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फीनिक्स पक्षी की बाघ वाली यह दहाड़

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आने वाले कल में क्या होगा, यह भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही जाने, लेकिन बीते कल की एक बात क्या से क्या होकर सच हुई है। यह समझना रोचक है। तो ये उस अतीत की बात, जब यह प्रतीत होने लगा था कि शिवराज सिंह चौहान इस विधानसभा चुनाव में बतौर मुख्यमंत्री अपने सियासी करियर की शरशय्या पर ला दिए जा चुके हैं। तब इन हालात से जुड़े एक सवाल पर चौहान ने खुद की तुलना उस फीनिक्स पक्षी से की थी, जो स्वयं की राख से भी फिर जन्म ले लेता है।

दंभ कभी भी प्रकट रूप में शिवराज के व्यवहार का हिस्सा नहीं रहा और उनकी यह बात भी अब दंभोक्ति साबित नहीं हुई है। जब आप यह कहते हैं कि मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों में लाड़ली बहना योजना की बड़ी भूमिका रही तो आप यह भी मानेंगे कि इस योजना के पीछे का प्रमुख फैक्टर शिवराज ही थे। यह उनकी वर्ष 2005 से इस चुनाव तक की संचित निधि रही, जिसने राज्य की महिलाओं को भविष्य में तीन हजार रुपए प्रति माह देने की बात पर विश्वास में ले लिया। शिवराज अपनी अनेक घोषणाओं के क्रियान्वयन में लोगों का इस तरह से यकीन जीत चुके थे, इसलिए आम जनता के बीच लाड़ली बहना योजना के एक हजार से तीन हजार तक के सफर को लेकर कोई संदेह का वातावरण नहीं रहा। कांग्रेस लाख शिवराज को झूठी घोषणाओं की मशीन कहती रही हो लेकिन अब तो यह जनता ने ही साबित किया है कि शिवराज है तो विश्वास है।

पहले से लेकर चौथे कार्यकाल तक में शिवराज अपनी सहजता, सरलता और विशेषकर गरीब तबके के प्रति सरोकार के चलते भी लोगों का अधिक से अधिक विश्वास जीतने में कामयाब रहे। और यही फैक्टर अंतत: भाजपा को भी सफलता दिलाने का बड़ा आधार बन गया। यह चुनाव शिवराज के लिए किसी अग्निपथ पर चलने वाली चुनौती रहा। वह भी ‘पीछे बंधे हैं हाथ और शर्त है सफर की। किससे कहें कि पांव के कांटे निकाल दे’ वाले अंदाज में। वह अंदर और बाहर की चुनौतियों से बराबरी के साथ जूझते रहे। यह भी तय था कि यदि पार्टी चुनाव हार जाती, तो इसका ठीकरा भी चौहान के सिर पर ही फोड़ा जाता।

इन चचार्ओं पर भी अब तक कोई विराम नहीं है कि जीत की सूरत के बावजूद शिवराज की मुख्यमंत्री वाले पद और कद के योग समाप्त हो गए हैं। लेकिन नैराश्य वाली ऐसी प्रचंड आंधियों के कोहराम की बीच भी शिवराज पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ते रहे और अब जब यह शोर थम गया है, तब सब देख रहे हैं कि किस तरह फीनिक्स पक्षी किसी टाइगर की तरह ही दहाड़ने की क्षमता से अब भी चूका नहीं है।

इस जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रिय भूमिका का भी उल्लेखनीय महत्व रहा। मोदी ने मध्यप्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पूरी शिद्दत से प्रचार किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी आज भी मतदाताओं के ऊपर जादुई असर रखते हैं और इन तीन राज्यों के नतीजों ने इस तथ्य को पूरी ताकत के साथ स्थापित कर दिया है। साफ है कि डबल इंजन की सरकार वाले नाम को सही काम के रूप में स्थापित करने का जो प्रयोग मोदी ने आरंभ किया था, उसे शिवराज ने और सही दिशा दिखाई है।

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