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जननायक शिवराज

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अगर इसे किसी को अतिश्योक्ति समझना हो तो समझ सकता है। लेकिन इसे अतिश्योक्ति समझने से पहले एक क्षण ठहरना पड़ेगा। मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज की सफलता में हो सकता है, उनके अद्भूत भाग्य का भी योगदान हो ।  लेकिन    क्या कोई इस बात से इंकार कर सकता है कि शिवराज आज जहां हैं, वो स्थान उनकी अनथक मेहनत, पार्टी और विचारधारा के प्रति अगाध समर्पण और राज्य की जनता के लिए उनकी निष्ठा के बिना संभव हो पाता। अच्छे और प्रभावी व्यक्तित्व कुदरती तरीके से नहीं बनते। ऐसा होने के लिए खुद को परिश्रम की भट्टी में तपाना होता है। दूरदर्शिता को अपनी आदत में लाना होता है और विपरीत परिस्थितियों की लहरों के भीतर उतरकर उनका सीना चीरने की ताकत अपने भीतर पैदा करना होती है। यदि आप इन खूबियों का मौजूदा समय में कोई जीता जागता रूप देखना चाहते हैं तो फिर शिवराज सिंह चौहान से बेहतर और कोई हो ही नहीं सकता है। शिवराज की सरलता, सहजता और सफलता, यहीं तो वो कारण हैं जो शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश के तमाम कद्दावर राजनेताओं के बीच सबसे हटकर और बहुत खास बनाते हैं।

एलिनोर रूजवेल्ट ने लिखा था, ‘भविष्य केवल उनका है, जो अपने खूबसूरत सपनों मे यकीन रखते हैं।’ यह बात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर पूरी तरह लागू होती है। आप उनसे मिलों और जब वो यह कहें कि मैं तो जागते में भी मध्यप्रदेश के विकास के सपने संजोता हूं, तो आप शिवराज को अतीत से लेकर अब तक आप जानते हैं तो समझ जाएंगे कि शिवराज का जूनून उन पर आज भी कायम है। सोते जागते तो सपने सभी देखते हैं, ये एक अलग इंसान है। शिवराज सिंह चौहान ने अपने  सपनों पर न सिर्फ भरोसा किया, बल्कि उन्हें पूरा करने में भी वे दिन-रात लगे हुए हैं।

2005 में शिवराज सिंह चौहान ने जब पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो किसी को अनुमान नहीं था कि मध्यप्रदेश की राजनीति एक बड़ी करवट लेने जा रही है। मुख्यमंत्री बनने से पहले बीजेपी के तत्कालीन नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान को पहले पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद की कमान सौंपी थी। उस समय मुख्यमंत्री थे, बाबूलाल गौर। अगस्त, 2004 में उमा भारती के इस्तीफे के बाद जब बीजेपी ने बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री चुना था यह तभी साफ था कि गौर साहब अगले चार साल के लिए स्थायी मुख्यमंत्री नहीं हैं। फिर जब प्रदेश में बीजेपी की कमान शिवराज को सौंपी गई। यह तब ही साफ हो गया था कि शिवराज भविष्य के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन तेरह साल लगातार शिवराज खुद को और पार्टी को सत्ता में बना के रख पाएंगे, यह किसने सोचा होगा?

कवि शिवमंगल सिंह सुमन लिख गए हैं, ‘तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।’ शिवराज ने भी तूफानों की तरफ पीठ करने की बजाय पूरी साहस के साथ उनका मुकाबला कर सफलता अर्जित की है। शिवराज के पहले कार्यकाल की चुनौतियां बिल्कुल अलग थीं। दो साल के भीतर शिवराज सिंह, दिसम्बर, 2003 में बनी बीजेपी सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री थे। दिग्विजय सिंह की दस साल की कांग्रेसी सत्ता के बाद बंपर बहुमत से उमा भारती के नेतृत्व में बनी इस सरकार पर शंका हो गई थी कि यह पांच साल चल पाएगी या नहीं। पिछली सदी की गैर कांग्रेसी सरकारों ने कभी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था। मध्यप्रदेश के गठन के बाद से लेकर साल 2000 तक की बात करें तो 1967, 1977 और 1990 ये तीन मौके ही ऐसे ही थे जब मध्यप्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी थीं। लेकिन इनमें से कोई भी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। ये सभी सरकारें ढाई-तीन साल में गिर गर्इं, या भंग कर दी गर्इं। इन तीनों सरकारों के दौरान केवल एक मौका ऐसा था जब केन्द्र में जिस पार्टी की सरकार थीं उसी पार्टी की सरकार मध्यप्रदेश में भी थी। यानि 1977 में कई राजनीतिक दलों के विलय से बने दल जनता पार्टी की। लेकिन जनता पार्टी की सरकार न दिल्ली में अपना कार्यकाल पूरा कर पाई और ना ही मध्यप्रदेश में। अपने ही अंतर्विरोधों में जनता पार्टी जल्दी ही बिखर गई थी। खेर, नई सदी में मध्यप्रदेश की राजनीति में क्या अनहोनी होने जा रही है। इसकी शायद कोई कल्पना भी नहीं कर सकता
था। लेकिन कह सकते हैं कि शिवराज सिंह चौहान की मेहनत और किस्मत दोनों ने मध्यप्रदेश में एक नया इतिहास रच दिया। बीजेपी की इस सफलता का श्रेय अकेले शिवराज को देना,बीजेपी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय होगा। लेकिन बड़ा फेक्टर तो वाकई शिवराज सिंह चौहान ही हैं। पहले तीन कार्यकाल भी और अब जब कांग्रेस के अंर्तविरोधों में कमलनाथ सरकार बनी तब भी, ‘शिवराज है तो विश्वास है’ के नारे पर ही एक बार फिर स्थिर सरकार के लिए लोगों ने शिवराज को ही पसंद किया।

शिवराज के जुझारूपन और जनकल्याण के लिए सच्चे आग्रह की शक्ति ने ऐसा असर किया कि वे राज्य में सबसे लम्बी अवधि तक शासन करने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं। शिवराज ने केवल यही मिथक नहीं तोड़ा, उन्होंने जनता के हित में कई वर्चुअल प्रोटोकॉल का भी अतिक्रमण किया। मसलन, वे जनता के बीच में उतनी दफा लगातार जा रहे हैं, जितना उनसे पहले का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं गया। शिवराज को ‘पांव-पांव वाले भैया’ ऐसे ही नहीं कहा जाता है। अपने आज तक के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश का चप्पा-चप्पा नाप लिया है। आम लोगों के बीच जाने तथा उनकी बात सुनने का कोई भी मौका शिवराज ने कभी भी नहीं गंवाया।  प्रदेश में जब, जहां और जिसको भी जरूरत महसूस हुई, शिवराज उसकी मदद के लिए खुद पहुंच गए। उनकी इस शैली ने प्रदेश की जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया है।

शिवराज की एक और उपलब्धि उनकी दूरदर्शिता का सशक्त परिचय देती है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहने से लेकर मुख्यमंत्री तक के रूप में उन्होंने अपनी पार्टी को ब्राह्मण-बनियों की पार्टी वाली छवि से मुक्त किया। ये शिवराज ही हैं, जिन्होंने दलित और वंचित तबके से लेकर समाज के हर वर्ग के लिए अलग-अलग कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा दी। महिलाओं और बच्चों के हित में तो उन्होंने इतनी संख्या में सफल योजनाओ का संचालन किया है, जिसकी मिसाल पूरे देश के इतिहास में कही भी और देखने नहीं मिलती है। और जहां जरूरत पडी, वहां शिवराज ने सख्त कदमों के जरिये भी समाज के हर वर्ग की सुरक्षा के लिए इंतजाम किए। फिर बात चाहे नाबालिगों से रेप के दोषियों को फांसी पर लटकाने वाले फैसले की हो या हो हर तरह के माफिया को कुचल देने के साफ निर्देश।

एक के बाद एक राजनीतिक सफलताएं अर्जित कर शिवराज सिंह चौहान जैसे अहम शोध का विषय बन गए हैं। जिस राज्य में आर्थिक तंगहाली की बात कहकर कई जरूरी विकास योजनाओं को दरकिनार कर दिया गया हो, उसी राज्य में शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी किसी भी योजना के आगे कोई अड़चन बाकी नहीं रहने दी। उन्होंने राजनीतिक शुचिता का हमेशा पालन किया। विरोधियों पर हमले के मामले में भी शिवराज ने कभी भी शालीनता की मयार्दाओं का उल्लंघन नहीं किया। विरोधियों को अपने काम से जवाब दिए और आरोप लगाने वालों को सच के दम पर परास्त कर दिया। बेहतरीन इंसान, उम्दा राजनीतिज्ञ और श्रेष्ठतम मुख्यमंत्री, इस त्रिवेणी ने शिवराज सिंह चौहान को जो ऊंचाइयां प्रदान की हैं, वह हासिल कर पाना आसान नहीं है। इसके लिए स्वयं से लेकर अपने आसपास की श्रेष्ठता के निरंतर प्रयास करना होते हैं। यह प्रक्रिया अंतहीन और बहुत कठिन होती है, लेकिन  बात शिवराज सिंह चौहान जैसे जूनूनी राजनेता की हो तो फिर  ये बाधाएं कोई मायने  नहीं रखती हैं।

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