22.8 C
Bhopal

फिल्म समीक्षा:फालतू बैठे होओ, तो भी मत जाना देखने कांतारा

प्रमुख खबरे

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

बकवास फिल्में बनाने का कॉपीराइट केवल हिन्दी वालों के पास थोड़े ही है, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम वालों को भी इसका पूरा अधिकार है और वे भी इसका उपयोग करते हैं.

वे मायथॉलॉजी और लोक कथाओं का बहाना बनाकर झमाझम फेकालॉजी की ऐसी-ऐसी फ़िल्में पेल देते हैं कि दर्शक तो क्या, समीक्षक भी उनके बहकावे में आ जाते हैं। वे फिल्में दर्शक का भेजा फ्राई कर देती हैं। देवीय शक्तियां, भूत – प्रेत, आत्माएं, रहस्य, क्रूर राजा, धूर्त रानी, मायथोलॉजी के नाम पर भड़भड़कूटा यानी कुछ तो भी, ऐ वें ! मुझ से तो नहीं झिलती बाबा!

कांतारा चैप्टर 1 को ही लीजिए। यह इस सीरीज की पिछली फिल्म का प्रीक्वल है! अरे भाई, प्रीक्वल है तो पहले आना चाहिए था या नहीं?

दक्षिणवाले अपनी किसी भी फिल्म या कलाकार की ऐसी हाइप क्रिएट करते हैं कि घबराहट होती है। कांतारा चैप्टर 1 की बहुत ज्यादा हाइप बना दी गई है जबकि यह फिल्म कोई ठोस लॉजिक नहीं, जबरन ठूंस दी गई मारधाड़, शोर-शराबा और कमजोर स्टोरीटेलिंग की शिकार हो गई है। फिल्म में ओवर-ड्रामा और इलॉजिकल एलिमेंट्स, लाउड बैकग्राउंड म्यूजिक, स्क्रीमिंग डायलॉग्स (जैसे जय भूत कोला!) और अच्छे वीएफएक्स तो हैं, पर हिन्दी में कमजोर संवाद, कमजोर कहानी और बेतुकी हिंसा इसे अझेलनीय बना देते है.

कर्नाटक के हरे भरे जंगल दिखाए गए हैं जो निश्चित ही मन मोह लेते हैं लेकिन कई बार कंफ्यूजन होता है कि यह वास्तव में जंगल हैं या वीएफएक्स का जादू? और हीरो तो क्या चीख चीख कर बोलता है? वह चीखता बंगलुरु में है और आवाज इंदौर में आती है। ठीक है कि वह जंगल में है, पर क्या वहां बहरे लोग रहते हैं? उल्लू का पट्ठा !

फिल्म की कोई कहानी नहीं है, कोई बड़ा ट्विस्ट भी नहीं है। बहुतेरे यूजलेस कैरेक्टर्स की भीड़ है। खलनायक में दम नहीं है और हीरो ही इस फिल्म का लेखक और डायरेक्टर भी है तो उसने दूसरों के लिए इस फिल्म में गुंजाइश रखी ही नहीं।

शुरू से अंत तक बेबात का वायलेंस ही वायलेंस है। कई बार लगता है कि #KGF या #RRR की अगली कड़ी चल रही है।

अगर यह फिल्म माजने की होती तो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के पंच ‘ज’ को सार्थक करती जो जल, जमीन, जंगल, जन और जनावर (जानवर) पर आधारित है, लेकिन इसके निर्देशक के पांच ‘ज’ शायद जम्हाई, जोकर, जलेबी, जबड़ा और जलन रहे होंगे।

फालतू बैठे होओ, तो भी मत जाना।

अझेलनीय है कांतारा चैप्टर वन…!

- Advertisement -spot_img

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

ताज़ा खबरे