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सर्दी-खांसी का इलाज कराने गए मां-बाप समझ रहे थे बच्चों को कोई बड़ी बीमारी है

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अगर कफ सिरप से किडनी खराब होने का खुलासा नहीं होता तो इनमें से ज्यादातर बच्चों के माता-पिता यही मानते कि उनके बच्चों को कोई बड़ी बीमारी थी। या फिर किडनी खराब होने की वजह से उनकी मौत हो गई। जबकि उनकी मौत का दोषी कफ सिरप बनाने वाले और सिस्टम में बैठे लोग थे।

ज्यादातर मां-बाप अपने बच्चों की सर्दी खांसी का इलाज कराने डॉक्टर के पास गए थे। फिर धीरे-धीरे तबीयत बिगड़ी तो बीमारी बड़ी होने की बात डॉक्टर समझाते रहे, माता-पिता मानते भी रहे। कुछ को तो मीडिया में आई खबरों से पता चला कि बच्चों की बीमारी का बड़ा कारण कफ सिरप है।

बैतूल के जामुन बिछुआ गांव के मजदूर निखिलेश धुर्वे का दो साल का इकलौता बेटा निहाल एक अक्तूबर को जिंदगी की जंग हार गया। निखिलेश बताते हैं कि बेटे को बुखार और खांसी थी। डॉक्टर प्रवीण सोनी को दिखाया, उन्होंने जो दवा लिखी, वही मेडिकल स्टोरी से ली और बच्चे को पिलाई। दो दिन बाद पेशाब बंद हो गई। हालत इतनी बिगड़ी कि भोपाल तक ले जाना पड़ा।

निखिलेश ने बताया कि हम अपने को कोस रहे थे कि बच्चे का इलाज समय पर नहीं करवा पाए, इलाज में देरी की। पर अब पता चला कि सिरप ही जानलेवा था। डॉक्टरों ने बताया कि दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। निखिलेश ने रिश्तेदारों से 65,000 रुपये का कर्ज लिया। कुछ दोस्तों से उधार लिया, पर बेटा नहीं बच पाया।

कलमेश्वरा गांव के कैलाश यादव ने अपने तीन साल के बेटे कबीर के इलाज के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। कैलाश बताते हैं कि बच्चे के इलाज के लिए वे भी डॉ. प्रवीण सोनी के पास गए थे। डॉक्टर ने Coldrif Syrup और कुछ दवाएं दीं जो बच्चे को पिलाई गईं।  सिरप देने के बाद कबीर की तबीयत और बिगड़ गई। शरीर सूज गया, उल्टियां बढ़ गईं और पेशाब रुक गई। उन्होंने बताया कि बेटा कबीर सर्दी-खांसी से बीमार था। फिर हालात बिगड़ती गई तो हमने सोचा शायद बीमारी गहरी है। जमीन गिरवी रख दी, चार लाख का कर्ज लिया, चार अस्पतालों में दौड़ लगाई, पर भोपाल एम्स में पता चला कि किडनी फेल हो चुकी है। तब तक हमने खबरें पढ़ ली थीं। हमको पता चल गया कि बच्चे को गहरी बीमारी नहीं थी। सिरप ही उसकी मौत के लिए जिम्मेदार है। कैलाश ने जांच टीम को सिरप की बची हुई बोतलें सौंपी हैं। इन्हें अब फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है।

टिकाबर्री गांव का चार साल का हर्ष यदुवंशी वेंटिलेटर पर है। हर्ष के चाचा श्याम यदुवंशी बताते हैं कि एक अक्तूबर को परासिया के डॉक्टर अमित ठाकुर के पास ले गए थे। दवाइयां देने के बाद हालत और बिगड़ गई। बैतूल के डॉक्टरों ने भर्ती करने से मना कर दिया। फिर नागपुर ले गए, जहां पता चला कि किडनी पूरी तरह फेल हो चुकी हैं। नागपुर मेडिकल कॉलेज में हर्ष की हालत बेहद गंभीर है। जब हम इसका इलाज करवा रहे थे, तभी सिरप कांड का खुलासा हुआ। हमें पता चल गया कि इस सब के पीछे कौन जिम्मेदार है। डॉक्टरों के अनुसार, इलाज में 8 से 10 लाख रुपये तक का खर्च आएगा, फिर भी बचने की संभावना कम है।

छिंदवाड़ा के सुशांत ठाकरे निजी स्कूल में शिक्षक हैं। उन्होंने अपनी बेटी को बचाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। परिवार ने करीब 13 लाख रुपये इलाज पर खर्च किए। दोस्तों, रिश्तेदारों और एनजीओ से मदद ली, सोशल मीडिया पर क्राउडफंडिंग की। नागपुर के नेल्सन हॉस्पिटल में योजिता को भर्ती कराया गया, जहां 16 बार डायलिसिस किया गया। हर गुजरते दिन के साथ पिता की उम्मीदें और अस्पताल का बिल दोनों बढ़ते गए। योजिता को 8 सितंबर की शाम बुखार आया था। पिता उसे लेकर पहले डॉ. ठाकुर के पास पहुंचे, पर वे क्लिनिक पर नहीं थे। मजबूर होकर डॉ. प्रवीण सोनी से इलाज कराया। उन्होंने दवाइयां दीं और घर भेज दिया।

अगली सुबह बच्ची की तबीयत बिगड़ गई, उल्टियां शुरू हो गईं। जब दोबारा डॉक्टर के पास ले गए तो उन्होंने बताया कि किडनी में इंफेक्शन है। छिंदवाड़ा में इलाज संभव नहीं, इसलिए नागपुर रेफर कर दिया। सुशांत के बड़े भाई ने अपनी एफडी तोड़ दी, बहनों और ससुराल पक्ष ने भी मदद की। मुंबई के एक एनजीओ ने एक लाख रुपये दिए। सा

थ ही स्कूल के साथी शिक्षक और मोहल्ले के लोग भी आगे आए, लेकिन तमाम कोशिशों और 22 दिन के इलाज के बाद भी 4 अक्तूबर को योजिता ने दम तोड़ दिया। सुशांत ठाकरे ने बताया कि नागपुर में जब बच्चे को भर्ती किया गया तो रिपोर्ट में किडनी फेलियर बताया गया। हम ये समझ नहीं पा रहे थे कि किडनी किस वजह से खराब हुई। पर खबरों से पता चल गया कि सिरप ही इसकी वजह है।

इन परिवारों को उस वक्त जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके बच्चों की जान किसी बीमारी से नहीं, बल्कि उस दवा के कारण हो रही है जो उन्हें ठीक करने के लिए दी गई थी। परिजनों को लगा कि बीमारी ज्यादा बढ़ गई है। यह किसी ने नहीं सोचा कि सिरप ही मौत की वजह बन रहा है।

 

 

 

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