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सरकार ने हाईकोर्ट को दी नई प्रमोशन नीति की जानकारी

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प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर चल रहे विवाद को लेकर आज यानी गुरुवार, 16 अक्टूबर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई।

राज्य सरकार ने कोर्ट को अपनी नई प्रमोशन नीति 2025 की जानकारी दी, जिसके तहत यह नीति 2016 के बाद की गई पदोन्नतियों पर लागू होगी, जबकि इससे पहले हुई पदोन्नतियां पुराने नियमों के तहत ही मान्य रहेंगी।

सरकार ने डीपीसी और पदोन्नति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी थी, मगर हाईकोर्ट ने इस पर अंतरिम राहत देने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले में सीधे अंतिम निर्णय सुनाया जाएगा, अंतरिम आदेश नहीं दिया जाएगा।

अदालत ने सरकार को क्वांटिफायबल डेटा सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 और 29 अक्टूबर तय की गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अंतिम फैसला आने तक पदोन्नति प्रक्रिया पर लगाई गई रोक कायम रहेगी।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में राज्य सरकार से कुछ मार्मिक और व्यवहारिक प्रश्न पूछकर स्पष्टीकरण मांगा था, जिसके बाद सुनवाई टाल दी गई। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि:

जब पुरानी प्रमोशन पॉलिसी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो नई पॉलिसी लाने का औचित्य क्या है?

रद्द की गई पुरानी पदोन्नति पर नई नीति किस तरह से लागू होगी?

यदि सुप्रीम कोर्ट पुरानी पॉलिसी के संबंध में कोई फैसला सुनाता है, तो नई नीति के लागू होने के बावजूद सरकार उस फैसले को कैसे क्रियान्वित करेगी?

पुरानी पॉलिसी पर सुप्रीम कोर्ट के ‘यथास्थिति’ (Status Quo) के आदेश और पहले से रद्द किए जा चुके प्रमोशन को नई पॉलिसी किस तरह से संबोधित करेगी?

क्यों लगी थी प्रमोशन पर रोक ?

आरक्षण का प्रावधान: तत्कालीन राज्य सरकार ने साल 2002 में पदोन्नति के नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी।

परिणाम: इस प्रावधान के चलते आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति मिलती रही, जबकि अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे छूट गए।

कोर्ट में चुनौती: जब इस असंतुलन और विवाद ने तूल पकड़ा, तो कर्मचारी अदालत पहुँचे और उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त करने की मांग की।

कर्मचारियों का तर्क: कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि पदोन्नति का लाभ केवल एक ही बार दिया जाना चाहिए (न कि हर स्तर पर)।

हाईकोर्ट का निर्णय: इन तर्कों पर विचार करते हुए, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 को अमान्य (खारिज) कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में अपील: राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

वर्तमान स्थिति: शीर्ष कोर्ट ने मामले में ‘यथास्थिति बनाए रखने’ का आदेश दिया, जिसके कारण तब से लेकर अब तक (2016 से) प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी हुई है।

अब तक क्या हुआ

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार की पिछली पदोन्नति नीति को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: इस निर्णय के विरोध में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने मामले में यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने का निर्देश दिया।

नई नीति का आगमन: प्रदेश में नौ वर्षों से प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिलने के कारण, राज्य सरकार इसी साल (2025 में) एक नई पदोन्नति नीति लेकर आई।

नई नीति को चुनौती: सरकार की इस नई नीति को सपाक्स (SAPAKS) सहित कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

याचिकाकर्ताओं का तर्क: याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि पुरानी प्रमोशन पॉलिसी के अदालत में विचाराधीन रहने के दौरान नई पॉलिसी लाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने जैसा है।

सरकार का आश्वासन: इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने मौखिक रूप से यह आश्वासन (Oral Undertaking) दिया था कि वह नई पॉलिसी के तहत फिलहाल कोई प्रमोशन नहीं करेगी।

वर्तमान स्थिति: सरकार के इस मौखिक आश्वासन के कारण ही नई प्रमोशन पॉलिसी को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है।

यह खबर भी पढ़ें: ग्वालियर की इस यूनिवर्सिटी पर HC सख्त: रिटायर्ड कर्मचारी को 50 हजार देने और पेंशन प्रक्रिया शुरू करने का आदेश

नई नीति क्या है

पदों का वर्गीकरण: उपलब्ध रिक्त पदों को अनुसूचित जाति (SC – 16%), अनुसूचित जनजाति (ST – 20%), और अनारक्षित वर्ग के हिस्सों में आनुपातिक रूप से विभाजित किया जाएगा।

भर्ती प्राथमिकता: पद भरने की प्रक्रिया में सबसे पहले SC और ST वर्ग के पद भरे जाएंगे।

शेष पदों के लिए: इन आरक्षित पदों को भरने के बाद, बचे हुए पदों के लिए सभी वर्गों के दावेदारों को मौका दिया जाएगा।

लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 1): क्लास-1 स्तर के अधिकारियों (जैसे कि डिप्टी कलेक्टर) के लिए चयन सूची योग्यता (Merit) और वरिष्ठता (Seniority) दोनों के आधार पर तैयार की जाएगी।

लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 2): क्लास-2 तथा उससे निचले स्तर के पदों के लिए वरिष्ठता (Seniority) को ही एकमात्र आधार बनाकर चयन सूची बनाई जाएगी।

गोपनीय रिपोर्ट कितनी जरूरी

गोपनीय रिपोर्ट की अनिवार्यता (ACR): वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) संतोषजनक होने पर ही कर्मचारी पदोन्नति पाने के हकदार होंगे।

पिछले दो वर्षों की रिपोर्ट में से कम से कम एक रिपोर्ट ‘उत्कृष्ट’ (Outstanding) श्रेणी की हो।

या पिछले सात सालों की रिपोर्ट्स में से कम से कम चार रिपोर्ट्स ‘ए+’ (A+) श्रेणी की हों।

ACR नहीं तो प्रमोशन पर रोक

यदि कर्मचारी की गोपनीय रिपोर्ट (ACR) किसी भी कारणवश (विशेषकर कर्मचारी की गलती से) तैयार नहीं हो पाई है, तो वह पदोन्नति के योग्य नहीं माना जाएगा।

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