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ममता के ये सियासी नाटक

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सालों पहले की बात है । दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन के बीच पुलिस ने लाठियां भांजीं। उस समय भाजपा के दिग्गज नेताओं में मुरली मनोहर जोशी का भी शुमार किया जाता था। लाठी चार्ज में जोशी घायल हो गए। कहा गया कि उनके सिर पर दिमाग के पास वाले हिस्से में चोट आयी है। जोशी के शरीर के इस हिस्से का सीटी स्कैन किया गया। तब एक प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका ने कटाक्ष छापा। उसमें एक आदमी दूसरे से पूछता है कि जोशी के दिमाग के स्कैन में डॉक्टरों को वहाँ क्या मिला? दूसरा कहता है, ‘कुछ भी नहीं।’

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पैर में जिस गंभीर चोट का दावा किया जा रहा है, तय मानिये कि यदि उनका मेडिकल परीक्षण डॉक्टरों का कोई स्वतंत्र पैनल करे तो वह भी जांच के बाद ‘कुछ नहीं मिला’ जैसी ही बात कहेगा। कहने का मतलब यह नहीं कि ममता के पैर में कोई चोट ही नहीं आयी है, आशय यह कि यह किसी भी सूरत में प्लास्टर से लेकर व्हील चेयर वाला मामला नहीं है। फिर इसे हमला कहा जाने पर तो चुटकुले बनने लगे हैं। ‘दीदी’ की हालत उस ‘बुआ’ सरीखी हो गयी है, जिसके प्रपंच एक्सपोज जो जाने के बाद वह केवल हास्य का विषय बनकर रह जाती है। लेकिन यकीन रखें, मामूली चोट को नासूर बनाकर भुनाने और सामान्य हादसे को हमले की शक्ल देने वाले अपने टोटके पर ममता पूरा भरोसा कर रही होंगी। पूरी तृणमूल कांग्रेस में किसी की हिम्मत नहीं कि बनर्जी को यूं एक्सपोज होने के परिणामों से आगाह कर सके। इसलिए ये सियासी नौटंकी चुनाव तक नित नए रूप में संचालित होती रहेगी।

मौसमी चटर्जी ने फिल्मों में सफल समय गुजारने के बाद दो साल पहले भाजपा की सदस्यता ले ली। चटर्जी का यहाँ जिक्र दो तरीके से सामयिक है। वह ममता के राज्य से ही हैं। उनकी फिल्मों की फेहरिस्त में एक शीर्षक ‘नाटक’ भी है। इस चित्र की रील लाइफ में चटर्जी ने नाटक में काम करने वाली की भूमिका अदा की थी। इधर रियल लाइफ में ममता बनर्जी सियासी सेल्यूलाइड पर अनगिनत नाटकों की पटकथा लिख चुकी हैं। राज्य में लंबे वामपंथी शासन को चुनौती देने के लिए ममता ने जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए नौटंकी करने का कोई अवसर नहीं गंवाया। दर्जनों बार वह शरीर के किसी हिस्से पर पट्टी बांधकर वामपंथियों पर हमले का आरोप लगाती रहीं। हालाँकि, ऐसे कमोबेश हर मौके पर भी यही आरोप लगे कि यह मामूली खराश को भी जख्म बताकर दुश्मन को चित करने की उनकी चाल है। लेकिन तब वामपंथ का बंगाल में जो स्वरूप दिख रहा था, उसके चलते ममता अपने ऐसे आरोपों को कैश कराने में अंतत: सफल रहीं। लेकिन इस बार शायद यह दांव उलटा पड़ गया लगता है। दीदी की चोट को देखकर लोगों की कराह की बजाय हंसी ज्यादा छूट रही है। क्योंकि यह उस अविश्वास का मामला है, जिसे गंगाजली सत्य का मुलम्मा पहनाकर बेहद बचकाने तरीके से लोगों के सामने पेश किया गया।

ममता जैसी घाघ राजनीतिज्ञ इतनी कच्ची गोटियां कैसे खेल गयीं, ये वाकई शोध का विषय है। शायद यह बौखलाहट का असर है। उन आशंकाओं की वजह से ऐसा हो रहा है, जो ममता के भीतर यह अहसास गाढ़ा करती जा रही हैं कि पश्चिम बंगाल में उनकी जमीन तेजी से खिसकती जा रही है। इस प्रदेश में वामपंथी अपनी अकड़ में मारे गए। कांग्रेस अपने गलत फैसलों की शिकार होकर खेत रही। लेकिन अब ममता का सामना उस भाजपा से है, जो पूरी तरह शातिराना अंदाज में इस राज्य में जनाधार बढ़ाने के लिए आगे बढ़ रही है। तृणमूल में किसी समय मुकुल रॉय से शुरू हुआ बिखराव का सफर अब न जाने कितने दिग्गज चेहरों को भाजपा के खेमे में ला चुका है। जिस प्रदेश में कुछ साल पहले तक बीजेपी चौथी पायदान पर भी नहीं दिखती थी, वहा आज इस दल ने तृणमूल के मूल को खिसका कर रख दिया है।

ममता आसानी से हार मानने वालों में नहीं हैं। हाथ से फिसलती बाजी को अपने हक में करने के लिए आज उन्होंने फिर हिंदूवादी छवि को चमकाने का प्रयास किया है। मंच पर देवी की आराधना करती ममता अब कमजोर पड़ने लगी दिखती हैं। क्योंकि लोग उनके चेहरे से ये नकाब नोच फेंकने पर आमादा हैं। उस मुख्यमंत्री की याद दिलाकर, जिसने मुहर्रम के ताजियों की खातिर देवी प्रतिमाओं के विसर्जन को रोका। जो अपने राज्य में हिन्दुओं की अगाध आस्था वाले एक शिव मंदिर का प्रबंधन एक मुस्लिम को देने के चलते विवाद में आयी। जिसने अपने प्रदेश में ‘जय श्री राम’ के नारे को बर्दाश्त न करने की जैसे कसम खा ली थी।

बंगलादेशी घुसपैठियों के दम पर अपनी राजनीति चमकाने वाली ममता के लिए इस राज्य में भाजपा और हिंदुत्व की सशक्त घुसपैठ उन्हें विचलित करने का बहुत बड़ा कारण बन गयी है। निश्चित मानिये कि इस विचलन की कीमत यह राज्य देश के इतिहास की सबसे बड़ी चुनावी हिंसाओं वाली घटनाएं झेलकर चुकाएगा। ममता बनर्जी की अघोषित रूप से लिखी सियासी फिल्मों की पटकथाओं में वह कभी नायिका हुआ करती थीं, लेकिन अब इसी रजतपट पर वह किसी वैम्प की तरह कुख्यात हो चुकी हैं और उनके ये सियासी नाटक अब लोगों को वितृष्णा के भाव से भर चुके हैं । यही उनके सियासी अधोपतन की शुरूआती और बड़ी वजह मानी जा सकती है।

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