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क्या ‘जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी’ वाला मामला दोहराया जाएगा मंत्रिमंडल में ?

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मध्यप्रदेश के नए मंत्रिमंडल को लेकर इस बार नए अंदाज में कयास लगाए जाना स्वाभाविक है। भाजपा ने इस विधानसभा चुनाव में अलग ही अंदाज दिखाए हैं। प्रत्याशियों से लेकर मुख्यमंत्री तक के चयन में जो-कुछ हुआ, वह कई मायनों में अतीत के अनुभवों से एकदम उलट था। इसलिए अब यह उम्मीद बेमानी नहीं लगती कि डॉ. मोहन यादव के मंत्रिमंडल में ‘जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी’ वाली स्थिति नहीं बनेगी। यानी शायद ऐसा न हो कि भारी-भरकम चेहरों के आगे एक बार फिर कई विधायक पात्र होने के बाद भी मंत्रिमंडल में स्थान न बना सकें।

यहां भारी-भरकम से आशय उन लोगों से है, जो केवल अपनी वरिष्ठता के चलते वर्ष 2003 से लेकर अब तक की भाजपा सरकार में हर समय मंत्री बने रहे और अब सरकार सहित पार्टी के लिए भी वे बोझ बन गए हैं। उन्होने भाजपा में स्थापित होने के बाद से अपने लिए शुभ-लाभ के सभी तगड़े बंदोबस्त कर लिए, लेकिन बदले में पार्टी के लिए अपनी कोई बड़ी उपयोगिता सिद्ध करने का उन्होंने प्रयास तक नहीं किया। अब समय आ गया है कि डॉ. मोहन यादव की सूरत में नए समर्पित लोगों को स्थान देने की अपनी वचनबद्धता को फिर से स्थापित करने वाली भाजपा मंत्रिमंडल के लिए भी यही मापदंड स्थापित करे।

इस सारी विचार प्रक्रिया में यह सोचना तो बनता ही है कि यह चुनाव जीतने वाले केंद्रीय स्तर के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल क्या राज्य मंत्रिमंडल का चेहरा बनेंगे? चुनाव तो शिवराज सिंह चौहान ने भी जीता है। लेकिन उनको लेकर यह कयास इसलिए नहीं लगाया जा सकता कि वे खुद डेढ़ दशक से ज्यादा पार्टी की सरकार का नेतृत्व कर चुके हैं। और फिर पार्टी पहले ही चौहान को उनके कद के अनुकूल नई जिम्मेदारी देने की बात कह चुकी है।

भाजपा ने मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव के चयन के रूप में पीढ़ी परिवर्तन वाले नए प्रयोग का आरंभ किया है। यादव को यकायक बड़ा जिम्मा मिला है और इसमें कुछ सरलता तथा सहजता के लिहाज से ही दो अनुभवी चेहरों जगदीश देवड़ा तथा राजेंद्र शुक्ल को उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। अब देखने वाली बात यही होगी कि यही पीढ़ी परिवर्तन शेष मंत्रिमंडल पर लागू हो सकेगा या नहीं। यदि डॉ. यादव के रूप में पार्टी ने यह संदेश दिया है कि उसके लिए संगठन के प्रति निष्ठा और जातिगत राजनीति के लाभ शुभ के साथ काम की क्षमता का सर्वाधिक महत्व है, तो फिर उसे मंत्रियों के चयन में भी यही दिखाना होगा कि पार्टी में अब ‘तुम मुझे सब-कुछ दो, मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दूंगा’ वाले लोगों के दिन लद चुके हैं।

पहाड़ी इलाकों से सड़क निकालने के लिए चट्टानों को बारूद लगाकर खत्म किया जाता है। भाजपा के सामने फिलहाल आगामी लोकसभा चुनाव की पहाड़ जैसी चुनौती है और उससे सुरक्षित निर्गम की खातिर उसने मध्यप्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में काफी हद तक परिवर्तन की बारूद बिछाकर कई लोगों के दिल दिल दहला देने वाले धमाकों को अंजाम दे दिया है। अब देखना यही होगा कि मध्यप्रदेश में तैयार किए गए इस नए मार्ग पर ‘जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी’ वाले हालात से अलग परिदृश्य दिखेगा या नहीं। इसके लिए बस जरा-सा इंतजार और कीजिए। राज्यपाल अपने प्रस्तावित अवकाश के बीच से ही भोपाल लौट आए हैं। हो सकता है मंगलवार को ही नए मंत्रियों का शपथ समारोह हो जाए, बहुत हुआ तो मंत्रिमंडल का मामला विधानसभा के सत्र की समाप्ति तक खिंचेगा। इन्तजार की इन घड़ियों के बीच उन सभी के लिए अग्रिम गहन संवेदनाएं, जो पीढ़ी परिवर्तन वाली इस प्रक्रिया के चलते उस परिवर्तित मार्ग पर भेज दिए जाएंगे, जो मंत्री निवास की बजाय उनके निजी ठिकाने की तरफ जा सकता है।

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