प्रकाश भटनागर
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ रविवार को रांची वनडे क्रिकेट मैच में जब विराट कोहली और रोहित शर्मा की पारी को देखा तो लगा वाकई लोग गलत नहीं कहते कि पुराने चावल की बात और ही होती है। कमेंट्री बाक्स में बैठे खेल से रिटायर्ड खिलाड़ी कमेंटटेटर बार-बार दोनों की उम्र को याद कर रहे थे। उनमें से एक सुनील गावस्कर भी थे। जिन्होंने खुद चालीस साल की उम्र के बाद क्रिकेट को अलविदा कहा था। गावस्कर के दौर के क्रिकेट और आज के क्रिकेट में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। गावस्कर भी अपने समय की चुनौतियों का सामना करके ही क्रिकेट के क्षीतिज पर चमके थे। और ऐसे ही चमकते सितारे कपिल देव, सचिन तेंदूलकर या फिर विराट और रोहित भी बने हैं।
गावस्कर का दौर पांच दिन के टेस्ट क्रिकेट का था जिसमें एक दिन छुट्टी का भी हुआ करता था। बावजूद इसके लंबी पारियां खेलना और लंबे समय तक फिल्डींग या बालिंग करना कम थकाने वाला काम नहीं था। लेकिन पहले वनडे क्रिकेट और बाद में टी-20 ने क्रिकेट की पूरी फिटनेस को ही बदल दिया। इसलिए अगर 37-38 साल की उम्र में भी जब विराट और रोहित छक्के मार रहे होते हैं तो वाकई उनकी उम्र का जिक्र करना जरूरी हो जाता है। रोहित शर्मा तो गजब ही कर रहे हैं।

बात जब छक्कों की हो, तो रोहित शर्मा का नाम सबसे आगे आता है। उनकी बल्लेबाजी शैली, समय-समय पर चौकों व छक्कों की बरसात ने उन्हें आधुनिक क्रिकेट के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में शामिल किया है। पिछले वन डे विश्वकप में हमने उन्हें ओपनिंग में ताबडतोड़ बल्लेबाजी करते हुए देखा था। अगस्त 2024 में रोहित ने वनडे में तीन सौ छक्के पूरे किए थे। अगले पन्द्रह महीनों में यानि नवम्बर, 25 के आखिरी दिन वे दुनिया में सबसे ज्यादा 352 बनाने वाले बल्लेबाज बन गए। वो अब क्रिकेट की दुनिया में छक्का मारने के बादशाह कहे जा सकते हैं। रोहित ने शाहिद अफरीदी के रिकार्ड को तोड़ा है। खास बात यह भी है कि अफरीदी ने 351 छक्के मारने के लिए 398 मैच खेले थे जबकि रोहित ने केवल 277 पारियों में ही उनसे बढ़त बना ली है।
रोहित की बल्लेबाजी को अगर एक टैग देना हो, तो वो रहेगा — सोच समझ के हमला करना। शुरूआत में वह चिंतनशील अंदाज में खेलते हैं। शुरूआत में पारी को सेट करना, गेंदों को समझना, पिच और स्थिति को आंकना — ये उनका पहला मकसद होता है। लेकिन जैसे-जैसे पारी आगे बढ़ती है, रोहित अपना घातक रूप दिखाते हैं। एक बार जब उन्होंने सही समय और गेंद भांप ली तो उनके लिए सिर्फ बाऊंड्री का पार ही लक्ष्य बन जाता है। उनके छक्कों में सिर्फ ताकत नहीं होती, सटीक रणनीति भी होती है।
इस शैली की खासियत यह है कि वो टीम की जरूरत, पिच की स्थिति, गेंदबाजी का मिजाज — तीनों को भांपकर खेलते हैं। ज्यादातर जब अन्य बल्लेबाजों ने पारी संभालने में झिझक दिखाई, रोहित ने शांति से पारी को आगे बढ़ाया, फिर जैसे ही समय आया, गेंद को हवाओं में उड़ाने में उन्होंने देरी नहीं की।
रोहित शर्मा का खेल बताता है कि महान बल्लेबाज वह नहीं जो बस चौके-छक्के लगाने लगे, बल्कि वह जो समझ के साथ स्थिति और समय तीनों का सही संतुलन बनाए रखें। उनके लिए छक्का एक एहसान नहीं, शायद उनकी और टीम की जरूरत है। एक हथियार है जो धीरे-धीरे नहीं, बल्कि जब अवसर मिले, तब धमाकेदार रूप ले लेता है। भारत क्रिकेट में कई मामलों में दुनिया में आगे रहा है, दौर चाहे सुनील गावस्कर या कपिल देव का रहा हो या फिर सचिन तेंदूलकर का। या अब रोहित और विराट का। उम्र के साथ ही अनुभव और आक्रमकता में परिपक्वता का समावेश होता है।



