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देर से आये, लेकिन क्या दुरुस्त भी आये मोदी ?

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निहितार्थ: पैंतीस साल से अधिक की पत्रकारिता में मैंने क्राइम की रिपोर्टिंग (crime reporting) भी की है। उसी दौर का एक सच्चा किस्सा है। एक महिला ने पति पर परेशान करने के आरोप लगाए। मामला थाने की दहलीज चढ़ गया। पुलिस वालों ने आदमी को समझाया कि वह गलती मान ले। वादा कर ले कि फिर पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेगा। पतिदेव सब-कुछ सुनकर भी अनदेखा करते रहे। फिर एक पुलिस वाला उन्हें अन्य कमरे में ले गया। वहाँ से वापस आये पति महाशय के तेवर पूरी तरह से बदले हुए थे। उन्होंने पत्नी के लिए भरपूर सम्मान दिखाया। दांपत्य जीवन (married life) में उसके द्वारा झेली जा रही परेशानियों से सहानुभूति जताई। कहा कि आगे से वह खुद घर-परिवार की सारी जिम्मेदारियां उठाएगा। मैंने उस आदमी से कहा कि अब से कुछ देर पहले तक उसे पुलिस (Police) की यही सलाह मानने में क्या दिक्कत थी। उस शख्स ने चुपचाप अपना गाल मेरे आगे कर दिया। उस पर बिलकुल ताजा निशान देखे जा सकते थे। उस पुलिस वाले की अंगुलियों के निशान, जो उसे कमरे में साथ ले गया था।

सोमवार की शाम जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) टीवी पर देश को संबोधित कर रहे थे, तब मुझे सहसा वो गाल वाले पतिदेव की याद फिर आ गयी। क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत (Court) ने कोरोना (Corona) के वैक्सीनेशन (vaccination) को लेकर हाल ही में मोदी की सरकार को कई बार जमकर लताड़ा है। कोर्ट इस बात से नाखुश थी कि टीकाकरण का जिम्मा राज्यों को देने से यह व्यवस्था चरमरा रही है। अदालत वैक्सीन (Vaccine) की अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कीमत से भी नाराज है। तो कुल जमा बात यह कि कोर्ट इन गड़बड़ियों को दूर करने के लिए जो व्यवस्था केंद्र से चाह रही थी, मोदी ने सोमवार को उन्ही व्यवस्थाओं (systems) को लागू करने की घोषणा कर दी। हालांकि ऐसा करते समय उन्होंने ज्यूडिशरी (Judiciary) का किसी भी रूप में जिक्र तक नहीं किया। मामला क्रेडिट (credit) लेने की भूख का जो ठहरा।





तो अदालत से पड़े तमाचे-दर-तमाचे के बाद मोदी ने ये सब किया। उन्होंने यदि यही पहले कर लिया होता तो प्रधानमंत्री सहित पूरी केंद्र सरकार (central government) की ऐसी फजीहत तो नहीं हुई होती। यूं देखा जाए तो PM ने बहुत बड़े ऐलान किये। अठारह साल की उम्र से अधिक के लिए पूरे देश में मुफ्त वैक्सीनेशन (free vaccination), राज्यों को इस जिम्मेदारी से मुक्ति, प्राइवेट अस्पतालों में भी भुगतान के जरिये टीका लगवाने की व्यवस्था, यह सब यकीनन स्वागत योग्य कदम हैं। और फिर ये फैक्टर भी ध्यान रखना होगा कि पहले कुछ राज्यों ने ही वैक्सीनेशन की केंद्रीयकृत व्यवस्था (centralized system) को लेकर जमकर छाती कूटी थी। फिर जब यह काम उन्हें मिल गया तो उनके हाथ-पांव फूल गए। देश की राजनीति में अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’ वाली आरोपों की नयी शैली विकसित की है।

वैक्सीनेशन को लेकर भी उनका यही रुख रहा। फिर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कोरोना के टीके की लाखों की खेप बर्बाद कर दी गयी। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस (Congrss) की सरकारें हैं। समस्या तो मध्यप्रदेश में भी थी। इस भाजपाई शासन (BJP rule) वाले राज्य को केंद्र ने कोई अतिरिक्त या आउट ऑफ़ टर्न (out of turn) वाला लाभ नहीं दिया। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj singh Chauhan) ने अपनी प्रबंधन की कुशलता से स्थिति को काफी हद तक नियंत्रण में कर लिया था। वैक्सीन को लेकर हायतौबा के घटनाक्रम भी लगभग पूरी तरह केवल उन राज्यों में दिखे, जहां BJP शासन में नहीं है। तो ये सवाल भी उठता ही है कि टीका लगाने की यह अहम प्रक्रिया भी क्या राजनीतिक लड़ाई (political battle) का हथियार बना दी गयी थी? क्या ऐसा हुआ कि टीके की कमी से मरते लोगों के रुदन पर ओछी राजनीति का भद्दा गाना हावी हो गया?





एक बात ध्यान देने लायक है। सबसे बड़ी अदालत ने मोदी को टीकाकरण के केन्द्रीयकरण का कोई आदेश नहीं दिया था। केवल इस बारे में सवाल उठाये थे। PM चाहते तो अदालत के निर्देश की प्रतीक्षा की आड़ में मामला यूं ही चलने दे सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उलटे बहुत चुनौती भरे समय में उन्होंने बहुत जटिल जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका कायम है। वैक्सीन (Vaccine) की उपलब्धता के लिहाज से वैक्सीनेशन के जरूरतमंदों की भारी संख्या सामने दिख रही है। मानवता के वे शत्रु सामने हैं, जो लोगों को डरा कर वैक्सीन न लगाने की सलाह दे रहे हैं। अकल के वो दुश्मन भी दिख रहे हैं, जो ऐसे सफ़ेद झूठ (White lie) को भी सच मान ले रहे हैं। इस तरह के हालात के बीच शत-प्रतिशत टीकाकरण (100% vaccination) बहुत बड़ी दुश्वारियों वाला काम हो गया है। फिर भी प्रधानमंत्री ने यदि इसका जिम्मा खुद पर ले लिया है तो इसके लिए उनकी प्रशंसा करने में कोई कंजूसीनुमा षड़यंत्र या षड़यंत्रनुमा कंजूसी नहीं की जाना चाहिए।

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