भोपाल। मप्र की मोहन सरकार ने कर्मचारियों की आर्थिक मांगों को एक झटके में पूरा कर दिया लेकिन जिन मांगों पर एक रुपये भी खर्च नहीं होने हैं, ऐसी कई मांगे 20 से 25 वर्षों से पूरी नहीं हो रही है। अब कर्मचारियों को मोहन सरकार से उम्मीद है। हालांकि इस मामले में अफसरों को फाइलें आगे बढ़ानी होगी, तभी बात बनेंगी।
ये मांगें, जिन पर नहीं आना खर्च
- दैनिक वेतन भोगी व स्थाई कर्मियों की मौत होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा रही। अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले कर्मचारी को वही मानदेय दिया जाता है जो कि मृतक कर्मचारी को दिया जाता था।
- विकासखंडों में वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी सेवाएं दे रहे हैं।
- प्रदेश के कार्यालयों में अफसरों की खातिरदारी कर रहे भृत्यों के पदनाम कार्यालय सहायक करने की मांग उठ रही है।
- सहायक ग्रेड-3 पर सेवाएं देने वाले कर्मचारियों के निधन के बाद संबंधित के परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलती है, जिसके लिए शर्त है कि उसे 4 साल में सीपीसीटी पास करना होगा, नहीं तो सेवा से हटा दिया जाता है।
- हजारों लिपिक मंत्रालय सेवा के लिपिकों की तरह ग्रेड-पे मांग रहे हैं, सरकार दे भी रही, लेकिन रिकार्ड में नहीं है, जिसे संशोधित करने की जरुरत है।
- शिक्षकों को राष्ट्रपति व राज्य स्तरीय पुरस्कार दिए जाते हैं, अध्यापक से शिक्षक बने कुछ को ये सम्मान तो मिला लेकिन उन्हें स्थानीय निकाय का समझकर एक वेतनवृद्धि व पदोन्नति नहीं दी जा रही।
- मंत्रालय के ज्यादातर विभागों के 50 फीसद कैबिन खाली पड़े हैं। दूसरे विभागों में भी यही हाल है। यदि भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाई जाए, तो सरकार को ही फायदें होंगे। इस पर भी अतिरिक्त् खर्च नहीं आना है, क्योंकि ये पद पहले से स्वीकृत है।
- पहले नए कर्मचारियों की परिवीक्षा दो वर्ष की होती थी, जिसे बढ़ाकर तीन वर्ष कर दिया गया। इसे पूर्व की तरह दो वर्ष का किया जाना चाहिए। इस अवधि को घटाने में वित्तीय भार नहीं आएगा।