामंडित कर रहे थे। कई कांग्रेसियों का तो मानो वश नहीं चला, वरना वे इशरत को भारत माता के समकक्ष दर्जा प्रदान कर देते। ऐसे प्रयासों की वजह साफ थी। यह वह समय था, जब हिंदुत्व का ऊफान था और उसके जवाब में कांग्रेस सहित अन्य बीजेपी-विरोधी दल ‘भगवा आतंकवाद’ की फर्जी थ्योरी को आगे बढ़ाने में जी जान से जुटे हुए थे। इशरत तीन वजहों से आपसी नीयत वालों के लिए ‘लाडली लक्ष्मी’ बन गयी थी। उसका मुसलमान होना। मामले का गुजरात से संबद्ध होना और इशरत के सम्मान में हजारों लोगों की भीड़ जुटाकर मुस्लिम समुदाय का अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन कर देना।

लेकिन अब प्याज के छिलकों की तरह परत-दर-परत सच सामने आ रहा है। झूठ के पांव नहीं होते। इसलिए केन्द्र की तत्कालीन यूपीए सरकार के झूठ लड़खड़ा कर शुरू से ही गिरते जा रहे थे। क्योंकि यह वही सरकार थी, जिसने इशरत के आतंकी होने या न होने को लेकर अदालत के सामने परस्पर जबरदस्त विरोधाभासी बयान दिए थे। पहले बाटला हाउस और अब इशरत जहां। बाकी और भी सच इसी तरह सामने आ सकते हैं। निश्चित ही इसके बावजूद मोदी विरोधियों के मंसूबों में कोई कमी नहीं आएगी। वे सीबीआई की अदालत को मोदी और अमित शाह के दबाव में बताकर नए सिरे से अपने मिशन में जुट जाएंगे। यह तो अच्छा हुआ कि गुजरात के गृहमंत्री रहते हुए इस मामले में लपेटे गए अमित शाह को 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले ही सीबीआई की कोर्ट ने क्लिन चीट दे दी थी। वरना तो आज इस फैसले के लिए अमित शाह का दोषी होना तय था ही। तब वे गुजरात के गृहमंत्री थे और अब तो वे भारत सरकार के गृह मंत्री है। बहरहाल मोदी विरोधियों का गजब का स्टेमिना है। पता नहीं ऐसे लोग क्या और कैसी खुराक खाते हैं कि बार-बार सच के हाथों मुंह की खाने के बावजूद उनका न पेट भरता है और न ही मन।

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