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फिल्म समीक्षा:देखनीय है डॉक्यूमेंट्री जैसी फुले

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डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

फुले फिल्म महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन और कार्य पर आधारित है।

महात्मा गांधी से भी पहले ज्योतिबा फुले को महात्मा की ‘उपाधि’ मिली थी। फुले दम्पति ने उन्नीसवीं सदी में पिछड़ों और दलितों के लिए जो कार्य किये थे, वे बदलाव की शुरुआत थे।

तमाम कमियों के बावजूद यह फिल्म देखनी चाहिए और बच्चों को दिखानी चाहिए। राज्य सरकार को ऐसी फिल्म टैक्स फ्री करना चाहिए। यह फिल्म 19वीं सदी के भारत में जाति व्यवस्था, महिलाओं की स्थिति, और शिक्षा के लिए फुले दंपति के संघर्ष को चित्रित करती है।

ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले की जीवनी पर बनी फिल्म ‘फुले’ चूंकि एक पूर्णत: व्यावसायिक फिल्म नहीं है लिहाजा इसमें आम हिंदी फिल्मों जैसा गाना, बजाना और धूम धड़ाका नहीं है। ये सिर्फ सच्ची घटनाओं को सहारा बनाकर आगे बढ़ती है।

अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में प्रतीक गांधी (ज्योतिबा फुले) और पत्रलेखा (सावित्रीबाई फुले) मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म मनोरंजन के लिए न सही, अतीत को जानने के लिए देखनी चाहिए।

इसीलिए देखनीय है फुले !

 

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