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चिकन सैंडविच से किचन कैबिनेट तक का ये रोग

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निश्चित ही यह सब व्यक्तिगत पसंद और शौक वाले मामले हैं। आप मजे से चिकन सैंडविच (chicken sandwich) खाइये। मोबाइल की स्क्रीन (mobile screen) में आंख गड़ाए रहिये। अपने पालतू कुत्ते से लाड़ कीजिए। लेकिन यदि यही शौक आपके लिए एक के बाद एक शॉक का कारण बनते जाएं, तो एक बार तो अपनी गिरेहबान में झांकने का भी समय निकाल ही लेना चाहिए। हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने कांग्रेस (Congress) से अपने इस्तीफे (resignation) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का नाम लिए बगैर कहा है कि पार्टी की गुजरात इकाई (Gujarat unit) गांधी के लिए चिकन सैंडविच के इंतजाम में जुटी रहती है। गांधी से किसी विषय पर बात करने जाओ तो वह पूरा समय अपने मोबाइल (Mobile) में डूबे रहते हैं। हिमंता बिस्वा शर्मा (Himanta Biswa Sharma) ने भी उस मुलाकात के बाद ही कांग्रेस को अलविदा कह दिया था, जिसमें वह राहुल से असम (Assam) में पार्टी के हालात पर चर्चा करने गए थे और उनकी बात सुनने की बजाय राहुल पूरा समय अपने कुत्ते के साथ खेलने में मसरूफ रहे थे।

कांग्रेस से पिंड छुड़ाने वाले दो बड़े युवा नेताओं, ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) तथा जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) के इन बगावती कदमों की शुरूआत भी राहुल गांधी से मोह-भंग होने के साथ ही हुई थी। आज की ताजा खबर यह है कि राजस्थान युवक कांग्रेस (Rajasthan Youth Congress) के प्रदेशाध्यक्ष और आदिवासी विधायक गणेश घोघरा (Adivasi MLA Ganesh Ghoghr) ने अपनी विधानसभा और कांग्रेस दोनों छोड़ दी। जाहिर है जो चेहरे कांग्रेस के अच्छे भविष्य का कारण बन सकते थे, उन्हें उस चेहरे के कारण पार्टी से मुंह मोड़ना पड़ रहा है, जिसे कांग्रेस का भविष्य बताकर इस पार्टी पर किसी विवशता की तरह लाद दिया गया है।

वैसे इस सबका आरंभ एक ठीक सलाह से हुआ था लेकिन इसे माना नहीं गया। किसी समय सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने पीवी नरसिंह राव (PV Narasimha Rao) से निवेदन किया था कि वह राहुल और प्रियंका (Priyanka gandhi) को राजनीति का ज्ञान दें। जल्दी ही राव ने सोनिया से साफ कह दिया था कि ये दोनों राजनीति के लिए अनफिट हैं। राव के राजनीतिक अनुभव और दूरदर्शिता से कोई इंकार नहीं कर सकता। ऐसे में कांग्रेस की सच्ची शुभचिंतक होने के नाते श्रीमती गांधी को दो में से कोई एक काम करना चाहिए था। या तो वह अपने बच्चों को पूरे संघर्ष के साथ सिफर से सियासी सफर शुरू करने के लिए प्रेरित करती और या फिर उन्हें इस फील्ड से अलग कर देती। ऐसा करने की बजाय सोनिया ने अपनी संतानों पर लाड़ जताते हुए उन्हें पार्टी पर लाद दिया।

नतीजा सामने है। राहुल के नेतृत्व अथवा प्रबंधन में कांग्रेस चुनाव हारने का कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। प्रियंका राजनीतिक जीवन में अपने विधिवत पदार्पण के बाद से उत्तर प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भारी तरीके से विफल साबित हुई हैं। और अब तो इन दो पौधों की हरियाली कायम रखने के फेर में कांग्रेस में पतझड़ के मौसम का असर लगातार बढ़ता जा रहा है। शक्ति सिंह गोहिल (Shakti Singh Gohil) कांग्रेस की गुजरात इकाई के बड़े नेता हैं। गांधी परिवार के समर्थकों की ही तरह वह भी हार्दिक के ‘चिकन सैंडविच’ को ‘पचा’ नहीं सके। उन्होंने हार्दिक के इस्तीफे की भाषा को भाजपा (BJP) से जोड़ दिया। यानी इतना सब हो जाने के बाद भी कांग्रेस यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि राहुल गांधी अपनी गलतियों के चलते आज पार्टी के कुशल मैनेजर की बजाय केवल कुख्यात डैमेजर होकर रह गये हैं।

मतदाता उन्हें नकार चुका है। कांग्रेस के भीतर पार्टी के हित में अपना मत रखने वाले भी उनकी क्षमताओं को लेकर सवाल उठाने लगे हैं। पार्टी में लगातार असंतोष बढ़ता जा रहा है। पंजे की लकीरों में गांधी-नेहरू परिवार इस तरह धंस गया है कि लकीरें अब दरारों में बदल गयी हैं। फिर भी यह नहीं हो रहा कि Congress मरीज की बजाय मर्ज का इलाज तलाशने जैसी कोई प्रक्रिया आरंभ करे। तो फिर कोई अर्थ नहीं रह जाता है कि कांग्रेस एक की बजाय एक हजार चिंतन शिविर भी आयोजित कर लें। अब तो वह समय दूर नहीं लगता, जब यह दल चिंता शिविरों के भी लायक नहीं रह जाएगा।

दरअसल राहुल के ‘चिकन सैंडविच (chicken sandwich)’ उनके दिवंगत पिता राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की ‘किचन कैबिनेट’ वाली फौज ही वह जड़ है, जिसने अंतत: कांग्रेस की जड़ों में मठा डालने का काम किया है। इस चापलूस दस्ते ने अपने नेताओं की गलतियों को ढंकने का काम किया। उनकी जय-जयकार की और अपना उल्लू सीधा करते रहे। तुलसीदास जी (Tulsidas ji) लिख गए हैं, ‘ सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। राज, धर्म, तनु तीनि कर होइ बेगिहिं नास।।’ कांग्रेस अपने सॉफ्ट हिंदुत्व (soft hindutva) वाली विवशता के फेर में कम से कम इन पंक्तियों को ही साकार रूप में स्वीकार कर सके तो उसकी दशा में कुछ सुधार हो सकता है। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? डंके की चोट पर कड़वा सच बोलने वाले G-23 के नेताओं की स्थिति किसी से छिपी है क्या? वैसे उनका खुद का भी कोई जनाधार नहीं है।

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