भोपाल। पालपुर कूनो व गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य को बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसकी मुख्य वजह इन दोनों जगह चीतों का होना है। राज्य सरकार इन दोनों के लिए विशेष प्लान तैयार कराएगी, उस आधार पर दोनों को विकसित किए जाने के प्लान के आधार पर काम शुरू होंगे।
ये दोनों इसलिए बन सकते हैं बड़े पर्यटन स्थल
- सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका व नामीबिया के चीतों को लाकर भारत के अंदर श्योपुर के कूनो में बसाया। यहां मिली सफलता के बाद इन्हें पहली बार देश के अंदर एक से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करते हुए प्रदेश के ही गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में बसाया।
- कैट प्रजाति के ये वन्यजीव सबसे तेज दौड़ने में सक्षम तो है ही, इनका शातिरानापन भी गजब का माना जाता है। ये कब कहां और कितनी लंबी छलांग लगा दे, इसका भरोसा नहीं होता। हवा की तरह उड़ान भरने वाले इन वन्यजीवों ने मध्यप्रदेश को चीता संरक्षण में वैश्विक पटल पर लाकर खड़ा कर दिया।
- पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश, राजस्थान के लिए भी उम्मीदों के द्वार खोले दिए। गुजरात जैसे दूसरे राज्य भी इन्हें बसाने के लिए आतुर है। इन सबके पीछे वन्यजीव संरक्षण की मंशा तो है ही, बल्कि दुनिया भर के पर्यटकों को रिझाना भी है। मध्यप्रदेश ने इस काम में सबसे पहले बाजी मारी है।
चीतों से प्रदेश को ये फायदें:-
- सबसे बड़ा फायदा पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने में मिल रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों में चीतों की मौजूदगी नहीं है, यहां के वन्यजीव व चीता प्रेमी पर्यटक भारत आएंगे। इसके कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ होंगे।
- चीतों को पालने, उनके बीच कुनबा बढ़ाने के लिए प्रजनन गतिविधियों के संरक्षण के लिए दक्षिण अफ्रीका व नामीबिया ने मध्यप्रदेश को अपने चीता विशेषज्ञ दे रखे हैं। अब बोत्सवाना व दूसरे देशों के विशेषज्ञों के दौरे भी यहां हो रहे हैं। इसका लाभ प्रदेश उठा रहा है।
- देश के अंदर तो चीता दुर्लभ है ही, दुनिया के कई देशों में इसकी मौजूदगी नहीं रही। ऐसे देश चीतों की मौजूदगी वाले देशों की ओर उम्मीद लगाकर देख रहे हैं, बल्कि ऐसे देशों को चीता संरक्षण के लिए फंड भी मुहैया कराते रहे हैं। देश व मध्यप्रदेश अंतरराष्ट्रीय मंचों से उक्त श्रेणी में मिलने वाली मदद के दायरे में आए हैं।