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निहितार्थ

डॉ. यादव के मंत्रिमंडल में नामदार नहीं, केवल कामदारों की जरूरत

डॉ. मोहन यादव के लिए बड़ा जोखिम है। गृह विभाग उनके पास ही रहेगा। यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है कि बेहद लोकप्रिय और कालांतर में चुनौती-विहीन साबित हुए शिवराज सिंह चौहान तक इस महकमे को संभालने से बचते रहे। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने यह विभाग खुद ही संभाला है और उनके इस निर्णय को राज्य में कठोर कानून-व्यवस्था से सीधे जोड़कर देखा जाता है।

मनोभंजन न सही, मनोरंजन में तो परिपक्व हैं राहुल गांधी

फिरोज खान के पोते राहुल भले ही मूलत: गांधी न हों, लेकिन प्रचार तंत्र तो उन्हें महात्मा गांधी के समकक्ष ही रखता है। खैर, कांग्रेस के अघोषित माई-बाप और देश के घोषित बापू के बीच तुलना नहीं की जा सकती। गांधी जी की आवाज पर देश एकजुट हो गया था और राहुल की सियासी परवाज का आलम यह कि कांग्रेस टुकड़े-टुकड़े होने की कगार पर आ गई है।

क्या ‘जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी’ वाला मामला दोहराया जाएगा मंत्रिमंडल में ?

संगठन के प्रति निष्ठा और जातिगत राजनीति के लाभ शुभ के साथ काम की क्षमता का सर्वाधिक महत्व है, तो फिर उसे मंत्रियों के चयन में भी यही दिखाना होगा कि पार्टी में अब 'तुम मुझे सब-कुछ दो, मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दूंगा' वाले लोगों के दिन लद चुके हैं।

कांग्रेस ने दिल से हटकर दिमाग की सुध ली

पटवारी, सिंघार और कटारे को उनके कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं। बरसों बरस बाद पंजे ने दिमाग को टटोला है। कांग्रेस के सच्चे शुभचिंतक यही चाहेंगे कि यह क्रम बना रहे। बाकी उनके भीतर यह आशंका कायम रहना भी स्वाभाविक है कि पंजा एक बार फिर दिमाग से फिसलकर दिल की तरह न चला जाए।

भाजपा का सयानापन और कांग्रेस का बचपना

कांग्रेस व्यवहारिकता के हिसाब से मुद्दों के टोटो और उनके नाम पर तोता रटंत की शिकार होकर रह गयी। जबकि भाजपा ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह अपने सामाजिक समरसता वाले वाक्य के अनुरूप आगे बढ़ने में ही यकीन रखती है।

खुद शिवराज ही बड़ी चुनौती रहेंगे मोहन यादव के लिए

नए मुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद शिवराज सिंह चौहान ही साबित होंगे। इस बात को किसी नाराजगी या विद्रोह से जोड़कर न देखा जाए। यह चुनौती इस रूप में होगी कि अपने अब तक के कार्यकाल में शिवराज ने जो लोकप्रियता, सफलता और सक्रियता के कीर्तिमान स्थापित किए, उनसे आगे जाए बगैर यादव यह स्थापित नहीं कर सकेंगे कि पार्टी का उनके प्रति विश्वास एकदम सही था।

फीनिक्स पक्षी की बाघ वाली यह दहाड़

मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों में लाड़ली बहना योजना की बड़ी भूमिका रही तो आप यह भी मानेंगे कि इस योजना के पीछे का प्रमुख फैक्टर शिवराज ही थे। यह उनकी वर्ष 2005 से इस चुनाव तक की संचित निधि रही, जिसने राज्य की महिलाओं को भविष्य में तीन हजार रुपए प्रति माह देने की बात पर विश्वास में ले लिया

शिवराज का फीनिक्स अवतार और सोने की भस्म

शिवराज ने बीते महीने खुद की तुलना उस फीनिक्स पक्षी से की, जिसके लिए कहा जाता है कि वह अपनी ही राख से एक बार फिर जीवन पा लेता है। यानी वह अजर-अमर है। मजे की बात यह कि यदि टाइगर को फिर से सही अर्थ में जीवित होना दिखाने के लिए पंद्रह महीने का समय लग गया था, तो फीनिक्स पक्षी ने एक पखवाड़े से भी कम की अवधि में अपने फिर से जीवित हो उठने वाले पूरे हालात स्थापित कर दिए हैं।

‘राज्य स्तरीय कुंठित मानसिकता’ और मोदी की साख

कांग्रेस के अब तक जारी 229 नामों में से अधिकतर ऐसे हैं, जिन्हें भाजपा के टिकट पर खड़ा कोई भी व्यक्ति हरा सकता है? यदि ऐसा है तो तय मानिए कि भाजपा 1998 वाली मानसिकता को दोहराने की दिशा में बढ़ चली है। यह भी तय मानिए कि अब नतीजा यदि बिगड़ा तो फिर सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी ही इसके लिए जिम्मेदार माने जाएंगे।

ये कमलनाथ का विश्वास है दिग्विजय पर

दिग्विजय ने जिन बातों के चलते अपने लिए कपडे फटने की स्थिति बुलाई, उनमें से अधिकतर बातें भले ही पार्टी के नाम पर की गईं, लेकिन उनके मूल में खुद दिग्विजय का निजी एजेंडा भी निहित था। खैर, इसे गलत भी नहीं मानना चाहिए। निजी शुभ-लाभ हासिल करने की निंदा करने से पहले यह देखा जाना चाहिए कि कपडे फड़वाने की दिग्विजय की तरह ऐसी बार-बार हिम्मत करना कांग्रेस में क्या किसी और के बूते की बात है?

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