बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का आज सोमवार 24 नवंबर को निधन हो गया। एक्टर का कई दिनों से घर पर ही इलाज चल रहा था। उन्हें कुछ दिन पहले मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किए गए थे। गौरतलब है कि 10 नवंबर को धर्मेंद्र की तबीयत काफी खराब हो गई थी और उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट किए जाने की खबरें आई थीं। इसके बाद सलमान खान से लेकर शाहरुख खान और गोविंदा को दिग्गज अभिनेता का हाल चाल जानने के लिए अस्पताल में देखा गया था।
भारतीय सिनेमा के ही-मैन धर्मेंद्र अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी करोड़ों दिलों में उसी ताजगी के साथ बसती हैं। धर्मेंद्र का अपनी मिट्टी से रिश्ता कभी खत्म नहीं हुआ।
वह चाहे मुंबई में मिले सितारों की चमक हो या फिल्मी दुनिया का वैभव, अपनी सरजमीं की महक ही उन्हें हमेशा सबसे ज्यादा प्रिय रही। जब भी मौका मिलता, वह पंजाब की गलियों और अपने बचपन की यादों में लौट जाते।
बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र 14 दिसंबर 2015 को लुधियाना आए थे, तब उनकी एक झलक पाने के लिए प्रसंशक बेताब दिखे। धमेंद्र ने हंबड़ा रोड स्थित सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में अपनी संपत्ति से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। दोपहर करीब 1 बजे अभिनेता जैसे ही कार्यालय पहुंचे, लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी और प्रशंसकों ने उनसे सेल्फी लेने की होड़ लग गई। कार्यालय कर्मचारियों ने भी बॉलीवुड आईकन का गर्मजोशी से स्वागत किया और उनकी फाइल को प्राथमिकता पर निपटाया।
धर्मेंद्र ने हैबोवाल स्थित अजीत नगर में अपनी 2500 वर्ग गज जमीन स्थानीय निवासी रविंदर सूद के नाम ट्रांसफर कर दी। हालांकि, उन्होंने इस संपत्ति ट्रांसफर की वजह बताने से इनकार किया। बता दें कि धर्मेंद्र की अजीत नगर में लगभग 2.5 एकड़ जमीन थी, तब जमीन के सीमांकन को लेकर पहले कुछ विवाद भी सामने आए थे। सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में उनकी मौजूदगी से माहौल उत्साहपूर्ण हो गया और आम लोगों को अपने पसंदीदा सुपरस्टार से रूबरू होने का मौका मिला।
कुछ साल पहले धर्मेंद्र लुधियाना में एक संस्था के कार्यक्रम में आए थे। मंच पर खड़े होकर उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया था कि उनका अभिनेता बनने का सपना यहीं जन्मा था। मिनर्वा सिनेमा में दिलीप कुमार की फिल्म देखी तो मन में इच्छा जागी कि एक दिन परदे पर वही जादू रचेंगे। साहनेवाल रेलवे स्टेशन पर खड़े होकर वह गुज़रती मुंबई की ट्रेनों को देखते और मन ही मन ठान लेते—एक दिन वहीं जाना है, उसी दुनिया का हिस्सा बनना है।
लुधियाना के नेहरू सिद्धांत केंद्र में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में उन्होंने अपने स्कूल के दिनों का किस्सा सुनाया था। वह हंसते हुए बताते थे कि वह सिर्फ दिल की बातें लिखने वाले इंसान हैं, दिमाग से ज़्यादा दिल से सोचते हैं। उनका साहनेवाल वाला घर भी उनके दिल के बहुत करीब था। कुछ वर्ष पहले जब वह पंजाब आए, तो सीधे वहीं पहुंचे। आस-पड़ोस के लोग उन्हें घेरकर खड़े हो गए। उन्होंने बच्चों की तरह घर के आंगन से लेकर कमरे तक सब कुछ देखा। वहां पड़ी अपने पिता की पुरानी कुर्सी को छूकर वह भावुक हो गए थे। उन्होंने बताया था कि इस घर की मिट्टी में उनकी परवरिश की खुशबू बसती है। बाद में हालांकि यह घर बिक गया, और नई इमारत खड़ी हो गई—लेकिन उन दीवारों से जुड़ी यादें धर्मेंद्र के भीतर हमेशा जीवित रहीं।
जब भी धर्मेंद्र अपने बचपन की बातें करते, साहनेवाल रेलवे स्टेशन, दादा-दादी के साथ बिताए दिन जरूर याद करते। उन्होंने कई बार मंचों पर इसका जिक्र किया। आज जब धर्मेंद्र हमारे बीच नहीं रहे, तो उनके द्वारा सुनाई गई ये कहानियां, यह मिट्टी से जुड़ाव, और पंजाब से उनका अटूट प्रेम ही उन्हें एक अभिनेता से कहीं अधिक-एक भावनाओं से भरे इंसान के रूप में याद करवाता है। लुधियाना, साहनेवाल और पूरा पंजाब आज उन्हें उसी अपनत्व के साथ याद कर रहा है, जो धर्मेंद्र ने अपनी पूरी जिंदगी अपनी सरजमीं को दिया।



