निहितार्थ

मोदी का यह नेहरू प्रेम…?

मैं चित्रकार नहीं हूं। कभी कूची थामी नहीं है। लेकिन पत्रकार तो हूं, लिहाजा कल्पना में तो शब्दचित्र रचा ही जा सकती है। शुक्रवार को मैंने ऐसा ही किया। कांग्रेस के उन लोगों का एक कल्पनात्मक चित्र खींचा, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महात्मा गांधी के आश्रम में बोलते सुन रहे होंगे। इन कांग्रेसियों के चेहरे पर उस समय कसमसाहट भर गयी होगी, जब मोदी ने आजादी के आंदोलन के महत्वपूर्ण नामों में पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी पूरी शिद्दत से जिक्र किया। इसके बाद तो मुझे लगता है इन कांग्रेसियों का पानी भी पचना मुश्किल हो गया होगा। वे इस डर से भर गए होंगे कि कहीं बापू के बाद पंडितजी को भी मोदी हाईजैक न कर लें। कहां तो शुरूआत काफी पहले तब हुई थी, जब मोदी ने ही नेहरू पर सरदार पटेल को पीछे धकेलने का आरोप लगा दिया था।

उन्होंने सप्रमाण और सप्रयास यह बात सामने रखी थी कि किस तरह कांग्रेस में नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने के लिए लौहपुरुष को दरकिनार कर दिया गया था। याद कीजिये, यह वही मोदी हैं, जिन्होंने कभी लोगों का आव्हान किया था कि महात्मा गांधी की कल्पना के अनुरूप ही कांग्रेस को खत्म कर दिया जाए। इतिहास की तमाम गलतियों के लिए मोदी ने नेहरू को गिन-गिनकर दोषी ठहराया था। जब मोदी बीते साठ सालों की कथित दुर्दशा की बात कहते थे तो उनके निशाने पर नेहरू-गांधी परिवार ही सामने होता था। और अब मोदी ने उन्हीं नेहरू की प्रशंसा कर कांग्रेस को उलझाने के लिए नया दांव चल दिया है। वैसे प्रधानमंत्री के तौर पर आजादी के पचहत्तर साल के जश्नों की शुरूआत करते हुए मोदी यदि नेहरू का जिक्र नहीं करते तो यह भी एक अन्याय ही होता।

लेकिन मोदी ने जब नेहरू का जिक्र किया तो उसके बाद सोशल मीडिया देख लीजिये। बहुतायत में ऐसी पोस्ट/विचार दिख जाएंगे, जिनमें बापू को मोदी वाले चश्मे से देखने का अहसास होता है। किस तरह देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अपनी हिंदूवादी मान्यताओं के चलते नेहरू द्वारा उपेक्षित किये गए, इसका भी जिक्र गाहे-बगाहे हर जगह देखने मिल जाता है। यकीनन कांग्रेस के पास जवाब में नेहरू की छवि को पूरी ताकत से मजबूत बताने का ही विकल्प रह गया था। नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक कांग्रेस, आज की मौजूदा कांग्रेस से तो बहुत अलग और बेहतर थी ही। आज तो कांग्रेस का संकट यह है कि मोदी के खिलाफ उसके पास एक अदद ऐसा चेहरा नहीं है जिसे वो जनता के सामने रख सके। जो उम्मीद थे, उनकी मुट्ठियां खुल चुकी हैं। मगर अब तो नेहरू को भी मोदी ने अपनी तरफ खींचने की शुरूआत कर दी है। कांग्रेस के लिए दिक्कत का समय है। राहुल गांधी कुछ समय पहले ही इमरजेंसी को लेकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बयान दे चुके हैं।

यह कहना सोचना नितांत गलत होगा कि मोदी के हृदय में नेहरू के लिए यकायक अपार श्रद्धा का संचार होने लगा है। लेकिन ये सियासत है। पहले गांधी और अब नेहरू के जरिये मोदी ने बड़ी होशियारी के साथ खुद की कट्टर विधारधारा वाली छवि को झटकने का प्रयास कर डाला है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुडी गोपनीय फाइलों का खुलासा करके मोदी पूर्व में ही बोस बाबू को कांग्रेस से अपनी तरफ लाने का काम कर चुके हैं।

दरअसल ये उस सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिये कांग्रेस को उसके ही प्रतिष्ठित चेहरों से दूर किया जा रहा है। कांग्रेस फिलहाल यही सोचकर खुश हो सकती है कि वह सीधे मोदी के निशाने पर है। देश के अधिकांश हिस्सों में जनाधार गंवाने के बावजूद आज भी मोदी इस दल को अपने लिए बड़ी चुनौती मान रहे हैं। वैसे भी सोनिया गांधी हों या राहुल और प्रियंका वाड्रा, कांग्रेस वह कहीं से कहीं तक नहीं रही, जो नेहरू से लेकर इंदिरा के दौर तक हुआ करती थी। इसी तंगहाली का यदि मोदी फायदा उठा रहे हैं तो तय मानिये कि किसी भी समय मोदी का इंदिरा गांधी के लिए भी ऐसा ही भाव सामने आ सकता है।

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