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नई शिक्षा नीति पर मोहन भागवत का बयान, ‘इंग्लिश नॉवेल पढ़ें, लेकिन प्रेमचंद जैसे भारतीय कहानीकारों को न छोड़ें’

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नई दिल्ली । नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के व्याख्यानमाला कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’ का गुरुवार को अंतिम दिन रहा। इस दौरान आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बताया कि नई शिक्षा नीति क्यों जरूरी है?

मोहन भागवत ने कहा, “नई शिक्षा नीति इसलिए शुरू की गई, क्योंकि अतीत में विदेशी आक्रमणकारियों ने हम पर शासन किया था। हम उनके अधीन थे और उनके शासन में उनका उद्देश्य इस देश पर प्रभुत्व स्थापित करना था, न कि इसका विकास करना। उन्होंने राष्ट्र पर नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रणालियां तैयार कीं, लेकिन अब जब हम स्वतंत्र हैं, तो हमारा लक्ष्य सिर्फ शासन करना नहीं, बल्कि अपने लोगों की सेवा और देखभाल करना है।”

उन्होंने कहा, “तकनीक और आधुनिकता का कोई विरोध नहीं है। जैसे-जैसे मानव ज्ञान बढ़ता है, नई तकनीकें उभरती हैं और उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे मनुष्यों के लाभ के लिए आती हैं और यह मनुष्यों पर निर्भर करता है कि वे उनका उपयोग कैसे करते हैं। जब भी कोई तकनीक उभरती है, उसका उपयोग मानवता के लाभ के लिए किया जाना चाहिए। अगर कोई हानिकारक परिणाम हैं, तो हमें उनसे बचना चाहिए और उन्हें रोकना चाहिए।”

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वैदिक काल के प्रासंगिक 64 पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए। गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए, न कि प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। हमारा गुरुकुल मॉडल फिनलैंड के शिक्षा मॉडल जैसा है। शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी देश फिनलैंड में शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए अलग विश्वविद्यालय है। स्थानीय आबादी कम होने के कारण कई लोग विदेश से आते हैं, इसलिए वे सभी देशों के छात्रों को स्वीकार करते हैं। आठवीं कक्षा तक की शिक्षा छात्रों की मातृभाषा में दी जाती है।

उन्होंने कहा कि मेरे अनुभव से, आप जिस बात को अनिवार्य करते हैं, उसकी प्रतिक्रिया होती। अगर आप अपनी परंपरा को समझना चाहते हैं और भारत को जानना चाहते हैं, तो संस्कृत भाषा का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है, तभी हम मूल स्रोतों से सही मायने में समझ सकते हैं। हमें अनुवादों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि कई अनुवादों में त्रुटियां होती हैं। मूल स्रोतों तक पहुंचने के लिए संस्कृत सीखना आवश्यक है।

मोहन भागवत ने कहा, “हम अंग्रेज नहीं हैं और हमें अंग्रेज बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन अंग्रेजी एक भाषा है और भाषा सीखने में क्या बुराई है? जब मैं आठवीं कक्षा में था, तब मेरे पिता ने मुझे ‘ओलिवर ट्विस्ट’ और ‘द प्रिजनर ऑफ जेंडा’ पढ़ने को कहा था। मैंने कई अंग्रेजी उपन्यास पढ़े हैं, फिर भी इससे हिंदुत्व के प्रति मेरे प्रेम पर जरा भी असर नहीं पड़ा। इंग्लिश नॉवेल पढ़ें और प्रेमचंद जैसे भारतीय कहानीकारों को छोड़ दें, ये ठीक नहीं है।”

उन्होंने कहा कि एक श्रमिक संगठन, एक लघु उद्योग संगठन, सरकार और पार्टी, इन चारों को एकमत होना होगा, जो बहुत दुर्लभ है। संघर्ष हो सकता है, लेकिन झगड़ा नहीं होना चाहिए। लक्ष्य एक ही है, हमारे देश की भलाई, हमारे लोगों की भलाई। अगर यह समझ है, तो हमेशा समन्वय होता है, और हमारे स्वयंसेवकों में यह समझ है। हर जगह हमें अपनी परंपराओं, अपने मूल्यों और अपने मूल्य-आधारित आचरण की शिक्षा देनी चाहिए, जरूरी नहीं कि धार्मिक शिक्षा ही हो। यह सामाजिक है। हमारे धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन समाज के सदस्य के रूप में हम एक हैं। समझें कि ये सामान्य सिद्धांत हैं, माता-पिता का सम्मान करना, बड़ों के सामने विनम्रता दिखाना, अहंकार से नियंत्रित न होना आदि। ये हमारी संस्कृति के विशेष और विशिष्ट पहलू हैं।

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