मध्यप्रदेश में सिविल जज भर्ती परीक्षा बड़े विवाद में बदल गई है। 191 पदों में से 121 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित होने के बावजूद एक भी आदिवासी उम्मीदवार का चयन नहीं हुआ।
इसके बाद कांग्रेस ने चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए इसे आदिवासी वर्ग को सिस्टम से बाहर करने की कोशिश बताया है।
मध्यप्रदेश में सिविल जज परीक्षा-2022 के परिणाम अब बड़े राजनीतिक विवाद में बदल गए हैं। कुल 191 पदों में से 121 पद आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित थे, लेकिन इनमें से एक भी आदिवासी उम्मीदवार का चयन नहीं हुआ। इस मुद्दे को लेकर आदिवासी कांग्रेस ने सरकार और चयन प्रक्रिया दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
भोपाल में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष व झाबुआ विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया और प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम ने सरकार और चयन प्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए। भूरिया ने कहा कि यह परिणाम साबित करता है कि आदिवासियों को सुनियोजित तरीके से सिस्टम से बाहर धकेला जा रहा है।
121 पदों पर एक भी आदिवासी नही, ये कैसे संभव है?
विक्रांत भूरिया के मुताबिक राज्य में सबसे अधिक आदिवासी आबादी होने के बावजूद एक भी योग्य उम्मीदवार न मिलना बेहद गंभीर सवाल खड़ा करता है। उन्होंने कहा ये सरकार के लिए शर्म की बात है। जिस राज्य में लाखों आदिवासी पढ़ रहे हैं, वहां एक भी उम्मीदवार सिविल जज बनने लायक नहीं मिला? यह अपने आप में सिस्टम पर सबसे बड़ा सवाल है।
भूरिया ने आरोप लगाया कि चयन प्रक्रिया इतनी जटिल और उलझी बनाई गई है कि आदिवासी और कमजोर वर्ग के अभ्यर्थी शुरुआत में ही बाहर हो जाते हैं। भूरिया ने कहा कि परीक्षा हाईकोर्ट की निगरानी में जरूर होती है, लेकिन जो समिति सिलेबस बनाती है, नियम तय करती है। उसमें आदिवासी और दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व ही नहीं है। इसी वजह से प्रक्रिया अभ्यर्थियों के अनुकूल नहीं बन पा रही है।
भूरिया ने कहा कि पार्टी इस मामले में कानूनी हस्तक्षेप की तैयारी कर रही है। हम वकीलों से बात कर रहे हैं कि कैसे कोर्ट में इंटरवीन किया जाए। लेकिन मूल जिम्मेदारी सरकार की है। अगर मंशा साफ है तो नियम बदले जाएं और प्रक्रिया सरल बनाई जाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार बैकलॉग पदों को भरने के बजाय उन्हें 4 साल बाद NFS (Not Found Suitable) बताकर ओपन कैटेगरी में ले जाने की तैयारी कर रही है। भूरिया ने कहा कि यही सबसे बड़ा षड्यंत्र है कि आरक्षित पदों को खाली दिखाकर आगे चलकर सामान्य वर्ग में समायोजित कर दिया जाएगा।



