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कांग्रेस की माइनस मार्किंग का शिवराज फैक्टर

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दशकों पहले ‘गरीबी हटाओं’ का नारा देने वाली कांग्रेस इसे अचंभे से देख सकती है। कोई सत्तारूढ़ दल ‘गरीब कल्याण महाअभियान’ भी चला सकता है। डेढ़ साल के एक अंतराल को छोड़ कर बीस साल की एक निरंतर चली आ रही सरकार से इसकी अपेक्षा करनी चाहिए। कांग्रेस खुद केन्द्र और राज्यों में इस तरह लगातार सरकारें चलाती रही है, लेकिन ऐसा रिपोर्ट कार्ड वो कभी जारी नहीं कर सकी। बेशक नारे उसने कई दिए।

इस मामले में दिल्ली में नरेन्द्र मोदी और भोपाल में बैठे शिवराज ने वाकई न सिर्फ पार्टी की छवि को बदलने का काम किया है बल्कि कभी ब्राह्मण बनियों की पार्टी के तंज से पहचाने जाने वाले राजनीतिक दल की सारी राजनीति को ‘प्रो गरीब’ दिशा में मोड़ भी दिया। इसे बेशक काफी अलग परिदृश्यों के एकरूप हो जाने वाला मामला कह सकते हैं। एकात्म मानववाद के प्रवर्तक दीनदयाल उपाध्याय के लिए भाजपा की निष्ठा पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए पार्टी ने जब-जब यह कहा कि उपाध्याय के सिद्धांत के अनुरुप वह पंक्ति में सबसे अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक कल्याण वाली सोच रखती है, तब इस दावे को कहे में बदलते देखने का यह एक मौका भी है।

रविवार को जिस समय अमित शाह ने भोपाल में गरीब कल्याण महा अभियान के तहत शिवराज सिंह चौहान सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी किया, तब लगा कि इस दल ने अपने लिए एक नई सियासी राह का चयन कर लिया है। वह मध्यप्रदेश के चुनाव में उन गरीबों पर फोकस कर रही है जिन्हें दिल्ली और भोपाल की भाजपा सरकारों से वाकई लाभ मिला है। ऐसा करना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल नहीं है। वंचितों की कसम खाकर तो सियासत का ककहरा शुरू किया जाता है और फिर निजी सफलताओं के नए अध्याय रचने का काम चलता चला जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा के लिए गरीब कल्याण की बात इसलिए और सफल हो गई कि भाजपा को अपने इस कहे को कर दिखाने के लिए शिवराज सरकार के वह अनेक कार्यक्रम मिले हुए हैं, जिनमें गरीबों के कल्याण का जिक्र और फिक्र, दोनों ही भरपूर तरीके से देखने को मिलते हैं।

शिवराज के अब तक के कार्यकाल में लाड़ली लक्ष्मी से संबल, और किसान कल्याण से लाड़ली बहना योजना तक अनेक ऐसे कार्यक्रम लागू किए गए, जो निर्धन और वंचित तबके को प्रभावित करने में सफल रहे। आने वाले विधानसभा चुनाव के जरिए पहली बार ऐसा होता दिख रहा है कि भाजपा शिवराज के इन कामों को व्यवस्थित तरीके से अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास कर रही है। यानी दीनदयाल जी ने जो कहा, शिवराज ने वो करने की कोशिश की। भाजपा अब इसे लेकर ही चुनावी मैदान में उतर पड़ी है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मध्यप्रदेश ने भाजपा को चुनावी रणनीति के हिसाब से नया तरीका सुझा दिया है। चुनाव में शिवराज की योजनाएं गिनाने के साथ ही भाजपा पुख्ता तरीके से यह बताने की स्थिति में भी है कि इनका किस-किस तरह से, किन लोगों को लाभ मिला है और कैसे भाजपा की फिर से सरकार बनने पर इन योजनाओं को और बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा।

निश्चित ही लंबे समय तक शासन के अवसर का भी शिवराज ने पूरा फायदा उठाया। अपने हर कार्यकाल में वह गरीब कल्याण से जुड़ा ऐसा एक न एक कार्यक्रम लाते रहे, जो इस चुनाव में समन्वित रूप से भाजपा के लिए गिनाने और भुनाने के प्रभावशाली माध्यम साबित हो सकते हैं। सही मायनों में कहा जा सकता है कि जिस तरह नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश में स्वयं के प्रशंसक मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग खड़ा किया है, वैसे ही शिवराज भी निर्धन कल्याण योजनाओं के माध्यम से मध्यप्रदेश में करने में सफल रहे हैं। उन्होंने भाजपा को बनिए और ब्राह्मण की पार्टी से ‘प्रो-गरीब’ पार्टी वाली श्रेणी में ला खड़े करने में सफलता पाई है। तब ही तो अमित शाह जब कहते हैं कि भाजपा ने बीते बीस साल में एक बीमारू राज्य को विकसित बनाने का काम किया है, तब उनके पास शिवराज की योजनाओं के ढेरों उदाहरण मौजूद हैं। इसे के चलते वह ‘डबल इंजन’ सरकार वाली बात भी कहते हैं।

फिर भाजपा ने एक और काम किया है। शाह ने आज कांग्रेस को तीन तरह से घेरा। प्रदेश में उसकी सरकार के करीब पांच दशक के कामकाज पर सवाल उठाए। मध्यप्रदेश में कांग्रेस हर दस साल बाद सत्ता से बाहर होती रही है। और सत्ता के इस लंबे दौर में अकेले दिग्विजय सिंह ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने लगातार दस साल राज किया। इसलिए शाह ने दिग्विजय सिंह का ‘मिस्टर बंटाधार’ के नारे से गूंजा कार्यकाल याद दिलाया। कमलनाथ पर अल्प समय में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की बात की। फिर भाजपा की उपलब्धियों के रूप में वह प्रमुख रूप से शिवराज के कामकाज गिनाते चले गए, जिनकी श्रृंखला लंबी है। जाहिर है आखिर अब शिवराज मध्यप्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिनके पास एक लंबे कार्यकाल तक लगातार काम करने का रिकार्ड है। जाहिर है कि इस रिपोर्ट कार्ड में शिवराज के चार कार्यकाल की योजनाओं की सफलता के चलते भाजपा के लिए कांग्रेस को माईनस मार्किंग वाली स्थिति में लाना ज्यादा आसान है।

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