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अब तो मोदी के मन में मोहन…

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प्रकाश भटनागर

पिछले विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा का नारा था, मध्यप्रदेश के मन में मोदी, मोदी के मन में मध्यप्रदेश। 2023 मध्यप्रदेश में भाजपा के इतिहास का वो पहला चुनाव था, जब कमान और नेतृत्व एक तरह से प्रधानमंत्री और पार्टी की केन्द्रीय इकाई के हाथ में ही थी। इससे पहले मध्यप्रदेश के मन में मध्यप्रदेश के ही नेता हुआ करते थे। लेकिन लगता है कि डा. मोहन यादव के इन दो सालों में बहुत कुछ बदल गया है। मध्यप्रदेश के मन में तो अब भी मोदी हो सकते हैं, लेकिन लगता है अब मोदी के मन में मध्यप्रदेश के साथ मोहन भी हैं।

यह गौरतलब है। मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव खरामा-खरामा दूसरा साल पूरा करने की तरफ बढ़ रहे हैं। इस अवधि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तूफानी रफ़्तार वाले अंदाज में आठवीं बार मध्यप्रदेश आ रहे हैं। इस बार बात कुछ और भी खास है। मोदी बुधवार को अपने जन्मदिन के मौके पर देश के हृदय राज्य में उपस्थित रहेंगे। अब यहां एक अंतर गौरतलब है। साल 2014 से 2023 तक के समय को याद कीजिए। उस पूरे कालखंड को, जब बीच वाले 15 महीने के अलावा शेष अवधि में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे। इस पूरे दौर में मोदी या अमित शाह सहित पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के मध्यप्रदेश आने की खबर हलचल पैदा करती थी। यह कयास लगना आम बात थी कि शिवराज अब गए तब गए। या मोदी की बाडी लैंग्वेज ऐसी थी, वैसी थी। मोदी की यात्राओं के ऐसे कई फोटोग्राफ बाहर आते थे और लोग इनका विपरीत मतलब निकालते थे।

इसके पीछे की वजह शिवराज की कोई कमजोरी नहीं थी। बल्कि उस समय प्रदेश का सियासी खमीर कुछ ऐसी फितरत का हो चुका था कि मोदी की मौजूदगी में सरकार के स्तर पर अनिश्चितता और अस्थिरता की लहरें श्यामला हिल्स पर बड़ी झील के किनारे से लेकर राज्य मंत्रालय तक ठांठें मारती ही रहीं। हालांकि शिवराज का कभी बाल भी बांका नहीं हुआ। वे सबसे लंबे समय तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहने का गौरव हासिल कर चुके हैं। लेकिन डॉ. मोहन यादव ने अब तक के करीब बीस महीने वाले अपने कार्यकाल में इन लहरों को शांत जलराशि में परिवर्तित कर दिखाया है। वो भी तब, जबकि उनके मंत्रिमंडल में ही कई चेहरों को पहले दिन से ही यादव के लिए बड़ी चुनौती के रूप में माना जा रहा था। इस सबका बहुत बड़ा असर यह कि यादव के समय में प्रदेश में किसी बड़े नेता का आगमन अब अटकलों के आवागमन का सबब नहीं बनता है बल्कि यह डा. मोहन यादव को और मजबूत करता जाता है।

मोदी 24/7 की फितरत वाले राजनीतिज्ञ हैं। इस क्षेत्र में मोदी का तजुर्बा ऐसा है कि अब तो शायद किसी को एक नजर देखकर भी वे सामने वाले की क्षमताओं को भांप लेते होंगे। इसीलिए उन्होंने यदि शिवराज को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद अपने मंत्रिमंडल में बेहद महत्वपूर्ण विभाग दिए हैं तो डॉ. यादव पर भी बड़ा भरोसा जताया है। मध्यप्रदेश से जुड़े इन दोनों चेहरों ने कम से कम अब तक तो मोदी की मंशा के समीप अमंगल की आशंका को फटकने भी नहीं दिया है। यहां डॉ. यादव को शिवराज से बहुत अलग खास अंदाज में देखा जा सकता है। बतौर मुख्यमंत्री वो शिवराज के मुकाबले बहुत ही कम अवधि में सही अर्थ में मोदी के मन को मोहने में सफल रहे हैं।

मध्यप्रदेश में फिलहाल कोई चुनाव नहीं होने हैं। कांग्रेस की जो स्थिति है, उसके चलते यहां भाजपा के लिए कोई चुनौती भी नजर नहीं आती। फिर भी बिहार के सियासी घमासान के बीच अपने जन्मदिन के आयोजन हेतु मध्यप्रदेश को भी समय देकर मोदी ने जता दिया है कि मोहन यादव के साथ उनकी सियासी कैमिस्ट्री बहुत सफल अंदाज में चल निकली है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोदी ने अपने-अपने तजुर्बों की सियाही में कलम डुबोकर यादव की तकदीर का जो सुनहरा अध्याय लिखा, यादव उसे पूरी तदबीर के साथ कायम रखे हुए हैं। इसे भी उनकी खास उपलब्धि ही मानना चाहिए।

वैसे भी मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटें मोदी की राजनीति के लिए जीवनदायिनी हैं। 2014 और 2019 के चुनावों में भी इस राज्य ने जिस विश्वास और समर्थन से भाजपा को लगभग क्लीन स्वीप दिलाया, उसने मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में और अधिक अजेय बनाने में अपना योगदान दिया है। मध्यप्रदेश का हर चुनाव भाजपा के लिए केवल जीत का गणित नहीं, बल्कि जनता से उसका गहरा भावनात्मक रिश्ता भी दिखाता है। यह राज्य भाजपा और संघ के लिए सदैव राजनीतिक ऊर्जा का स्रोत रहा है। गांव-गांव तक फैला संगठन, समर्पित कार्यकर्ता और आदिवासी अंचलों तक पहुंचने की क्षमता—ये सब मोदी के आत्मविश्वास को और मजबूत करते हैं। शायद यही कारण है कि वे मध्यप्रदेश को भाजपा के सबसे भरोसेमंद आधार स्तंभ के रूप में देखते हैं। इसलिए अगर मोदी के मन में मध्यप्रदेश है तो जाहिर है इसके अपने ये बड़े कारण हैं भी।

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