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पढ़ाई का खर्चा देने माता-पिता को मजबूर कर सकती है बेटियां, ले सकती हैं कानून का भी सहारा: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

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नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत ने बेटियों के हित में अहम फैसला दिया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बेटी को अपने माता-पिता से शिक्षा के लिए खर्च मांगने का अधिकार है। यहीं नहीं वे जरूरत पड़ने पर पढ़ाई का खर्चा देने के लिए अपने माता-पिता को कानूनी तौर पर बाध्य भी कर सकती हैं। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि उनके माता-पिता अपनी हैसियत के अंदर बेटी को पढ़ाई का खर्चा देने को बाध्य होंगे। कोर्ट ने यह बड़ा फैसला वैवाहिक विवाद के एक मामले में दिया है, जिसमें तलाकशुदा दंपति की बेटी ने अपनी मां को दिए जा रहे कुल गुजारा भत्ते के एक हिस्से के रूप में अपने पिता की ओर से उसकी पढ़ाई के लिए दिए गए 43 लाख रुपये लेने से इनकार कर दिया। दंपति की बेटी आयरलैंड में पढ़ाई कर रही है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ कर रही थी।

अदालत ने आदेश में कहा, “बेटी होने के नाते उसे अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च प्राप्त करने का ऐसा अधिकार है जिसे खत्म नहीं किया जा सकता है। इस आदेश को कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है। आदेश में कहा गया है कि दंपति की बेटी ने अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए राशि लेने से इनकार कर दिया था और उनसे (पिता) पैसे वापस लेने को कहा था, लेकिन उन्होंने (पिता ने) इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि बेटी कानूनी तौर पर इस राशि की हकदार है। पीठ ने अलग रह रहे दंपति की ओर से 28 नवंबर 2024 को किए गए समझौते का जिक्र किया, जिस पर बेटी ने भी हस्ताक्षर किए थे।

बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केवल इतना ही मानते हैं कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है, जिसके लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है।” अदालत ने कहा कि लड़की ने अपनी गरिमा का ध्यान रखते हुए इस राशि रखने से इनकार कर दिया और अपने पिता को पैसे वापस लेने को कहा, लेकिन पिता ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि बेटी कानूनी रूप से राशि की हकदार थी। पिता ने बिना किसी कारण के पैसे दिए, जिससे पता चलता है कि वे फाइनेंशियल तौर पर मजबूत हैं और अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद करने में सक्षम हैं।

73 लाख रुपये में हुआ था सेटलमेंट
बता दें कि इस केस में 28 नवंबर 2024 को दंपती के बीच एक समझौता हुआ था। इनकी बेटी ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस सेटलमेंट के तहत पति ने कुल 73 लाख रुपये अपनी पत्नी और बेटी को देने पर सहमति जताई थी। इसमें से 43 लाख रुपये बेटी की पढ़ाई के लिए थे, बाकी पत्नी के लिए थे। कोर्ट ने कहा कि चूंकि पत्नी को अपने हिस्से के 30 लाख रुपए मिल गए हैं और दोनों पक्ष पिछले 26 साल से अलग रह रहे हैं, ऐसे में कोई कारण नहीं बनता है कि आपसी सहमति से दोनों को तलाक न दिया जाए। न्यायालय ने कहा, “परिणामस्वरूप, हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए आपसी सहमति से तलाक का आदेश देकर दोनों पक्षों के विवाह को भंग करते हैं। अदालत ने कहा कि भविष्य में कोई भी पक्ष न तो किसी के खिलाफ अदालत में कोई केस करेगा और न ही किसी तरह का दावा करेगा।

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