सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दिशा में उठे ठोस कदम
प्रकाश भटनागर
मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव के दो वर्ष के कार्यकाल का ये एक उल्लेखनीय और अलग पहलू है। एक खास पक्ष। देखें तो फिर मामला देश के गौरव शाली अतीत को पुनर्स्थापित करने से जुड़ा है।
बात हो रही है डॉ. यादव के सनातन, अध्यात्म, धर्म और संस्कृति के लिए प्रबल आग्रह की। छात्र राजनीति से लेकर मुख्यमंत्री पद तक डॉ. यादव ने इन विषयों से अपने सरोकार में ज़रा भी कमी आने नहीं दी है। हां, अंतर मात्र यह रहा कि 13 दिसंबर, 2023 तक इनसे जुड़े डॉ. यादव के बहुधा विचार ही सामने आते थे, लेकिन ,मुख्यमंत्री बनने के बाद मामला ‘हुए साकार, ठोस विचार’ वाला हो गया है। जब राष्ट्रीय स्तर का स्थापित एक निजी न्यूज चैनल इसी साल उज्जैन में ‘ ‘महाकाल के मोहन’ शीर्षक से विशेष धर्म संसद आयोजित करता है, तब साफ़ है कि सियासी चिल्लपों वाले माहौल से परे डॉ. यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में उस विरली छवि को भी हासिल कर लिया है, जो बहुत ही कम देखने को मिलता है।
अधिकांश अवसर पर डॉ. यादव अपने विचारों में सनातन सहित अध्यात्म, धर्म और संस्कृति को लेकर जिस तरह विचार रखते हैं, उससे साफ़ होता है कि इन विषयों में न केवल उनका गहन अध्ययन है, बल्कि यह भी दिखता है कि इनके लिए वो किस तरह आग्रह से भरे हुए हैं। यादव यदि समय-समय पर भगवान कृष्ण और सुदामा के गुरु ऋषि सांदीपनि का श्रद्धा से उल्लेख करते हैं तो उन्होंने राज्य के संदीपनी विद्यालयों के लिए 250 नए भवन की दिशा में भी तेजी से काम शुरू कर दिया है। गीता के उपदेशों का महत्व लगातार दोहराने के साथ ही उन्होंने गीता जयंती पर राज्य-भर में विशेष आयोजन की बड़ी मिसाल भी स्थापित की है। भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास में हाल ही में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना बताती है कि डॉ. यादव अतीत के गौरव को सहेजने की दिशा में कितने गंभीर हैं। विशेष बात यह भी कि इन विषयों पर अपने तर्क के पक्ष में डॉ. यादव इस बात को भी पुरजोर तरीके से स्थापित करते हैं कि इस सबका कितना पुख्ता वैज्ञानिक आधार है। उनका साफ़ कहना है, ‘ सनातन संस्कृति की ज्ञान परंपरा मानव को तकनीक से जोड़ती है।

सनातन का उल्लेख हो तो हिंदुत्व की बात सहज रूप से उठती है। इस विषय में भी डॉ. यादव के विचार शीशे की तरह साफ हैं। उनका कहा है, ‘हिंदुत्व का मतलब राष्ट्रवाद है। हमें गर्व है हम हिंदू हैं। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व एक ही हैं। अगर कोई हमारे राष्ट्र को चुनौती देता है तो हम उसे कैसे छोड़ेंगे? अमेरिका में रहने वाले लोगों को अमेरिकी कहा जाता है रूस में रहने वाले लोगों को रूसी कहा जाता है और इसी तरह यहां हिंदुस्तान में रहने वाले लोग हिंदू होंगे।’
इन मामलों में डॉ. मोहन यादव के कहने और करने का एक अन्य उल्लेखनीय पक्ष भी है। उन्होंने स्वयं के दृढ़ आग्रहों को कट्टरता से पूरी तरह अलग कर रखा है। वो बेहद तर्कशील तरीके से लोगों की स्वीकृति हासिल करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह बात उन्हें एक स्वयं सेवक के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों से और अधिक मजबूती के साथ जोड़ती है। यादव संघ के सामाजिक समरसता वाले भाव को आगे ले जाते हुए राज्य में बीते वर्ष चैत्र से फाल्गुन माह तक गौ-संरक्षण और संवर्धन वर्ष के रूप में सफल तरीके से मना चुके हैं। भले ही देश के कई हिस्सों में गाय के नाम पर किसी सुधारवादी कदम को लेकर भी वर्ग संघर्ष जैसे हालात पनप जाते हों, लेकिन गाय को समर्पित वर्ष का आयोजन यूं शांतिपूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें समाज के सभी तबकों की रजामंदी को साफ़ देखा गया। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाकर भी डॉ. यादव के संस्कृति के क्षेत्र में भी ”संतुलित’ रुख के महत्व को समझा जा सकता है।

मध्यप्रदेश के अतीत में इस दिशा में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह से अधिक काम शायद ही किसी ने किया हो। फिर भी श्री सिंह शायद जानबूझकर एक बड़ी चूक कर गए। सांस्कृतिक विकास के उनके एजेंडे की चिड़िया के पर वामपंथियों ने यूं काटे कि मामला उड़ान भरने से पहले ही मुंह की खाने वाला हो गया। नौकरशाहों की विशेष मानसिकता वाली लॉबी ने संस्कृति की जड़ में वामपंथी सोच का मट्ठा उड़ेलने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। तब कई मौकों पर तो यह लगने लगा था कि मध्यप्रदेश की संस्कृति में सरकार के लिहाज से फिट होने के लिए ”लाल सलाम’ का नारा और ”आओ कॉमरेड-कॉमरेड खेलें’ का भाईचारा किसी अनिवार्य शर्त की जगह ले चुका है। इसका नतीजा यह कि सिंह के कार्यकाल में बने भारत भवन ने जल्दी ही कला के केंद्र की जगह ‘करामातियों के अड्डे” का विकृत स्वरूप ले लिया। यह सब अर्जुन सिंह की एकपक्षीय नीतियों के दुष्प्रभाव के चलते हुआ, लेकिन डॉ. मोहन यादव ने संस्कृति के मूल भाव को अक्षुण्ण रखते हुए इस दिशा में काम किए हैं और उनके सुखद नतीजे सबके सामने हैं।
यादव ने राज्य के 19 पवित्र शहरों में शराबबंदी के निर्णय को साहसिक रूप से सफलता प्रदान की है। उन्होंने बेहद कुशलता के साथ राज्य में पर्यटन की छिपी धार्मिक संभावनाओं को भी सार्वजनिक महत्व प्रदान किया है। चित्रकूट को अयोध्या की तर्ज पर विकसित करने सहित सहित राम वन पथ गमन मार्ग के सभी प्रमुख स्थलों को विकसित करने का उनका फैसला जहां सनातन के विचार को पुष्टि देगा, वहीं इससे प्रदेश में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के नए रास्ते खुलना भी तय है।
इस सब को देखकर यह विश्वास और भी गाढ़ा हो जाता है कि डॉ. मोहन यादव भविष्य में भी सनातन, अध्यात्म, धर्म और संस्कृति की दिशा में राज्य की प्रगति को निरंतर गति प्रदान करते रहेंगे। इंदौर से उज्जैन-ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, जबलपुर से चित्रकूट, ग्वालियर से ओरछा- पीताम्बरा पीठ के लिये हेलीकॉप्टर सेवाएं और पर्यटकों को हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये पीएम श्री पर्यटन वायु सेवा एवं पीएम श्री धार्मिक पर्यटन हेली सेवा के जरिए यादव एक बार फिर यह जता चुके हैं कि उनकी बातें हवा-हवाई नहीं हैं, बल्कि वो जमीन से जुड़े रहकर आसमान तक अपने कहे को साबित करने की पूरी क्षमता रखते हैं।



