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केंद्रीय मंत्री बोले, भारत में बढ़ता मोटापा एक चुनौति

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मोटापा एक बहुआयामी चुनौती है और इससे निपटने के लिए बहुआयामी निवारक रणनीतियों की आवश्यकता है।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह बात आज सीआईआई शिखर सम्मेलन में कही, जो चिकित्सा के प्रोफेसर और एक प्रसिद्ध मधुमेह विशेषज्ञ हैं। उन्होंने भारत में मोटापे के बढ़ते संकट से निपटने के लिए एक बहुआयामी और सामूहिक दृष्टिकोण अपनाने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।

“विश्व मोटापा दिवस” के अवसर पर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआईI) द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय मोटापा शिखर सम्मेलन” को संबोधित करते हुए, डॉ. सिंह ने बल देकर कहा कि मोटापा केवल एक जीवनशैली का मुद्दा नहीं है बल्कि एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है जिससे निपटने के लिए सरकार, उद्योग, चिकित्सा समुदाय और समाज की ओर से समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने चिंताजनक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि बचपन में मोटापा के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है, जहां 1.4 करोड़ से ज़्यादा बच्चे मोटापा से प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि “हम अक्सर अपने मोटे बच्चों पर गर्व करते हैं, लेकिन हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। केंद्रीय मोटापा, विशेषकर भारतीयों में, एक स्वतंत्र एवं गंभीर स्वास्थ्य जोखिम कारक है।” उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि मोटापा गैर-संचारी बीमारियों जैसे कि टाइप-2 मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियों और फैटी लीवर बीमारियों में महत्वपूर्ण योगदान देता है, इसलिए निवारक उपाय करना अनिवार्य है।

केंद्रीय मंत्री ने केंद्रीय मोटापे के प्रति भारतीय फेनोटाइप की अनूठी संवेदनशीलता को स्वीकार किया और अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि दुबले-पतले दिखने वाले भारतीयों में पश्चिमी समकक्षों की तुलना में आंतरिक वसा का प्रतिशत अधिक होता है। उन्होंने कहा कि हमारे पारंपरिक परिधान केंद्रीय मोटापे को छिपा सकते हैं, लेकिन इससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को समाप्त नहीं कर सकते।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने व्यापक जागरूकता अभियानों और चिकित्सा प्रगति के बावजूद मोटापे की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि “एक ओर, हम फिटनेस और कल्याण की बात करते हैं, लेकिन दूसरी ओर, मोटापे की दरें लगातार बढ़ रही है।” उन्होंने कहा कि “इस विरोधाभास को वैज्ञानिक दृढ़ता और सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ संबोधित किया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि मोटापे का आर्थिक बोझ परिवारों पर पड़ता है, जिसमें कई मरीजों को चयापचय विकारों के दीर्घकालिक उपचार का खर्च उठाने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

श्री सिंह ने रणनीतिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर बल देते हुए मोटापे और चयापचय संबंधी बीमारियों के लिए लागत प्रभावी, सार्वभौमिक जांच मॉडल विकसित करने के लिए उद्योग-सरकार साझेदारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “हम इस लड़ाई को केवल मधुमेह विशेषज्ञों या मोटापा विशेषज्ञों पर नहीं छोड़ सकते। इसके लिए नीति निर्माताओं, चिकित्सा विशेषज्ञों और उद्योग जगत के नेताओं को शामिल करते हुए राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।” केंद्रीय मंत्री ने एक सार्वजनिक-निजी मॉडल का सुझाव दिया, जहां नियमित स्वास्थ्य जांच में मोटापे के संकेतक शामिल हों, विशेष रूप से अस्पतालों में, जिससे प्रारंभिक निदान और मध्यवर्तन को सुविधाजनक बनाया जा सके।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने वजन घटाने के इंजेक्शनों और फैड डाइट जैसे नए त्वरित समाधान के खिलाफ भी चेतावनी दी और एक स्थायी जीवनशैली के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “इस समस्या का वास्तविक समाधान आत्म-अनुशासन में निहित है, जिसमें अपने शरीर को समझना, अपने आहार को विनियमित करना और स्वास्थ्य के प्रति संतुलित दृष्टिकोण अपनाना शामिल है।” उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि कैसे आहार संबंधी आदतें विकसित हुई हैं, जिसमें रुक-रुक कर उपवास करना और विदेशी आहार फैशन बन गए हैं। उन्होंने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि “हमारी दादी-नानी ‘शाम पांच बजे खाने के शेड्यूल’ और कैलोरी नापने वाली ऐप की अवधारणा से खुश होतीं”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बजाय इसके कि वार्षिक शिखर सम्मेलनों का इंतजार करें जिसमें वही चिंताएं दोहराई जा सकें। उन्होंने कहा कि “मोटापा केवल व्यक्तिगत चिंता का विषय नहीं है बल्कि यह एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। जब हम 2047 में भारत की कल्पना करते हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी युवा जनसंख्या स्वस्थ, उत्पादक और रोकथाम योग्य जीवनशैली रोगों से मुक्त रहे।”

इस शिखर सम्मेलन में प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिन्होंने प्रणालीगत स्तर पर मोटापे की समस्या से निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया।

 

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