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विद्याभारती के कार्यक्रम में बोले भागवत: किताबों तक सीमित न रहे शिक्षा, छोड़ना होगा मार्डन साइंस की गलतियों को

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भोपाल। राजधानी भोपाल के कैरवा डैम स्थित शारदा बिहार स्कूल में मंगलवार से विद्याभारती के अभ्यास वर्ग का आगाज हो गया है। आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने मंगलवार को 5 दिवसीय अभ्यास वर्ग का शुभारंभ किया। इस अवसर पर संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, विद्या भारती के अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव, महामंत्री अवनीश भटनागर सहित कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे। बता दें कि 5 दिवसीय अभ्यास वर्ग में प्रशिक्षण लेने के लिए देश भर के 700 से ज्यादा पूर्णकालिक कार्यकर्ता शामिल होने आए हैं।

इस अवसर पर मोहन भागवत ने कहा कि डॉ मोहन भागवत ने कहा कि आज के समय में तकनीक समाज के हर क्षेत्र में अपना प्रभाव डाल रही है। हमें टेक्नोलॉजी के लिए एक मानवीय नीति बनानी होगी। आधुनिक विज्ञान और तकनीक में जो कुछ गलत है उसे छोड़ना पड़ेगा और जो अच्छा है, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि विद्या भारती केवल शिक्षा प्रदान करने का कार्य नहीं करती, बल्कि समाज को सही दिशा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारत की ओर देख रही दुनिया
भागवत ने कहा कि विश्व भारत की ओर देख रहा है उसे मानवता की दिशा देनी होगी। शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे व्यापक दृष्टिकोण से देखना होगा। मानवता को सही दिशा देने के लिए आवश्यक है कि हम अपने कार्य को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाना है। परिवर्तन आवश्यक है, क्योंकि संसार स्वयं परिवर्तनशील है, लेकिन यह अधिक महत्वपूर्ण है कि परिवर्तन की दिशा क्या होनी चाहिए। हमें सकारात्मक सोच और रचनात्मक विचारों के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए काम करना चाहिए। व्यक्ति का चरित्र निर्माण करें। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ने हमेशा सभी को जोड़ने का कार्य किया है और इसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। समाज की सभी विचारधाराओं को साथ लेकर चलें।

शिक्षा का उद्देश्य समाज को नैतिक रूप से समृद्ध बनाना
डॉ. भागवत ने कहा कि विद्या भारती छात्रों के जीवन मूल्यों और संस्कारों का निर्माण भी करती है। हमारी शिक्षा का कार्य व्यापक है, जो केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसका उद्देश्य समाज को नैतिक रूप से समृद्ध बनाना भी है। वक्त के साथ बदलाव में निष्क्रिय न रहें। उन्होंने कहा कि समय के अनुसार परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन इसमें निष्क्रिय होकर बैठना उचित नहीं होगा। मानव अपने मस्तिष्क के बल पर समाज में परिवर्तन लाता है और उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह परिवर्तन सकारात्मक हो।

विविधता में एकता का महत्व
उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विशेषता पर जोर देते हुए कहा कि हमें विविधता में एकता बनाए रखनी होगी। भारत की संस्कृति ने हमेशा सभी को जोड़ने का कार्य किया है, और इसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। सब में मैं हूँ, मुझ में सब हैं। डॉ. भागवत ने भारतीय दर्शन के इस मूल विचार को रेखांकित किया कि प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह समाज का अभिन्न अंग है और समाज भी उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दृष्टिकोण से हमें अपने कार्यों को संचालित करना चाहिए।

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